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अचलमुनि का दृष्टांत
वहां थोड़ी देर रह कर अचल राजा के पास आरा । राजा के पूछने पर,चोर का उपरोक्त वृत्तान्त कहा।
राजा ने पूछा कि-इसका प्रमाण क्या है ? उसने कहा किउसके आश्रम में तलघर में सब चोरा हुआ माल भरा है। तब राजा सिर दुःखने का बहाना करके सब नौकर चाकरों को बिदा कर सो गया, तो उन लोगों ने अनेक उपचार करना शुरु किये। तथापि कुछ भी लाभ न हुआ तब मंत्रवादी आदि बुलाये गये। वे भी कुछ प्रतिकार न कर सकने से खिन्न होकर अपने-अपने स्थान को चले गये। तब बनावटी विषाद करके राजा ने उस योगी को बुलाया तो वह उपस्थित हुआ। तब उसे आदर-पूर्वक आसन दिया गया। उस पर बैठकर वह बातचीत करने लगा।
इधर राजा ने मनुष्य भेजकर तुरन्त उसका आश्रम खुदवा डाला तो सम्पूर्ण चोरा हुआ माल मिल गया। उसे वे राजभवन में ले आये। पश्चात् महाजनों को बुलवाकर वह माल वताया गया और पहिचान कर जो जिसका था वह उसे पहुँचाया गया।
अव वह योगी धमकाया गया कि-अरे अधम ! अनार्य ! पाखंडी ! यह क्या बात है ? तब वह डर कर चुप हो रहा । अब उस सिद्ध को मारने का हुक्म होते ही दुजेन के समान उसका शिष्य शीघ्र ही भाग गया और उसे खूब विटंबित करके राजा ने मरवा डाला । इस प्रकार उसका मरण देखकर अचल वैराग्य प्राप्त कर सोचने लगा कि-हा हा ! धन से विमोहित होकर, देखो! प्राणी किस प्रकार मृत्यु पाते हैं।
धन के लोभ से जीव जीवों को मारता है, सदैव झूठ बोलता है और पिता, पुत्र, मित्र, कलत्र आदि को भी ठगता है। इस