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निष्कलंक धर्म करने पर
प्रथम द्वार पूर्ण हुआ, अब दूसरा कहते हैं । आकंप कर आलोचे, अटकल से आलोचे, जो दीखा हो सो आलोचे, बादर आलोचे, सूक्ष्म आलोचे, गुप्त आलोचे, गडबड़ करता आलोचे, बहुजन में आलोचे, अगीतार्थ के पास आलोचे, उनकी सेवा करता हुआ आलोचे ये दश दोष हैं ।
इस प्रकार प्रतिसेवक के दोष हैं, उसमें आकंप करके याने भक्ति आदि ये जरा धीमा होकर आलोचे । अटकल से याने बड़े अपराध को छोटा बता कर आलोचे । जो दीखा हो याने दूसरों के देखने में आया हो सो आलोचे । बादर आलोचे पर सूक्ष्म नहीं । विश्वास उपजाने के लिये सूक्ष्म आलोचे, पर स्थूल नहीं आलोचे । गुप्तरीति से याने अव्यक्त स्वर से आलोचे । शब्दाकुल याने उतावला बोलकर आलोचे । बहुत जनों के आगे पीछे वही प्रायश्चित आलोचे । अव्यक्त याने अगीतार्थ के समीप आलोचे। तत्सेवी अर्थात् उनकी सेवा करता हुआ आलोचे । इस प्रकार दश दोष का द्वार पूर्ण हुआ। ___ अब आलोचक के दशगुण ये हैं:-१ जाति, २ कुल, ३ विनय, ४ उपशम, ५ इन्द्रियजय, ६ ज्ञान, ७ दर्शन, इन सातों से युक्त हो, अननुतापि, अमायी और चरणयुक्त हो। इस प्रकार दश आलोचक कहे हैं।
जातिवन्त प्रायशः बुरा नहीं करे और करता है तो आलोचे, कुलवान गुरु का दिया हुआ प्रायश्चित यथारीति आलोचे । ज्ञानी कृत्याकृत्य जाने, दर्शनी शोधिनी श्रद्धा रखे, चरणी (चारित्रवान्) उसे स्वीकार करे, शेष पदों का अर्थ प्रकट है।
तीसरा द्वार कहा, अब गुरु के गुणों का चौथा द्वार कहते हैं।