Book Title: Anekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 25
________________ अनेकान्त [वर्षे ६ Hin real life is led in his hand und पीटनेका इलज़ाम लगाया जासकता है और यदि यह is known to none but himself! All खुल्लमखुला अपने दोषोंका हो प्रदर्शन करने लगे तो day long and every day, the mill of छिद्रान्वेषी समालोचक यह कह सकते हैं कि लेखक बनता his brain isgrindingand his thought और उसकी पारम-निन्दा मानों पाठकोंके लिए निमन्त्रण not other things, are his history. .: A है कि वे लेखककी प्रशंसा करें! His licts and bis words are merely the visible thin crust of his world, अपनेको तटस्थ रखकर अपने सत्कर्मों तथा दुकपिर with its Futtered show summits Eि डालना उनको विवेककी तराजूपर पावन तोले पाय and its reant wintes of water and रत्ती तौलना, सचमुच एक महान कलापूर्ण कार्य है। they are so trifling part of his आरमचित्रण वास्तवमें 'तरवारकी धारपै धावनो है, पर इस bulk- mere skin enveloping it. The कठिन प्रयोग अनेक बडेसे बड़े कलाकार भी फेल हो सकते most of him in hidden-it and its हैं और छोटेसे छोटे कोखक और कवि अदभुत सफलता प्राप्तvolcanic firen tai tosh and boi) कर सकते है। बहुत सम्भव है कि म. सुरूसीदासजीको को and never rest, night nor day. These कविवर बनारसीदासजीके समकालीन थे. प्रात्मचरित लिखने में are bis life and they are not written, Eevery day would make whole उतनी सफलता न मिलसी जितनी बनारसीदासजीको मिली। book of eighty thousand words यद किसी/चित्र खिंचवाने वाले को तस्वीर देते समय विशेषthure hundred and sixty five book रूपसे प्रारम-चेतना होजाय तो उसके चेहरेकी स्वाभाविकता a yeur. Biographies ure but the नष्ट ह जायगी। उसी प्रकार प्रात्मचरित लेखकका अहंभाव clothes and buttons of the man. The अथवा पाठक क्या कयाल करेंगे' यह भावना उसकी iniography of the man hinnalf can सफलताके लिए विघातक होसकती है। not be written. भारमनिया में दो ही प्रकार के व्यक्ति विशेष सफलता इसका सारांश यह है "मनुष्य के कार्य और उसके प्राप्त कर सकते हैं या तो बच्चोंकी तरहके भोलेभाले भादमी शब्द उसके वास्तविक जीवनके, जो लाखों-करोडो भावनाओं जो अपनी सरल निरभिमानतासे यथार्थ बातें लिख सकते द्वारा निर्मित होता है, अत्यल्प अंश हैं। अगर कोई मनुष्य है अथवा कोई फका जिन्हें लोक-लज्जासे कोई भय नहीं। की असली जीवनी लिखनी शुरू करे तो एक एक दिनके फर शिरोमण कविवर बनारसीदासजीने तीनसौ वर्णनके लिये कमसे कम अस्सी हजार शब्द चाहिये और वर्ष पहिले प्रारमचरित लिखकर हिन्दीके वर्तमान और इस प्रकार माल भरमें तीन सौ पैंसठ पोथे तय्यार हो भावी करडीको मार्ना न्यौता दे दिया है। यद्यपि उन्होंने जायेंगे अपने वाले जीवनचरितीको यादमीके कपड़े और विनम्रता पूर्वक अपनेको कीट पतंगोंकी श्रेणी में रक्खा है बटनं ही समझना चाहिये, किसीका सचा जीवनचरित (हमसे कीट पतंगकी बात चलावै कौन) तथापि इसमें लिखना तो सम्भव नहीं।" सन्देह नहीं कि वे भात्म-चरित-लेखकोमें शिरोमणि हैं। फिर भी बहसी पचहत्तर दोहा और चौपाइयों में कवि- एक बात और कविवर बनारसीदासजीने सं. १६७० वर बनारखीवामजीने अपमा चरित्रचित्रण करनेमें काफी में हमारे जन्म-स्थान फीरोजाबादमें गाफी भावकी थी और सफलता मासकी है और जैसा कि हम ऊपर लिख चुके हैं इस प्रकार हमारे घरके एक मजदरको मार्थिक लाभ पहुंउनके इस अन्धमे अद्भुत संजीवनी-शक्ति विद्यमान है। चाया था। आज तीन सौ तीस वर्ष बाद उसी फीरोजाबाद उनके सामायिक प्रन्धोंसे यह कहीं अधिक जीवित रहेगा। का निवासी कलमका एक मजदूर उन्हें यह श्रद्धाञ्जलि यद्यपि हमारे प्राचीन अषि महर्षि चारमानं विद्धि' अर्पित कर रहा है। (अपनेको पहचानो)का उपदेश सहस्रों वर्षोंसे देते मा रहे फ्रीरोजाबाद जिला भागरा] बनारसीदास चतुर्वेदी पर यह सबसे अधिक कठिन कार्य है और इससे भी बालकनाथराम प्रेमी द्वारा सम्पादित 'अर्धकथानक' अधिक कठिन अपना चरित्र-चित्रण यदि लेखक अपने के साथ प्रकाशित। दोषको स्वाके अपनी प्रशंसा करे तो उसपर अपना ढोल

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