Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 451
________________ ३६४ आख्यानकमणिकोशे लक्खिच जेण सुहं दुवखं व जियाण दिट्टमेत्ताण । तं लक्खणं ति निसुणसु निरूवियं नाइसंखेवा ॥३७॥ रत्तं मउयं निद्धं पायतलं जस्स होइ पुरिसस्स । न य सेयणं न वंकं सो नाहो होइ पुहईए ॥३८॥ ससि-सूर-वज-चक्कं-ऽकुसंकियं कमतलं सुहं भणियं । रासह-वराह-जंबुय-विगंकियं दुक्खियाण भवे ॥३॥ वट्टे पायंगट्टे अणुकूला भारिया विणिद्दिट्टा । अंगुलिपमाणमेत्ते अंगुट्टे भारिया दुइया ॥४०॥ पहिओ पिलंगुट्टो विणयग्गेणं च पावए विरहं । भग्गेण निच्चदुहिओ इय भणियं लक्खणन्नहिं ॥४१॥ दीहा पएसिणी जस्स जायए सो वसम्मि महिलाणं । स च्चिय मडहा कलहप्पियस्स पिय-पुत्तविरहो वा ॥४२॥ दीहाए मज्झिमाए धण-महिलविणासणं कुणइ पुरिसो । तइयाए पुण विज्जा कणिटिया निंदिया जाण ॥४३॥ उत्तंगनहा धन्ना पिहुलेहिं नरा सुहाई पावंति । रुक्खेहिं हंति दुहिया 'आयरिससमेहिं रायाणो ॥४४॥ तंबेहिं विहवभोगी पउमेहिं सुही निवो य अरुणेहिं । समणो सिएहिं जायइ दुस्सीलो पुप्फियनहेहिं ॥४५॥ अइदीहर-खरजंघा वराहजंघा य कायजंघा य । ते हुति दुक्खभागी अद्धाणं निच्चपडिवन्ना ॥४६॥ जे हंस-बसह-चक्काय-मोर-गयगमणगामिणो पुरिसा । ते हंति भोगभागी गईहिं सेसाहिं दुक्खत्ता ॥४७॥ जाणू जस्स भवे गूढो गुप्फो वा सुसमाहिओ। सो भवे सुहिओ निच्चं घडजाणू न सुंदरो॥४८॥ जइ दाहिणेण वलियं लिंगं तो होइ पुत्तवं पुरिसो । अह वामे तो धूया भोगा पुण उज्जुए हुति ॥४९॥ दाहिणपलंबविसणे पुत्तो वामम्मि होइ पुण धूया। हुंति समे सुय-भोगा दीहर-वट्टेसु य इमेसु ॥५०॥ मंसोवचिया पिहुला होइ कडी धन्न-पुत्तलाभाय । संकड-हुस्साए पुणो होइ दरिदो विएसी वा ॥५१॥ बड्डयरं भोगकर हुस्सं वक्कं च होइ विवरीयं । समकुच्छी भोगड्डो उन्नयकुच्छी वि सिरिकलिओ ॥५२॥ वामावर्दै तुंगं अपसत्थं नाहिमंडलं भणियं । गंभीरदाहिणावत्तसंगयं तं पुण पसत्थं ॥५३॥ अंसस्थलं विसालं समुन्नयं मंसलं मुरोमजुयं । विसमहियया दरिदा सत्थप्पहया विणस्संति ॥५४॥ महिसम्गीवो सुहडो कंबुग्गीवो नराहिवो होइ । बहुभक्खी गुरुदुक्खो पुरिसो अइदीह-किसगीवो ॥५५॥ आजाणुपलंबा अप्परोम पीणा कमेण वट्टा य । होति पसत्था बाहू अकम्मकढिणं च हत्थयलं ॥५६॥ सरलाओ कोमलाओ करंगुलीओ सुदीहजीयाणं । सहा मेहावीणं कम्मयराणं तु थूलाओ ॥५७॥ लहुओट्टो दुहभागी सुभगो पीणोट्टओ मुणेयचो । भोगी य पलंबोट्टो विसमोटो भीरुओ भणिओ॥५॥ सुद्धा समा पसत्था घणा सिणिद्धा य सिहरिणो दंता । रत्तं तालुं सुहयं कसिणं नीलं च दुहहेऊ ॥५९॥ बत्तीसाए नरवई एगत्तीसाइ भोगमुहभागी । तीसाए मज्झिमगुणो दन्ताणमओ परं असुहो ॥६॥ सारस-हंसाइसरा सुहया वायस-खरस्सरा दुहिया । सरला य सहविवरा समुन्नया नासिया धन्ना ॥६१॥ आययविउला कन्ना धन्नाणं लोमसा चिराऊणं । मूसयकन्ना मेहाविणो य दुहिया ससयकन्ना ॥६२।। उत्थल्लदिट्टिणो थोवजीविणो भोगिणो विउलदिट्टी । पावाण अहोदिट्टी सरलं जोएइ उज्जुमई ॥३॥ तिरियं नियंति कूरा धन्ना उण उद्धदिट्टिणो हुँति । काणाओ वरं अंधो केकयराओ बरं काणो ॥६॥ विउलं अद्धिंदुसमंधण्णाण नराण होइ भालयलं । अइविउलं दुहियाणं अइतुच्छं तुच्छजीवीणं ॥६५॥ वामावत्तो भमरो अपसत्थो सीसवामपासम्मि । सो दाहिणम्मि पासे होइ महो दाहिणावत्तो ॥६६॥ भमराण विवजासे भोगा जायंति पच्छिमवयम्मि । छत्तायारं सीसं होइ नरिंदाण अह केसा ॥६॥ निद्धा घणा पसस्था मउया आकुंचिया य ते धन्ना । फुडिया मलिणा रुक्खा दारिदकरा भवे चिहुरा ॥६॥ अपरं च तिन्नि य गंभीराइं तिन्नि य विउलाई हंति धन्नाई। हुम्साई चउर सुहमाइं पंच पंचेव दीहाई ॥६९॥ छ चन्नयाई रत्ताई सत्त एएसि विवरणं भणिमो । नाभी-सर-सत्ताई तिन्नि इमाइं गभीराई॥७॥ १. 'स्वेदनं' प्रस्वेदस्रावि । २. 'आदर्शसमैः' दर्पणतुल्यैः ॥ ३. ०जीहाणं रं० ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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