Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 446
________________ ४१. विवेकिजनस्वकृतकर्मोदयोपनतदुःखाधिसहनाधिकारे मेतार्याख्यानकम् ३५९ पुच्छमु जइ मह पासे कहमवि ते पव्वयंति मुहभावा । तो पउणयामि रायं ! न अन्नहा निच्छओ एसो ॥१४॥ मुणिणा विहु काऊणं वयणं पउणं कुमारया पुट्टा । पडिवन्नं पन्चयगं तेहिं वि पियजीवियत्तणओ ॥१४६॥ तत्तो य कलाकुसलत्तणेण संवाहिऊणमंगाणि । पउणीकाउं दोन्नि वि मुमुहुत्ते दिक्खिया विहिणा ॥१४७|| मुणिचंदो वि हु पत्तो अहिणवपव्वइयएहि परियरिओ। राहायरियसमीवे पालइ सम्म समणधम्म ॥१४॥ ताणं मझे नरनाहनंदणो पुन्नपरिणइवसेण । चिंतइ भव्वं जायं बला वि पव्वाविओ जमहं ॥१४॥ विप्पसुओ वि वियप्पइ मणम्मि कहमहमणज्जमुद्देण । नीएणमणण हढेण ? विनडिओ जाइमयवसओ ॥१५॥ ते दो वि सुद्ध-कलुसियचित्ता पालंति समणपजायं । पज्जते मरिऊणं जाया वेमाणिया देवा ॥१५१॥ मुंजंति तत्थ भोए मणहरलायन्न-रूवकलियाहिं । अमरंगणाहिं सद्धिं विविहालंकाररुइराहिं ।।१५२॥ अवयरण-जम्म-पव्ययण-नाण-निव्वाणसंभवदिणेसुं । कल्लाणगेसु पंचसु जिणाणमिह मणुयलोयम्मि ॥१५३।। आगच्छंति कुणंति य पूयं महिमाइयं पमोयवसा । नंदीसरदीवाइसु सासयजिणभवणठाणेसु ॥१५४॥ तित्थयरपायमूले सुणंति धम्मं जिणिंदपन्नत्तं । अन्न पि धम्मकिच्चं कुणंति तित्थुन्नइप्पमुहं ॥१५५॥ अह अन्नया कयाई धम्मपियत्तेण तेहिं तित्थयरो। पुट्टो सुरलोयाओ चुया समाणा मणुयजम्मे ॥१५६॥ किं सुलहबोहिया दुलहबोहिया वा वयं भविस्सामो ? । भणियं जिणेण नरनाहपुत्त ! तं सुलहजिणबोही ॥१५॥ एसो पुण भवओ भद्द सहचरो सो चुओ चरित्तगुणं । किच्छेणं पाविहिही मणुयभवम्मि वि समायाओ॥१५८॥ इय सोऊणं सुरलोयमइगया ते जिणं पणमिऊणं । तो नियसुही पुरोहियसुएण भणिओ महाभाग ! ॥२५९|| मं पडिबोहसु जम्हा जिणेण हं दुलहबोहिओ भणिओ। मा हुपमायं काहिसि जइ तुह मह उवरि पडिबंधो ॥१६॥ इय संकेयं काउं सुरलोयाओ चुओ दियस्स सुओ । जाईमयदोसेणं गुरुविसयपओसवसओ य ॥१६॥ रायगिहम्मि पुरवरे पावियपञ्चंतमेयघरणीए । गब्भम्मि समुप्पन्नो जाइमयकुकम्मवसयाए ॥१६२॥ तारिसजाइजुओ वि हु पालियतारिसविसिट्टचरणो वि । उववन्नो हीणकुले अहो! दुरंतो मयविवागो ॥१६३॥ तत्थेवऽवट्टिया सेट्ठिभारिया मेइणीए पियसहिया । सा उ दढनिंदुयत्तेण दूमिया गमइ दियहाई ॥१६॥ नवरमिमीए वि हु गम्भसंभवो मेइणीए सह जाओ। तो सेट्ठिभारियाए सायरमब्भत्थिया सहिया ॥१६५। पियसहि ! अहमेएणं कयत्थिया निंदुयत्तदोसेण । ता जइ कहमवि समगं पसवामो तो नियगजायं ॥१६६॥ भद्दे ! देजसु मज्झं कह वि हु जीवेज तुज्म पुन्नेणं । तीए वि हु पडिवन्नं नत्थि अविसओ सिणेहस्स ॥१६७॥ अद्धट्टमदिवससमन्निएसु मासेसु नवसु दिवसाणं । कमसो य वइकंतेसु सेट्टिमेयाण भज्जाओ ॥१६॥ सममेव पस्याओ सेट्टिपियाए सुया मया जाया । इयरीए लक्खणधरो निरुवमरूवो सुओ जाओ ॥१६॥ तत्तो जहा न जायइ छक्कन्नमिमाहिं विहियमायाहिं । संचारियाई तह ताइं दो वि छन्नं संवच्चाई ॥१७॥ दरं रायविरुद्धं सत्थविरुद्धं न जं जणपसिद्धं । तं ताहिं तया चेट्टियमहो! ह कुडिलत्तमित्थीणं ॥१७॥ नायमुवट्टियसेट्रिस्स भारिया सुरकुमारसमरूवं । अक्खयतणू पसूया पुत्तं ति जणेण नयरम्मि ।।१७२॥ तत्तो य वज्जंति तरनिवहां गायति गुणडगायणसमूहा । नचंति रमणिसत्था पविसंति सुहक्खपत्ताई ॥१७३॥ वेसमणसमाणधणो वियरइ सेट्ठी पभूयधणनिवहं । बद्धावयहत्थाओ गिण्हइ सो विविहवत्थाई ॥१७४।। अणवरयविविहवियरिजमाणमुहभक्ख-भोजमुत्थजणो । इय वद्धावणयमहामहूसवो सिट्टिणा विहिओ ॥१७५।। सा वि सुयं मेईए पाडइ पाएमु एस तुह तणओ । नाम पि हु दिन्नं तीए संतियं तस्स मेयजो ॥१७६॥ वडा सो सेट्टिगिहे कलाकलावेण देहुवचएण । गयणे सियपक्खे ससहरो व्व निस्सेसजणसुहओ ॥१७७॥ अट्टवरिसप्पमाणो लेहायरियस्स पायमूलम्मि । बाहत्तरीकलाओ सयलाओ पाढिओ पिउणा ॥१७८॥ १. स्वापत्ये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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