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निर्मन्थ मुनि का दृष्टांत
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के मार्ग की विराधना करके भोग-रस में गृद्ध रह कर कुरर पक्षी के समान निरर्थक शोक करके परिताप पाते हैं ।
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यह ज्ञान गुणयुक्त सुभाषित अनुशासन (शिक्षा) सुनकर बुद्धिमान पुरुष ने कुशीलवान का सारा मार्ग छोड़ कर महान् निम्रन्थों के मार्ग में चलना चाहिये । अतएव जो चारित्र और आचार गुण से युक्त रहकर अनुत्तर संयम पालता है वह आश्रवरहित सकल कर्म खपा कर अत्युत्तम शाश्वत स्थान पाता हैं । इस प्रकार वह उग्रदान्त, महातपोधन, महा प्रतिज्ञवान्, महायश, महामुनि, श्रेणिक राजा को महा निर्ग्रन्थीय महाश्रु त बड़े विस्तार से सुनाने लगे ।
इस भांति साधुकृत समयानुसारी विशुद्ध देशना सुनकर चंचल हुए रोमांचों से छाये हुए शरीर वाला राजा अंजली जोड़कर ऐसा कहने लगा:- हे महर्षि ! आपका मनुष्य - जन्म सुलब्ध है और आपने भलीभांति लाभ प्राप्त किये हैं। आप ही सनाथ और सबांधव हो, क्योंकि आप जिनेश्वर के मार्ग में रत हो । आप ही सकल चराचर अनाथ जीवों के नाथ हो । मुझे आपने बड़ी उत्तम रीति से अनाथता समझाई है । इस अनुशिष्टि (शिक्षा) को मैं भलीभांति चाहता हूँ ।
हे महा नि ! मैंने इतने प्रश्न करके आपके ध्यान में जो कुछ विघ्न किया है तथा आपको भोग के लिये निमंत्रित किये वह सब कृपा करके क्षमा करिये। इस प्रकार वह सिंह समान राजा उक्त सिंह समान अणगार को महान् भक्ति से स्तुति करके हर्षित होता हुआ, परिवार के साथ अपने स्थान को आया । और वे महात्मा साधु भी शुद्धदेशना से चिरकाल अनेकों आदमियों को प्रतिबोध करके सकल कर्म खपाकर महानन्द - पद को
प्राप्त हुए ।