Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 449
________________ ३६२ आख्यानकमणिकोशे तो वयपरिणइवसओ सुरोवरोहाओ भुत्तभोगाणि । चरणखओवसमाओ संजायविमुद्धभावाणि ॥२५॥ गरुईए विभूईए समयं पव्वावियाणि नरवडणा । सिरिवीरजिणेसरपायअंतिए ताणि सव्वाणि ॥२५१।। अव्भसियदु विहसिक्खाणि विणय-वेणइयकरणनिरयाणि । गुरुकुलवासे विहरंति विहुयरय-मलजिणाणाए ॥२५२॥ मेयजो उण मेयजपरिणई वयविमुद्धमुहभावो । निरुवमकरुणारसपूरपुन्नजलरासिसारिच्छो ॥२५३॥ विहरंतो संपत्तो कयाइ पुणरवि य रायगिहनयरे । भिक्खट्टाए पविट्टो सुवन्नकारस्स गेहम्मि ॥२५४॥ सो उण मुवन्नयारो पइदिणमट्टोत्तरं जवाण सया । सोवन्नियाण सेणियनरवइणो दिन्नवेयणओ ॥२५५॥ परमं विस्सासपयं भोयणविसए सया वि अपमत्तो । निव्वत्तइ निरुवमवीरनाहपयपूयणनिमित्तं ॥२५६॥ तो सो पुंजीकाउंजवे पविट्ठो गिहे सकजण । वियरसु दइए ! एयस्स भिक्खुणो भिक्खमिइ भणिउं ॥२५७।। ते उण घाडेरुहगेहकुंचजीवेण भुक्खिएण जवा । गिलिया पेच्छंतस्स वि मुणिणो निरुवमदयानिहिणो ॥२५८।। तो नीहरिओ वत्थाणि परिहिउं किर जवे समप्पेमि । नरवइणो जिणपुरओ सत्थियपूयानिमित्तमिमो ॥२५९।। अहिगरणीए उवरिम्मि पुंजिए नियइ न हु जवे जाव । सुन्नमणो ता जोयइ इओ तओ संभमवसेण ॥२६॥ तो पुट्टो मुणिवसभो भयवं! तं मोत्तमेगमवरस्स । संपइ न संभवो कहसु ता जवे पयडियपसाओ॥२६॥ जेणऽच्चणियावेला अइजाइ निवो जवप्पणाभावे । रुट्ठो काही भयवं ! म नवखंडं अयंडं ति ॥२६२॥ एवमिमो भणिओ वि हु विविहपयारेहिं जाव न हु किं पि । जंपइ ता रुसिऊणं किलिट्टकम्मेण सो सीसे ॥२६३।। अइनिबिडं बद्धो तेण अल्लवद्धेण सीसवेढेण । सुक्कते वद्धे वेयणाए साहू समभिभूओ ॥२६॥ चिंतइ महाणुभावो कम्मरिवुजयत्थमुज्जमंतस्स । अणुवकयपराणुग्गहकारी तुह जीव ! को वेस ॥२६५॥ रे जीव ! नरयवासम्मि तुह वसंतस्स नरयवालेहिं । छेयण-मेयण-कत्तण-दहणं-कणपमुहवियणाओ ॥२६६॥ अणुभाविजंतसरीरयस्स तुह केत्तियं इमं दुक्खं ? । इय समभावो तं दुरहियासमहियासए वियणं ॥२६७॥ पुणरवि भणिओ अज वि कहस सरूवं जवाण तमणज्ज ! । तह वि हु कुंचदयाए न कहइ सो कि पि भणियं च ॥२६॥ जो कुंचगावराहे पाणिदया कुंचगं तु नाऽऽइक्खे । जीवियमणपेहं तं मेयजरिसिं नमसामि ॥२६॥ निप्फेडियाणि दोन्नि वि सीसावेढेण जस्स अच्छीणि । न य संजमाओ चलिओ मेयज्जो मंदरगिरि व्व ॥२७॥ एवं वेयणनियरं अहियासंतस्स तस्स तवनिहिणो । अप्पुवकरणपत्तस्स खवगसेटिं पवन्नस्स ॥२७१॥ सासयमणंतमक्खयमणंतरूवं निरावरणमेगं । लोया-ऽलोयपयासं संजायं केवलन्नाणं ॥२७२॥ आउयखयम्मि समकालमेव सेलेसिभावमणुपत्तो । सो किर महाणुभावो अंतगडो केवली जाओ ॥२७३॥ एत्थंतरम्मि चेडीए केंट्टहारो महीए पक्खित्ती । तम्घायधसक्रियमाणसेण ते कुंचजीवेण ॥२७४॥ उम्गिलिया हेमजवा तं दटुं चिंतियं कलाएण । धिद्धी ! असमंजसकारयस्स मह बुद्धिवियलस्स ॥२७५॥ जेणाहं निवजामाउयस्स रिसिणो य घायगो पावो । ता मरियव्वमवस्सं मएऽहुणा रायपासाओ ॥२७६।। ता पव्वजामि अहं सकुडंबो अन्नहा न मोक्खो मे । इय बुद्धीए जाओ सुवन्नयारो समणरूवो ॥२७७॥ तं वुत्तंतं नाउं जा पेसइ तस्स निग्गहनिमित्तं । सेणियराया पुरिसे ता दिट्टो समणरूवो सो ॥२८॥ नीओ य रायपासे जंपइ निव! होउ धम्मलाभो ते । मइविहवेणं राया विरंजिओ तस्स तणएणं ॥२७॥ भणिओ जइ नो सम्मं पालसि तो तुज्झ निग्गहं काहं । सो वि हु भएण पालइ जावजीवं पि विहियवयं ॥२८॥ ॥ इति मेतार्याख्यानकं समाप्तम् ॥१२६॥ इदानी सनत्कुमाराख्यानकमभिधीयते । तद्यथा आराम व्व सुदक्खा जम्मि जणा जलहिणो पएसो व्व । परमावरियमहेला कयसुरमहणा विरायंति ॥१॥ निरुवमनियगुणवसओ कुरुजणवयभूसणं भणंतं व । अस्थि वसुहापसिद्धं कुरुजणवयभूसणं नयरं ॥२॥ १. 'श्रावधैंण' आर्द्रचर्मणा । २. काष्ठभारः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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