________________
शुद्धदेशना
टीका का अर्थ-जलती आग में प्रवेश करनेवाले मनुष्य के साहस से भी अधिक यह अति साहस है कि-सूत्र निरपेक्ष देशना कडुवे अर्थात् भयंकर फल देनेवाली है ऐसा जानने वाले होकर भी सूत्र-बाह्य अर्थात् जिनागम में न कहे हुए अर्थ में अर्थात् वस्तु विचार में निर्देश अर्थात् निश्चय दे देते हैं । अर्थात् क्या कहा सो कहते हैं:
मरीचि एक दुभोषित से दुःख सागर में गिरकर कोड़ाकोड़ सागरोपम भमा । उत्सूत्र के आचरण करने से जीव चिकने कर्म बांधता है, संसार बढ़ाता है और मायामृषा करता है। उन्मार्ग की देशना देनेवाला, मार्ग का नाश करने वाला, गूढहृदयो, मायावी, शठ और सशल्य जीव तियं च का आयुष्य बांधता है । जो उन्मार्ग की देशना से जिनेश्वर के चारित्र का नाश करते हैं, वैसे दर्शनभ्रष्ट लोगों को देखना भी अच्छा नहीं ।
इत्यादि आगम के वचन सुनकर भी अपने आग्रह में प्रस्त हो कर जो कुछ भी उलटा सीधा बोलते हैं, तथा करते हैं, सो महा साहस ही है, क्योंकि यह तो अपार, और असार संसार रूप सागर के पेट में होने वाले अनेक दुःखों का भार एकदम अंगीकार करने के समान है । क्या इस प्रकार आगम का अर्थ जानकर भी कोई अन्यथावाद करता है ? हां, वैसे भी हैं । कहते
हैं कि:
दीसंति य ढड्ढसिणो णेगै नियमइपउत्तजुत्तीहि । विहिपडिसेहपवत्ता चेइयकिच्चसु रूढेसु ॥१०२।। मूल का अर्थ-ऐसे भी अनेक ढडढर लोग दीखते हैं कि-जो अपनी मति से जोड़ी हुई युक्तियों से चैत्य सम्बन्धी कृत्यों में हा, ना करते रहते हैं।