Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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३१८
आख्यानकमणिकोशे
हा हा लच्छीहर ! लच्छिवच्छदुल्ललियवच्छ ! अच्छेरं । पेच्छम् समुहविजया विजं वयं एव परिभविया ॥२२०॥ दीवायणेण इमिणा संखोहियमाणसा समग्गा वि । अक्खोह्गुणजुया वि हु जायववग्गा खयं नीया ॥२२॥ अइथिमिय-सुत्थिया वि हु अप्पत्थियदत्थणत्तदुत्थाओ । नायरयइत्थियाओ वच्छ ! अणाहाआ डझंति ॥२२२॥ सागरगंभीरिमसंगया वि जलणण लाघवं नीया । जत्तेण पालिया वि हु पेच्छमु पउरा विणसंति ॥२२३।। अहियं हिमवंतसमुन्नो वि बहुदेवदेवडलनियरो । निद्दङ्मूलभागो विहडइ खडहडियसिहरग्गो ॥२२४॥ अवलोयमु अयलपइट्टिया वि निट्टवियमेइणिपइट्टा । निवडंति खडहडारावभीसणा हेमपासाया ॥२२५।। दढधरणधरियपायासु डझमाणासु हथिसालामु । डझंति तडयदारावगम्भिणं वंससंघाया ।।२२६॥ पइदियहं पूरणपूरिओ वि मणि-कणग-रयणभंडारो। उवहसियधणयकोसो वच्छ ! विणट्टो विहिवसेण ॥२२७॥ अभिचंदं रायं पीय इसप्पहं सयलमुहयरं सोमं । जायवलच्छी पेच्छंतिया विकह झामिया सवा ? ॥२२॥ वच्छऽच्छेरयमवरं देवइ-वसुदेव-रोहिणिजुओ वि । पेच्छंताणं पज्जलइ रहवरो तह वि जीवामो ॥२२९॥ दुक्क्यपरिणइपन्हीए पेरिया पेच्छ पडइ पुरिमहिला । कुंतय-मद्दीरूवाहि दोहिं बाहाहिं धरिया वि ॥२३०॥ एरिसगाण वि सुकुम्भवाण पुरिसाणमेरिसं वसणं । पुन्नक्खएण जायइ जियाणमियरेसि का गणणा ? ॥२३॥ एत्थंतरम्मि हलिणा भणिओ कण्हो सुदुक्खिओ संतो । बंधव ! कत्थ वयामा ? किं करिमा ? कस्स पोकरिमो? ॥२३२॥ कस्स मुहं दरिसामो ? किं वा सरणं वयं पवजामो ? । इण्हि का अम्ह गई हरिणाण व जूहभट्टाण ? ॥२३३॥ एयावत्थं नया पेच्छंताणं समिद्धमम्हाणं । वजमयं नणु हिययं जं न वि सयसिक्करं जाइ ॥२३४।। सरि जिणिंदवयणं तओ पयट्टति दाहिणाभिमुहं । वारं वारं परिवलियकंधरं ते पलोयंता ॥२३॥ पंडुयुया अम्हाणं संपइ सरणं ति पंडुमहुराए। चलिया ललियगईए मयगललील विडंबंता ॥२३६।। भृसणजुइविजुजोयभासुरा नयणनीरकयवरिसा । पाउसजलहरसरयभविन्भमा पहनहम्मि ठिया ॥२३॥ समकालं सारीरिय-माणसदुक्खेण ते समुप्फुन्ना । पेच्छाऽहो ! बलियाण वि बलिओ बाढं विहिनिओओ ॥२३८।। पहिय व्व पहे वच्चंति पायचारेण भुक्खिया तिसिया । कंद-फल-पत्त-पुप्फाइभक्खिणो खवियतणुसोहा ॥२३९॥ भूमीसयणा सयणाइविरहिया वत्थ-पावरणरहिया । पहाण-विलवण-भोगोवभोगमुक्का मुणिवरु व्व ॥२४॥ ते तारिसा वि मुहमुत्थिया वि अविउत्तसयणवग्गा वि । एक्कपए च्चिय दुहिया अहो ! दुरंतो विहिनिओगो ॥२४१॥ सव्वत्थ वि वित्थरियं जह किर दीवायणेण बारवई । दड्ढा दो उव्वरिया नवरं बलभद्द-महुमहणा ॥२४२।। ते वि य कमेण जंता संपत्ता पुव्वदक्खिणविभागे । धयरट्टरायबलवंतसत्तुसुयरायकयरक्खं ।।२४३।। सत्तंगसुप्पइटें उन्नयकरदाणवरिसरमणीयं । कुंभत्थलसोहिल्लं जहत्थयं हत्थिकप्पपुरं ॥२४४।। एत्थंतरम्मि कन्हो छुहाभिभूओ हलाउहं भणइ । आणेहि भोयणं भाय ! भुक्खिओऽहं दढमसत्तो ॥२४५॥ गंतं पयमवि तत्तो भणइ हली वच्छ ! होसु वीसत्थो । आणेमि भोयणं बंधवम्स मा बच्चसु विसायं ॥२४६।। परमेयं वइरिपुरं जइ कह वि हु वइरिएहिं पारद्धो । मुंचामि सीहनायं ता रक्खसु वच्छ ! अप्पाणं ॥२४॥ गंतूण नयरमञ्झे महरिहमणिकडगविणिमयं काउं । कुल्लू रियावणाओ मंडगपभिई परममन्नं ॥२४८॥ कल्लालियावणाओ सरगाई सुरभि पाणगं घेत्तु । जावाऽऽगच्छइ सहस त्ति ताव सन्निहियसत्तहिं ।।२४९॥ सन्नद्धबद्धकवएहिं हकिओ हण हण त्ति भगिरेहिं । बलदेवो वि हु संगोविऊग तं भत्त मेगस्थ ॥२५॥ उप्पाडिऊग स महप्पमाणमालाणखंभमणवरयं । संचूरियं पवत्तो ससीहनायं तमरिसेन्नं ॥२५॥ कण्हो वि तुरियमागम्म सम्ममादाय परिहमुदंडं । हणिऊणं हयमहियं विहियमसेसं पि रिउसेन्नं ॥२५२॥ अमलियमाणो बलभद्दभाउणा मुइयमाणसा मिलिओ । जेण न साहा वसणस्सिा वि सज्झो सियालाणं ॥२५३॥ अह कत्थइ तरुतलछाइयाए तरुपत्तरइयपुडएहिं । भुंजंति जाव ता तेहिं सुमरियं पुव्वभुत्तस्स ॥२५४॥ हा जिय ! तारिस जाइयाए तह भुंजिऊण सविलासं । सम्माणदाणपरिवजिएहिं परिभुजद इयाणि ॥२५॥
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