________________
अशक्य अनुष्ठान करने पर
देखती बैठी रहती थी । वह नाराज होकर सासु से कहने लगी कि-यह तुम्हारा लड़का देर से आता है और मैं जग-जगकर थक जाती हूं। तब वह सासु सोचने लगी कि राजा यद्यपि खुशी हुआ है तो भी यह उच्छखल हो, यह ठीक नहीं। इसलिये मुझे शिक्षा देना चाहिये । अतः वह कहने लगी कि-बहू ! तू सो जा। आज मैं ही जगतो रहूँगी । यह कह द्वार बन्द कर सासु जगने लगी और बहू सो गई।
अब वह मध्यरात्रि के समय आकर दरवाजा खोलने लगा। तब उसकी मां क्रोध में आकर कहने लगी कि-हे लड़के ! इतनी रात को जहां तुझे खुला दरवाजा दिखाई दे वहीं चला जा । यहां कोई जागता नहीं। इस प्रकार माता का वचन सुनकर उसके मन में गर्व हो आया, और उसे साधु के उपाश्रय का द्वार नित्य खुला रहता हुआ याद आया, इसलिये वहां गया। वहां उसने भय से रहित और निःसंग जितकषाय आयेकृष्णसूरि को मधुरस्वर से स्वाध्याय करते देखा। ___ उसने सोचा कि-इन महात्मा को धन्य हैं। और ये ही कृतार्थ हैं। क्योंकि इन्हें मान व अपमान का कुछ भी दुःख नहीं होता। ऐसा सोचकर वह जमीन से माथा टेक कर, आचार्य को वन्दना करने लगा। पश्चात् वह बोला कि-हे भगवन् ! मैं संसार में भ्रमण करने से डरकर आपके पास आया हूँ । इसलिये हे प्रभो! मुझे दीक्षा देकर मुझ पर मेहरबानी करो। ___ गुरु बोले कि तू कौन है ? और क्यों प्रव्रज्या लेता है ? वह बोला कि मैं इस नगर के राजा का शिवभूति नामक सेवक हूँ.
और मैंने संसार से वैराग्य पाया है। गुरु ने कहा कि तब मैं राजा की आज्ञा के बिना दीक्षा कैसे दू? तब वह बोला कि मैं आपके सन्मुख खड़ा होकर आप ही दीक्षा ले लूगा ! यह कह कर