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शिवभद्र मुनि का दृष्टांत
पूर्व में जातिमद आदि किया था। उसकी यथारीति आलोचना नहीं की। जिससे तेरे भाई ने ऐसी विटंबना पाई है। और तूने सूक्ष्म भूल होने पर भी निःशल्यपन से आलोचना करी थी। जिससे तू इस प्रकार सुखी हुआ है । यह कह कर देवी अंतर्ध्यान हो गई।
यह सुन शिवचन्द्र (जाति स्मरण पाकर) पूर्व-भव स्मरण करके भाई को कहने लगा कि-हे भाई ! अब भी तू नीच कुटुम्ब का स्नेह तोड़कर इनको छोड़ दे । तथा हे भाई ! अपने दुष्कृतों की आलोचना करके तीव्र तपश्चरण कर, इस दुःख को तू जलांजलि दे। तब सोमचन्द्र बोला कि-हे भाई ! मेरी यह अनाथ स्त्री आसन्नप्रसवा है तथा ये लड़के लड़की अभी छोटे हैं। तो कह, इनको कैसे छोड़ सकता हूँ ? उसे इस प्रकार मृढ़ हुआ देखकर, शिवचन्द्र ने विचार किया कि-यह अभी धर्म के योग्य नहीं, यह सोच वह उसे छोड़कर अपने नगर में आया । पश्चात् उसने किसी प्रकार माता पिता से अलग हो चारण मुनि के पास संयम लेकर क्लेशों को दूर कर सिद्धि प्राप्त की। और उक्त सोमचन्द्र अनेकों पाप करके समयानुसार मर कर घोर नरक में गया। और दुःखित होकर संसार रूप गहन वन में भटकेगा। - इस भांति श्रेष्ठ आलोचना से सकल कर्म को दूर करने वाले, शिवभद्र मुनि का चरित्र सुनकर, हे सकल दोष जाल को स्थगित करने वाले वाचंयमो ! (मुनियों) तुम भूलचूक की शुद्धि करने में विधिपूर्वकन्यत्न करों
इंसाप्रकारसम्ममा मुसि को कथा पूर्ण हुई।