________________
७०
प्रज्ञापनीय पर
इस प्रकार मित्र देवता का वचन सुनकर राजा विकसित मुख से शीघ्र ही सैन्य सहित पुनः शत्रु की ओर बढ़ा।
अब अनेक लड़ाइयों में प्राप्त किये हुए विजय से गर्वित हुआ भीमराज पुनः सुनन्द को आता देखकर सन्मुख खड़ा रहा। अब पुनः लड़ाई प्रारम्भ हुई किन्तु उसमें मित्रदेव के प्रताप से प्रथम सपाटे में हो सुनन्द राजा ने भीमराजा को जीता। तब उसके सेवा करना स्वीकार करने पर उसे उसी राज्य पर स्थापित करके सुनन्द अपने देश को रवाना हुआ, और देव अपने स्थान को गया।
अब सुनन्द ने मार्ग में चलते-चलते श्रीपुर के उद्यान में ऋषभदेव स्वामी के मन्दिर के समीप वृक्ष के नीचे बैठे हुए एक मुनि को देखा । तथा उनके सन्मुख बहुत से लोगों के बीच में बैठे हुए एक बानर को देखा । जो कि-मुनि के बोले हुए नमस्कार मन्त्र को सुनने में दत्तचित्त हो रहा था। तब राजा विस्मित हो, वहां आकर मुनीश्वर को प्रणाम करके बैठ गया। इतने में - उक्त बानर मर गया। - अब राजा बोला कि-हे मुनीश्वर ! यह एक आश्चर्य की बात है कि-ऐसे अति चपल मनवाले वानर भी जिनधर्म में निश्चल मन रख सकते हैं। अतः कहिए कि यह पूर्व में कौन था?
साधु बोले कि-हे नरेन्द्र ! यह तीसरे भव पर मथुरा में एक वणिक था। उसने संवेग पाकर एक समय सुभद्र गुरु से दीक्षा ग्रहण की और वह महान् तप करने लगा किन्तु जड़ होने से जरा हठीला रहता था । अन्तसमय वह अनशन करके सौधर्म-देवलोक में देवता हुआ । पश्चात् जब उसे अपना छः मास आयुष्य