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शुद्धदेशना
अवगयपत्तसरूवो-तयणुग्गहहे उ भाववुढिकरं । सुत्तमणियं परूवा-बजतो दरमुम्मग्गं ॥९६।। मूल का अर्थ-पात्र का स्वरूप जानकर उसके अनुग्रह के कारणरूप भाव को बढ़ाने वाला, सूत्र में जो कहा हो, उसे प्ररूपित करे और उन्मार्ग को वर्जित करे। ____टीका का अर्थ-अवगत किया हो याने ठीक-ठीक जान लिया हो, पात्र का याने सुनाने के योग्य प्राणी का स्वरूप याने आशय जिसने, सो अवगत पात्र स्वरूप कहलाता है। वह इस प्रकार कि-बाल, मध्यमबुद्धि और बुध के भेद से सुनाने के योग्य पात्र तीन प्रकार के हैं। ___बाल लिंग देखता है। मध्यमबुद्धि आचार का विचार करता है और बुध सर्व यत्नों से आगम के तत्व की परीक्षा करता है। यथारीति लोच करना, नंगे पैर रखना, भूमि पर सोना, रात्रि को केवल दो प्रहर सोना, शीतोष्ण सहन करना । छठ, अठम आदि अनेक प्रकार का बाह्य तप, महा कष्ट, अल्प उपकरण धारण करना तथा उनकी शुद्धता । महान् पिड विशुद्धि, अनेक प्रकार के द्रव्यादिक के नियम, विकृति त्याग, एक सिकथ आदि से नियामेत पारणा, अनियत विहार, निरन्तर कायोत्सर्ग आदि करना, इत्यादि वाहाप्रवृत्ति बाल को विस्तार से कहना। ___ मध्यमबुद्धि को इर्यासमिति आदि त्रिकोटि परिशुद्ध और आदि अन्त तथा मध्य में हितकारक साधु का आचार कह बताना । (वही कहते हैं) परम कल्याण के इच्छुक साधुओं प्रवचन की माता के समान आठ माताएं नियम से निरन्तर स्मरण करना । इन प्रवचन-माताओं सहित साधु को नियम से संसार