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अनेकान्त
[वर्ष ६
पचासौ व्यक्ति उसमें काम करते हैं-आदमी, औरत, शायद अकृतपुण्यने अनुभव किया हो कि वह लड़के, लड़कियाँ !
छोटा है ! बड़प्पन भाग्यने उसकी आँखोंसे ओझल . शामका वक्त! श्रमिकोंकी छुट्टीका समय ! सुकृत- कर रखा है ! पुण्य प्राजकी संचित अन्न-राशिके समीप बैठा है! असलमें अकृतपुण्यकी दशाने सुकृतपुण्यकी सामने श्रमिकोंकी भीड़ लगी है ! बारी-बारीसे वह अमीरी पर हमला किया था! वह समृद्धिकी नश्वरता चने-पारिश्रमिक-मिहनत-देकर विदा कर रहा है! पर अवाक् हो रहा था-अतीतके कई चित्र उसके लोग लौट रहे हैं-खुशी-खुशी ! सन्तोष और मस्तिष्कमें तूफान उटा रहे थे ! और वह उन्हें सँभाल सफलमनोग्थकी म्फूर्ति लेकर !
नहीं पा रहा था, विह्वल था, दीन था ! 'कौन अकृतपुण्य ! तू यहाँ कैसे आया-बेटा!' बटुए मेंसे मुट्ठी-भर सोनेके सिक्के निकाल कर
अकृतपुन्य पहले कुछ डरा! पर, यह देखकर कि अकृतपुण्यके हाथों में देते हुए वह बोला-'इन्हें ले सुकृतपुण्यकी वाणीमें कोमलता और चेहरे पर ममता जाओ बेटा-लो' । है, अभय होकर बोला-'इन बच्चोंके साथ मैं भी अकृतपुण्यने उन्हें लिया, कि वह चिल्लायाचला पाया"!'
'जला, जला! यह क्या दिये-मुझे अंगारे? आग?' 'क्यों ? क्या काम किया है तूने ?'
. सुकृतपुन्यने देखा तो चकित ! सच, अकृतके
हाथोंमें सोनेके सिक्के नहीं, दहकते अंगारे थे ! सुकृतपुण्य मर्माहत-सा रह गया, कुछ क्षणके अत्याश्चर्य !!! लिए ! मनमें एक द्वन्द-मा छिड़ गया था-उसके ! उसने सब सिक्के वापस ले लिए-सोचासोचने लगा-'उफ ! कैसी है-यह दुनिया ? जिमके कितना पापी जीव है यह ? कौन कर सकता है इसका बापका मैं नौकर रहा वर्षों, बही श्राज मुट्ठी-भर चनों उपकार-एक धर्मके सिवा !.... समर्थताका दावा के लिए मेरी गुलामी खरीद रहा है?
करने वाला दीन, रुद्रमानव ! फिसे बना बिगाड़ • वह देखने लगा--करुणाई-दृष्टिसे ससकी ओर! सकता है? रालत...! अपने-अपने भाग्यसे सब अकृतपुण्य कांप उठा ! उसका छोटा-सा मन धक-धक् सुख-दुख पाते हैं!' करने लगा ! सोचने लगा-'सबको तत्काल चने अकृतपुण्य हथेलियोंको फूंक रहा था ! जलन मिलते हैं. मेरेलिए इतनी चिन्ता, सोच-फिक, विलम्ब पड़ रही थी-शायद ! सुखकी ठण्डक देनेवाली दौलत क्यों? काम मैंने किसीसे कुछ कम तो किया नहीं। ने भाग उगली थी, न ? अब तक देह दुख रही है, नस-नस झनझना रही है- 'जितने चने तू ले जा सके, भर कर ले जा! फिर?
छुट्टी है-तुझे! और मैं कुछ नहीं कर सकता-बेटा!' सूखे मोठ!
दुखितचित्त और ऊँधे कण्ठसे सुकृतपुण्यने कहा ! दयनीय भाकृति !!
सुकृतपुण्यकी आँखोंसे दो बूँद आँसू टपक पड़े! भलए गलेसे वोला-'अकृतपुण्य ! कितना काम फूटा वर्तन और फूटी किस्मत दोनोंमें बहुत कुछ किया है तूने ?'
समानता है! न इनके पास दुनियाका दुलार है, न . वह बोला-'बहुत !
भादर! कुछ ठहरता नहीं, लाख चेष्टाएँ की जाँय ! सकृतपुण्यने दुलारसे पीठपर हाथ फेरते हुए कहा हिकारतकी नजर और अभाव, यही दो चीजें इनके -'इतनी मिहनत मत फियाकर-बेटा ! तू अभी बाँटमें भाईहों जैसे! छोटा है'
ढीली गाँठ और फटे कपड़ेके कारण रास्ते भर