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( ११ )
भाव के अन्त में स्थित ग्रह का फल; इक्कीसवें द्वार में विवाह आदि का विचार दिया गया है; बाईसवें द्वार में विवाद (लड़ाईझगड़े में हार-जीत का कथन; तेईसवें में संकीर्ण पद का निर्णय; चौबीसवें में दीप्त प्रश्न ( विदेश गये व्यक्ति का मरण बन्धनादि विचार ) ; पच्चीसवें द्वार में प्रवासी के आवागमन का निर्णय किया गया है; छब्बीसवें में मृत्युयोग; सत्ताइसवें में दुर्ग का टूटना, अट्ठाइसवें में चोरी आदि सात स्थान; उनतीसवें में क्रयविक्रय एवं तेजी - मन्दी का ज्ञान; तीसवें द्वार में नौका, मृत्यु और बन्धन इन तीनों का विचार किया गया है; इक्तीसवें द्वार में गत दिन के लाभ का विचार; बत्तीसवें में लग्नेश से मासफल; तैंतीसवें में द्रेष्काणादि द्वारा फल; चौंतीसवें द्वार में महान् एवं अद्भुत दोषों का ज्ञान है; पैंतीसवें द्वार में नृपादि की दिनचर्या और छत्तीसवें द्वार में गर्भ में ( पुत्र या कन्या) का विचार किया गया है । इस प्रकार इस भुवनदीपक ग्रन्थ में छत्तीस द्वार हैं ।
१. अथ गृहाधिपद्वारम्
मेषवृश्चिकयोर्भीमः शुक्रो वृष तुला भृतोः । बुधः कन्यामिथुनयोः कर्कस्वामी तु चन्द्रमाः ॥ ११ ॥ स्यान्मीन धन्विनोर्जीवः शनिर्मकरकुम्भयोः । सिंहस्याधिपतिः सूर्यः कथितो गणकोत्तमैः ॥ १२॥ अर्थात् मेष एवं वृश्चिक इन दो राशियों का स्वामी मंगल, वृष एवं तुला इन दोनों का शुक्र, मिथुन एवं कन्या का स्वामी बुध और कर्क का स्वामी चन्द्रमा है । धनु एवं मीन का स्वामी वृहस्पति, मकर एवं कुम्भ का स्वामी शनि और सिंह का स्वामी
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