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अशक्य अनुष्ठान करने पर
सात पात्र के उपकरण जोड़ते क्रमशः नव, दस, ग्यारह और बारह उपकरण होते हैं । किन्तु ये जिन -कल्प केवल उत्सर्गमय होने से मंद-सत्त्व जीवों को दुष्कर हैं व उत्तम सत्त्ववान जीवों को सुखकर हैं और वही उत्तम है ।
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यह सुनकर शिवभूति बोला कि जो यह कल्प उत्तम है तो परलोक साधन के हेतु बद्धकन (कमर बांधकर तैयार हुए ) पुरुषों को करना ही चाहिये । अतएव मोक्ष सुख के अर्थी साधु जिनेश्वर के न किये हुए वस्त्र - पात्रादि संग्रह को छोड़कर यह जिन- कल्प क्यों नहीं करते ? तथा जो गुरु का लिंग हो वही उनके शिष्य ने भी रखना चाहिये | क्योंकि-लोक में भी प्रत्येक लिंगी अपने-अपने देव के अनुरूप लिंग रखता है ।
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गुरु उत्तर देने लगे कि - तीर्थकरों की को हुई क्रिया अपने समान पुरुष कैसे कर सकते हैं ? क्या हाथी की पालकी को गधा उठा सकता है ? वे क्रियाएँ तो पहिले संचयण वाले महासत्ववान् जीव ही कर सकते हैं। अपन तो उनकी प्रशंसा मात्र कर सकते हैं । प्राकृत पुरुष (साधारण मनुष्य) क्या तीर्थंकर की नकल कर सकता है ? क्या गर्ताकोल सिंह और हाथी की समानता पा सकता है ?
आज्ञा में चलना यही प्रभु की मुख्य आराधना है । क्योंकि कोई भी राजचिह्न धारण करके राजा की सेवा नहीं करता । वीर प्रभु ने पांच प्रकार के कल्प कहे हैं ! उनमें से जो योग्य हो, उसको यथाशक्ति करने से उनकी आज्ञा की आराधना की जा सकती है । पहिला स्थविर कल्प, दूसरा परिहारविशुद्धि कल्प, तीसरा जिनकल्प, चौथा प्रतिमाकल्प और पांचवा यथालंद कल्प |