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असदूग्रह का त्याग
इस भांति सूत्र अनेक प्रकार के हैं । अर्थात् स्वसमय, परसमय, निश्चय, व्यवहार, ज्ञान, क्रिया आदि विषयों से वे नयमत प्रकट करने वाले और समय अर्थात् सिद्धान्त के विषय में गम्भीर भाववाले अर्थात् महान् बुद्धिमान् पुरुष ही जिनका अभिप्राय समझ सकें ऐसे हैं । इससे क्या हुआ सो कहते हैं :तेसि विसयविभागं अमुतो नाणवरणकम्मुदया । सुभह जीवो जीवो तत्तो- सपरेसिमसग्गह जगह ॥ १०७ ॥
मूल का अर्थ - उनके विषय विभागों को ज्ञानावरण-कर्म के उदय से न जान सकने वाले जीव मुग्ध हो जाते हैं । और उससे वे आपको व दूसरों को असद्ग्रह उत्पन्न करते हैं ।
टीका का अर्थ - उन सूत्रों के विषय विभाग को ज्ञानावरण कर्म के उदय से न जानता हुआ, अर्थात् इन सूत्रों का यह विषय है, और उन सूत्रों का यह विषय है, ऐसा न जानकर प्राणि मोह पाता है और उससे वह अपने आपको व उसके पर्युपासक को असद्ग्रह अर्थात् असद्द्बोध उपजाता है । जमालि समान 1 उसकी कथा अत्यन्त प्रसिद्ध होने से नहीं कहते हैं ।
तं पुरा संविग्गगुरु पर हिय कर गुजयाणुकंपाए । बोहिति सुत्तविदिशा पनवणिज्जं वियागंता ॥ १०८ ॥
मूल का अर्थ-वैसे मोह पाये हुए को (मूढ़) को भी प्रज्ञापनीय जानकर परहित करने में उद्यत संविग्न गुरु अनुकम्पा लाकर सूत्र में कही हुई रीति से समझाते हैं।
टीका का अर्थ- जो वह अर्थी और विनीत हो, तो उस मूढ़ को संविग्न पूज्य पुरुष परोपकार रसिक होने से अनुकम्पा द्वारा