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दुर्बलिका पुष्यमित्र की कथा
उनके नाम ये हैं:- घृतपुष्यमित्र, वस्त्रपुष्यमित्र और दुर्बलिकापुष्यमित्र।
उनमें घृत-पुष्यमित्र की ऐसी चमत्कारिक लब्धि थी किद्रव्य से घी लाना क्षेत्र से उज्जयिनी में से, काल से ज्येष्ठ आपाड़ में, भाव से समीप ही प्रसव करने वाली दरिद्र स्त्री का दिया हुआ, गच्छ को आवश्यकता हो उतना। __ वस्त्र-पुष्यमित्र की यह लब्धि थी कि-द्रव्य से वस्ता लाना, क्षेत्र से मयुरा नगरी में से लाना, काल से शिशिर ऋतु में और भाव से दरिद्र विधवा के हाथ से, सारे गच्छ को पूर्ण हो उतने परिमाण का।
दुर्बलिका-पुष्यमित्र की यह लब्धि थी कि-वे नव पूर्व पढ़कर उनको सदैव परावर्तन करते थे, जिससे वे अतिशय दुर्बल हो गये थे। उनके (दुर्बलका-पुष्यमित्र के) दशपुर नगर में दशबल (बुद्ध के भक्त बहुत से सम्बन्धी थे। वे कौतुक से गुरु के पास आ कहने लगे__ आपमें ध्यान नहीं, हमारे भिक्षु सदैव ध्यान में तत्पर रहते हैं। तब गुरु बोले कि-ध्यान तो हमारे ही में अति प्रधान है। जिससे यह तुम्हारा सम्बन्धी ध्यान ही से दुर्बल हो गया है । तब वे बोले कि-यह घर में था तब स्निग्ध आहार करता था, उसीसे बलवान था । किन्तु अब उस वह नहीं मिलने से दुबेल हो गया है। तब गुरु बोले कि-यह तो यहां भी कभी घी रहित खाता ही नहीं।
वे बोले कि-इसकी तुम्हें किससे खबर मिलती है ? गुरु ने कहा कि-इस घृतपुष्य से-तथापि उन्होंने यह बात नहीं मानी।