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( १३ )
राशियों में स्थित ग्रहों के फल में भेद की कल्पना की गयी है ।
राशियों के स्वामित्व के प्रसंग में मेषादि १२ राशियों और सूर्यादि ७ ग्रहों के पारस्परिक सम्बन्ध का विचार किया जाता है । जो राशि या राशियाँ जिस ग्रह के विशेष प्रभाव को प्रकट करती हैं, उस राशि का स्वामी वह ग्रह माना गया है यथामेष एवं वृश्चिक राशियाँ मंगल के विशेष प्रभाव को दर्शाती हैं । अतः मंगल इनका स्वामी माना गया है। वृषभ एवं तुला राशियाँ शुक्र के प्रभाव को प्रकट करती हैं । इसलिए शुक्र इनका स्वामी कहा जाता है । इस प्रकार अन्य ग्रह एवं राशियों के बारे में जानना चाहिए ।
मेषादि १२ राशियाँ और इनके स्वामी ७ ग्रह इस क्रम में सूर्य और चन्द्रमा एक-एक राशि के तथा मंगल आदि ग्रह दोदो राशियों के स्वामी हैं । कारण यह है सूर्य और चन्द्र कारकत्व' की दृष्टि से राजा होने के कारण प्रारम्भ में चक्रार्ध या ६ राशियों के स्वामी थे । सिंहादि ६ राशियों का स्वामी सूर्य और विलोम क्रम से कर्कादि ६ राशियों का स्वामी चन्द्र था । इन दोनों ने अपने-अपने चक्रार्ध की प्रथम राशि को अपना गृह बनाया तथा सूर्य ने अनुलोम क्रम से और चन्द्रमा ने विलोम क्रम से अग्रिम राशियाँ बुध, शुक्र, मंगल, गुरु और शनि इन ग्रहों को प्रदान कीं । फलस्वरूप सूर्य और चन्द्रमा एक-एक राशि के और अन्य ग्रह दो-दो राशियों के स्वामी हो गये ।
१. सूर्य और चन्द्रमा राजा गुरु एवं शुक्र = मन्त्री
२. देखिये : कण्ठीरवं विक्रमिणं विलोक्य
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बुध = युवराज मंगल = सेनापति शनि = सेवक
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