Book Title: Bhuvan Dipak Author(s): Padmaprabhusuri, Shukdev Chaturvedi Publisher: Ranjan Publications View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री मन्महागणधिपतये नमः भुवन दीपक सारस्वतं नमस्कृत्य महः सर्वतमोपहम् । ग्रहभावप्रकाशेन . ज्ञानमुन्मील्यते मया ॥१॥ अर्थात् समस्त अन्धकार (अज्ञान) को दूर करने वाले सरस्वती के तेज को नमस्कार कर, इस ग्रहभाव प्रकाश ग्रन्थ के द्वारा मैं—प्रश्नशास्त्र- के ज्ञान को स्पष्ट रूप से प्रकट करता हूँ। गृहाधिपा उच्चनीचा अन्योन्यं मित्रशत्रवः । राहोगु होच्चनीचानि केतुर्यत्रावतिष्ठते ॥२॥ स्वरुपं ग्रहचक्रस्य वीक्ष्यं द्वादशवेश्मसु । निर्णयोऽभीकालस्य यथालग्नं विचार्यते ॥३॥ अहो विनष्टो यादृक् स्याद्राजयोग चतुष्टयम्। लाभादीनां विचारश्च लग्नेशावस्थितेः फलम् ॥४॥ गर्भस्य क्षेममेतस्य गुविण्याः प्रसवो यदा। अपत्ययुग्म प्रसवो ये मासा गर्भसंभवाः ॥५॥ धृता विवाहिता भार्या विषकन्या यथा भवेत् । भावान्तगो ग्रहो यादृग्विवाहादि विचारणाः ॥६॥ वक्तव्यता विवादस्य संकीर्णपदनिर्णयः । निश्चयो दीप्तपृच्छासु पथिकस्य गमागमौ ॥७॥ मृत्युयोगो दुर्गभङ्गश्चौर्यादिस्थानसप्तकम् । क्रयणकार्यविज्ञानं नौमृत्युबन्धनत्रयम् ॥८॥ For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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