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गुणानुराग के अन्य लिंग
___ मूल का अर्थ-निष्कारण करुणा लाकर उनको भी शुद्ध मार्ग में (लाने के लिये) शिक्षा दे और जो वे अत्यन्त अयोग्य जान पड़े तो उन पर अरक्तद्विष्ट रहकर उनकी उपेक्षा करे। ___टीका का अर्थ- करुणा अर्थात् पर-दुःख निवारण की बुद्धि । क्योंकि कहा है कि-परहित सोचना सो मेत्रीभावना है । परदुःख निवारना सो करुणाभावना है। दूसरे को सुखी देखकर संतुष्ट होना सो मुदिताभावना है और पर-दोष देखकर उपेक्षा करना सो उपेक्षाभावना है । वह करुणावश अर्थात् उसमें रसिक होकर केवल अर्थात् राग-द्वेष छोड़कर फक्त करुणा से स्वजनादिक को भी अनुशासित करे अर्थात् शिक्षा दे। अपिशब्द से दूसरों को भी दे । किस विषय में सो कहते हैं- शुद्ध मार्ग में अर्थात् मोक्षमागे के विषय में । वह इस प्रकार कि
क्या तू नरक-तिर्यंच-नर और देवगति तथा विचित्र योनियां जो कि दुःख ही की स्थान रूप हैं उनमें निरन्तर भटकता हुआ अभी थका नहीं ? जिससे कि- पीड़ा के हेतु महा प्रमाद के अस्खलित रूप से वश में रहकर धर्म में दिल न लगाते तू अनार्य आचरण में रक्त बना हुआ है ? जीव जो कि स्वर्ग में नहीं जा सकते तथा जो नरक में जा पड़ते हैं उसका अनार्य-प्रमाद ही कारणभूत है। ऐसा मेरा निश्चय है। तथा जो प्रमाद है वही केवल अनादिकाल का दुश्मन है और वह सदा काल साथ ही साथ रहता आता है । अतः तुमने इसकी गाढ शठता को जानना चाहिये।
जो विस्तार पूर्वक विकथा की जाती है, जो दुष्ट विषयों में गृद्ध होता है, जो सोते हुए और मत्त हुए के समान चेष्टा की जाती है, जो गुण व दोष का भेद जानने में नहीं आता, जो