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परगुणग्रहण पर
दिया । अब उक्त संघ ने उक्त आचार्य तथा मुनियों का सकल थोचित संपादन कर इस प्रकार संघ का आदेश कहा कि
वहां प्रज्ञा से वृहस्पति को भी नीचा दिखाने वाला विदुर नामक अव्यक्त लिङ्गी छः दर्शन को तोड़कर यथेच्छ रूप से चिरकाल से विचरता रहा है ।
वह इस प्रकार कि - उसने कणाद के मत को मानने वालों का मान उतार दिया है । गौतम के मत को मानने वालों में बहुतों को बुद्धि बल में हीन कर दिया है। बौद्धों को तर्क के विचार से अलग कर दिया है । सांख्यों को संख्याहीन बनाया है । कौलों को निर्बल कर दिया है तथा मीमांसकों के यश को तोड़कर व्यंसकबनाया है । इस प्रकार हाथी की तरह वह निःशंक हो गर्व से सर्वत्र फिरता रहता था । किन्तु अब वह दुष्ट जैन मुनियों से विवाद करना चाहता है । अतः यह जैन दर्शन का कार्य करने को आप शीघ्र वहां पधारिये ।
यह सुन वे (आचार्य) प्रवचन की प्रभावना करने के लिए पाटलीपुत्र की ओर रवाना हुए, इतने में उनके सन्मुख छींक हुई। ( छींक के लिए ऐसा कथन है कि - ) बाई छींक क्षेमकारक है । दाहिनी भी लाभदायक है । पीठ पर हो तो पीछा लौटाती है और सन्मुख हो तो वह निश्चित किये काम को बिगाड़ती है ।
यह सोचकर आचार्य विहार करते झट रुक गये । तब उक्त आगन्तुक संघ ने कहा कि- जो शकुन ठीक न होने से आप वहां न पधार सकते हों तो वादलब्धिसम्पन्न बन्धुदत्त साधु को वहां भेजिये ।
तब आचार्य ने खूब विचार करके उसे वहां भेजा। अब उसे शुभ शकुन हुए जिससे वह बढ़ते हुए उत्साह के साथ थोड़े दिन