Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 444
________________ ४१. विवेकिजनस्वकृतकौदयोपनतदुःखाधिसहनाधिकारे मेतार्याख्यानकम् जो जमिह काउकामो सोऽवसरं तम्स लहइ कइया वि । पयडा एस पसिद्धी जणम्मि ता तीए वि उवाओ७३॥ लद्धो मारणकजे जम्हा पयईए पत्थिवो एसो । भुक्खालुओ तओ से भोयणजायं किमवि माया ॥७॥ निच्चं पि रायवाडीए निग्गयम्सावि पेसह सिणेहा । अह अन्नया य मायाए मोयगो सिंहकेसरओ॥७॥ सोहणदव्वेहिं कओ दासीहत्थे सुसंयुओ काउं। पट्टविओ सा दिट्टा गच्छंती रायमग्गेणं ||७६॥ पउमावइदेवीए वाहरिटं दासचेडिया पुट्टा । तुह हत्थम्मि किमेयं ? कत्थ व संपत्थिया तं सि ? |७७|| तीए वि निवियप्पं एसा जणणि त्ति सच्चयं भणियं । भूवइभोयणकज्जे जामि अहं मोयगो एसो ॥७८॥ नीसेसो वुत्तंतो निवेइओ तयणु चिंतियमिमीए । एसो चेव समत्थो पत्थुयकजम्मि मह हेऊ ||७६॥ तत्तो तीए भणियं केरिसगो एस मोयगो भद्दे ! । दासीए निस्संकं समप्पिओ देवि ! पेच्छ इमं ॥८॥ तीए वि पुज्वमेव य विसभावियकरयलेण पासेसुं । पागए परामुसिओ अइसुरही निवइणो जोगो ॥८१॥ उजिघिऊण सुइरं संचारेउं विसं नहग्गेहिं । मोयगमज्झे भद्दे ! सिग्घं जाहि त्ति भणिऊणं ।।८२॥ दासीए अप्पिओ करयलम्मि तीए विमुद्धहिययाए । रन्नो पणामिओ चिंतियं च तेणावि पुन्नवया ॥८३।। भक्खेमि कहमहमिमं बालेहिमिमेहिं भुक्खिएहिं तओ। काउं दुहा तयं तेसिमेव पउमावइयाणं ॥८४॥ दिन्नं दलमेगेगं अयाणमाणेण मोयगसरूवं । मुणिचंदनरिंदेणं तदुवरिमणवजहियएणं ॥८॥ ते उण भुजंता विहु विसमविसावेसविहुरियसरीरा । वयणविणिग्गयफेणा सम्मीलियलोयणा सहसा ।।८६।। पेच्छंताण वि रायाइयाण पडिया धस नि धरणीए । सिसिरोवयारवसओ वि जा न पावंति चेयन्नं ।।८७|| ता नायं निउणमईए एस निस्संसयं विसवियारो । ता तक्खणमेव सुवन्नघसणजलपाणपभिईहिं ॥८८॥ पउणीकया कुमारा वाहरिउं दासचेडिया रन्ना । पुट्ठो भद्दे ! को एस ? कहसु जेणेरिसं पावं ॥८९|| जीवियनिम्विन्नेणं विहियमणजेण ? तीए संलत्तं । देव ! न याणामि अहं इह कज्जे कमवि परमत्थं ॥१०॥ नवरमिमो पउमावइदेवीए मोयगो सहत्थेहिं । परिमलिओ घेत्तृणं मज्झ सयासाओ मग्गम्मि ॥११॥ अवरेण न केणावि हु दिट्टो पहु ! एत्तियं वियाणामि । तो नायमवणिवइणा तीए च्चिय विलसियमिमं ति ॥१२॥ ता कयमहममणाए सच्चं आहाणयं इमं तीए । जो चिंतवइ विरुद्ध परम्स तं आवइ घरस्स ॥१३॥ हा मण मयंकधम्मो न मारिओ हं ति तीए पावाए । मंतिसमक्खे पचारिऊण मोत्तण रज्जसिरिं ॥४॥ निम्विन्नकामभोगो मुणिचंदनराहिवो सुकयपुन्नो । अद्दिद्दवराहाणं वएसु सूरीण राहाणं ॥१५॥ पासे मुहपरिणामो पव्वइओ गहियदुविहमुणिसिक्खो । उम्गतवचरणनिरओ विहरइ गुरुपायमूलम्मि ॥१६॥ अह कइया वि हु सूरीणमंतिए साहुणो विहरमाणा । उज्जेणीओ पत्ता पुट्टा गुरुणा सुहविहारं ॥९७॥ तेहिं वि सव्वं कहियं साहुविहाराइयं नवरमेगो । गरुओ उवद्दवो मुणिवराणमकयप्पडीयारो ॥२८॥ राय-पुरोहियकुमरा दुल्ललिया दुरुलिविलसिया दुरं । मुणिवम्गं राउलवायविनडिया पहु ! कयत्थंति ॥९॥ तं निमुणिऊण मुणिचंदमुणिवरो मणयममरिससहाओ । चिंतइ चंदपहुज्जलमुचरियचंदावयंसस्स ॥१०॥ जाओ वि हु मह भाया कहमेवंविहपमायमायरइ । ता सिक्खवेमि गंतुं मह सत्ती एत्थ वत्थुम्मि ॥१०१॥ सत्तीए संतीए. जो दरिसणपरिभवं सहइ सत्थो । सो धम्मं पि न याणइ अहवा दोग्गइगमं महइ ॥१०२॥ मा जम्मउ सो पुरिसो जाओ चि हु जियउ मा चिरं कालं । जिणसासणावमाणं सामत्थे सहइ जो मूढो ॥१०॥ जो देव-गुरुपराभवमममई सहइ सत्तिसम्भावे । निम्संदेहं सदसणे वि तस्सऽत्थि संदेहो ॥१०४॥ तो गुरुणा मोयाबिय गंतुमहं सिक्खवेमि अविणीए । मा वच्चंतु वराया ते वि हु नरयम्मि मूढमणा ॥१०५॥ तो नमिऊणं गुरुणो भणिया जइ तुम्ह होइ आएसो । तो तत्थ गंतुमयं वारेमि मुणीणमुवसम्गं ॥१०६॥ गुरूणा वि जुत्तमेयं जं किज्जद पवयणुन्नई धम्मे । एयं धम्मरहस्सं पवयणसारो इमो चेव ॥१०७|| तो गुरुणाऽणुनाओ पत्तो सो तक्खणेणमुजेणिं । संभोइयवसहीए पविसइ साहुण मज्झम्मि ॥१०८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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