Book Title: Bhuvan Dipak
Author(s): Padmaprabhusuri, Shukdev Chaturvedi
Publisher: Ranjan Publications

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२ ) सूर्य, ऐसा ज्योतिषशास्त्र के आचार्यों ने कहा है। ___ भाष्य : अपने ग्रन्थ के प्रथम द्वार में आचार्य पद्मप्रभुसूरि ने राशियों के स्वामित्व का विवेचन किया है। क्रान्तिवृत्त या राशिचक्र के बारहवें भाग को राशि कहते हैं। इस क्रान्तिवृत्त में अश्विनी से रेवती पर्यन्त २७ नक्षत्र स्थित हैं। अतः २४ नक्षत्र से १ राशि बनती है। यथा—अश्विनी, भरणी एवं कृतिका के १ पाद से मेष राशि; कृतिका के शेष ३ पाद, रोहिणी एवं मृगशीर्ष के २ पादों से वृषभ राशि, मृगशीर्ष के शेष २ पाद, आर्द्रा एवं पुनर्वसु के प्रारंभिक ३ पादों से मिथुन राशि और पुनर्वसु का शेष १ पाद, पुष्य एवं आश्लेषा से कर्क राशि बनती है। इसी प्रकार २१ नक्षत्र या ६ नक्षत्र पादों से आगे भी राशियों की कल्पना कर लेनी चाहिए। __ ज्योतिषशास्त्र के प्रत्येक स्कन्ध में राशियों का महत्त्वपूर्ण स्थान है । क्योंकि सौर परिवार के सदस्य सभी ग्रह राशिचक्र या क्रान्तिवृत्त में परिभ्रमण करते हैं । अतः ग्रहों की गति, युति एवं स्थिति आदि का ज्ञान राशियों की सहायता से होता है। राशि चक्र में अपनी गति से चलते हुए ग्रहों का भिन्न-भिन्न राशियों में भिन्न प्रकार का प्रभाव होता है। उदाहरणार्थजब सूर्य वृषभ राशि में स्थित होता है, तब उसकी किरणें भारत उपमहाद्वीप के प्रदेशों पर सीधी पड़ती हैं। परिणामतः उन दिनों हमारे यहाँ गर्मी अधिक पड़ती है। इसी प्रकार जब सूर्य मकर राशि में चला जाता है तब उसकी किरणें इस उपमहाद्वीप पर तिरछी पड़ती हैं। परिणामस्वरूप उन दिनों हमारे यहाँ सर्दी पड़ती है । सूर्य के स्थूलतम प्रभाव का यह अन्तर हम सदैव अनुभव करते हैं। इसी आधार पर फलित ज्योतिषशास्त्र में विभिन्न For Private and Personal Use Only

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