Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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१२]
- प्रस्तावना
बृहद्गन्छीय देवसूरिके वंशमे
अजितदेवसूरि
आनन्दसूरि (पट्टधर)
२ प्रद्योतनसूरि (पधर)
३ जिनचन्द्रसूरि (पट्टधर)
१ नेमिचन्द्रसूरि (पट्टधर)
(आ०म० को० मूलकार)
२ श्रीचन्द्रसूरि (शिभ्य)
१ आम्रदेवसूरि (शिष्य)
(आ०म०को० वृत्तिकार)
हरिभद्रमूरि (शिष्य)
१ हरिभदसू.
(मुख्यपट्टधर)
२ विजयसेनसू.
(शिष्य-पट्टधर)
३ नेमिचन्द्र. (शिष्य-पट्टधर)
४ यशोदेव.
(शि०-५०)
५ गुणाकर
(शिष्य)
६ पार्श्वदेव (शिष्य)
समन्तभद्रसूरि उपर लिखित पट्टयंत्र जिस अनन्तनाथचरित की प्रशस्ति से लिया गया है उस प्रशस्ति को उपयोगी आद्य १८ गाथाएं और ४८ वी गाथा वाचकों की अनुकूलता के लिए दे रहा हूं
अस्थि समुन्नयसाहो सव्वुत्तमपत्तविरइयच्छाओ। सुकइजुओ बहुसउणो सिरिवडगच्छो वरतरु व्व ॥ १ ॥ सुमणसमुणिंदसंसेवियकमो नायनिहियमणवित्ती । तम्मि पहू उप्पन्नो गुरु ब्व सिरिदेवसरि ति ॥ २ ॥ तस्सऽनयम्मि जाओ निग्गंथसिरोमणो सुवित्तो वि । सिरिअजियदेवसूरी कयंतबुद्धी वि कारुणिओ ॥ ३ ॥ तो सजाया आणंदसारिणो जणियजणमणाणंदा । तत्तो य तिनि जाया मुणीसरा भुवणविक्खाया ॥ ५ ॥ सिरिनेमिचंदसरी पढमो तेसि न केवलाणं पि । अवराण वि समयसहस्सदेसयाणं मुणिंदाणं ॥ ५ ॥ जेण लहुवीरचरियं रइयं तह उत्तरज्झयणवित्ती । अक्वाणयमणिकोसो य रयणचूडो य ललियपओ ॥ ६ ॥ वीओ वीयसमुग्गयचंदकलानिक्कलंकतणुजट्ठी । सिरिपज्जोयणमूरी तिव्वतवञ्चरणकरणरओ ॥ ७ ॥ तइया य अमयरसवरिससरिससदेसणाजणाणंदा । जिणचंदररिपहुणो ससहरकरसरिसजसपसरा ॥ ८ ॥ सच्छत्त-गुरुत्त-गहीरयाहिं लीलाए जेहिं निजिणिया । फलिहमगि-गयणवित्थर-दुद्धोदहिणो गुरुतरा वि ॥ ९॥ . तो तेहिं दुन्नि विहिया निययपए सूरिणो भुवणग(म)हिया। सरला विलसिरचित्ता समुन्नया दंतिदंत ब्व ॥१०॥ १. इन अजितदेवसूरि के पूर्वाचार्यों की परम्परा का क्रम आगे मूलकार नेमिचन्द्ररि के परिचय में दे दिया है। २. ये हरिभद्रसूरि आम्रदेवसूरि के गुरुभाई श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य है। ३. अनन्तनाथचरित के कर्ता ॥ ४-५. इन दो आचार्योने आ० नेमिचन्द्रीय अनन्तनाथचरित का संशोधन किया ।
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