________________
शिवभूति की कथा
गच्छ से निकलकर मासिकी महाप्रतिमा को धारण करे । वहां भोजन की एक दत्ती तथा पानक को भी एक ही दत्ती होती है । और जहां सूर्य अस्त हो उस स्थान से एक पग भी आगे नहीं बढ़े। जिस स्थान में वह प्रतिमा प्रतिपन्न है ऐसी खबर हो जाय, वहां एक रात रहे, और खबर न पड़े, वहां एक दिन व दो रात रहे ।
९७
दुष्ट हाथी वगेरे के भय से एक कदम भी पीछे न हटे इत्यादि नियम को सेवन करता हुआ सारे मास विचरण करे । पीछे गच्छ में आता है । इस प्रकार द्विमासी, त्रिमासी, इस प्रकार सात मासी तक की सात जानो । उसके साथ दत्ती भी बढ़ती जानना | यहां तक कि -सातवीं में सात दत्ती हों, पश्चात् आठवीं अथवा यहां के हिसाब से पहिली प्रतिमा सात अहो रात की होती है - उसमें चोथभक्त का तप चतुर्थी को तप चौविहार एकांतरी होता है, तथा पूर्वोक्त प्रतिमाओं से यह विशेषता है कि- पारणे में आंबिल करे । उसमें उर्ध्व मुख और करवट करके सोना अथवा निषद्या के स्थान में रहकर दिव्यादिक घोर उपसर्गों को निष्कम्प मन से सहते हैं ।
दूसरी प्रतिमा भी इसी प्रकार परन्तु वह गाँव के बाहिर उत्कुटुक आसन से रहे अथवा टेढ़े लक्कड़ के समान सोया रहे अथवा दंड के समान लम्बा होकर पड़ा रहे अथवा खड़ा रहे ।
तीसरी भी इसी प्रकार है पर स्थान में वह गोदोहिकासन, वीरासन अथवा आम्रकुब्जासन होती है इसी प्रकार अहोरात्र की प्रतिमा भी जानो। उसमें अपानकं चौविहार छट्ठ-भक्त होता है और ग्राम नगर के बाहिर दोनों भुजाएँ लम्बी होती है जिसमें ऐसा आसन में रहता है। ऐसी ही एक रात्रि की प्रतिमा