Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 443
________________ Jain Education International आख्यानकमणिकोशे बलभद्दवि वलभद्द सयलनीसेस विभद्दिय 1 रावणपमुह पयंडजोह अवरे वि गभद्दिय । नवि उचरिउ कया वि को वि कुवियह जमरायह । पपयावह पाणिनिहु पावह जिम्व राह || ४१ ॥ इय मुणिचंदष्पमुहो परिवारो सासिओ विगयसोओ । जाओ जणयम्स तओ कारविओ अग्गिसकारो ॥४२॥ कझ्वयदिवसाणंतरमुत्तो मंतीहिं कुमरमुणिचंदो । रज्जमणुट्टमु संपइ अनायगा जेण भद्द ! वयं ||४३|| तुह पिउणो रज्जमिमं नायगरहियं विसंकुलं होही । तुममेव रज्जजोगो मज्झम्मि जओ कुमाराण || ४४॥ जेण तुह लहुयभाया उज्जेणीए कुमारभुत्तीए । पउमावइदेवीए अज्ज वि सिसुणो सुया दो वि || ४५ ॥ कुमरो वि मंतिवयणं निसमिय पिउसोयसल्लियसरीरो । चिंतइ निययमईए रज्जमिमं नरयदुहऊ ||४६ || एयम्मि रज्जभारे इहलोयसुहं पि तत्तओ नत्थि । वासंगबहुलयाए नरवणो जेणिमा चिंता ॥४७॥ गयसाहणं न सुहियं संपइ मह तुरयसाहणममुत्थं । अंतेउरे न को वि हु दुम्सीलो मज्झ वचहरइ ||१८|| रपि दुट्टचरडाइएहिं संपयमभिदुयं दूरं । नरया (?) वि कुओ वि हु विरोहओ दुत्थिया अहुणा ॥ ४९ ॥ दे से दुत्थत्तणओ नऽज्ञ वि संपज्जए सुहेण करो । चोरा वि हु अणवरयं मुसंति मग्गम्मि सत्थजणं ॥५०॥ नियबलगव्वियचित्तो सीमालो मज्झ मन्नइ न सेवं । खत्तपडणाइदुत्था कुणन्ति रावं पि नायरया ॥ ५१ ॥ लंचोवयारलुद्धा सम्मं अहिगारिणो न वट्टंति । अज्जं माणधणाए अंतेउरियाए रुसणयं ॥५२॥ एवमणेगमणोगयवियप्पमालाउलम्स नरवइणो । मोत्तुमभिमाणमेगं नत्थि सुहं भणियमेत्थत्थे ॥ ५३ ॥ औत्सुक्य मात्रमवसादयति प्रतिष्ठा, क्लिश्नाति लब्धपरिपालनवृत्तिरेव । नातिश्रमाय नयनाय यथा श्रमाय, राज्यं स्वहस्तधृतदण्डमिवाऽऽतपत्रम् ॥५४॥ I किंबहुना भणिणं इह-परलोइयदुहाण खणिमेयं । चइऊणं रज्जसिरिं संजमसिरिमस्सिओ होमि || ५५|| इय परिभाविय भणिया माया पउमावई कुमारेण । गेण्हसु माए ! रज्जं अणुजाण पव्वयामि अहं ॥ ५६ ॥ ती भणियं बाला मज्झ सुया रज्यपालणासत्ता । वोढुं गयपल्लाणं कुमार ! किं रासहो तरइ ? ||५७ || इय सुगिउं तीयुक्तं पडिवन्नमकामएण तं रज्वं । मंतीहिं सुहमुहुत्ते विहिओ रज्जाहिसेओ से ॥५८॥ जे पिणो विन पणया वसीकया ते वि तेण सीमाला । पुन्नप्पभावपत्तं सो पालइ रज्जमणवज्जं ॥ ५१ ॥ उवसंतडिच डमरं दुरीइ - दुब्भिक्खदोसपरिमुक्कं । दुरी कयपरचकं अदितक्करपयारं च ॥ ६०॥ अहिगारिणो विणीया पणया सव्वे वि मंति-सामंता । आणावडिच्छओ से सव्वो वि य सेवयसमूहो ॥ ६१ ॥ अणुरता पयईओ सिणेहसारो सुही य सुहिसत्थो । वट्टड् वसम्मि सञ्चो उवरोहवरंगणानिवहो ॥६२॥ बंधवकुमुयाणंदे जाए चंदे व्व तम्मि मुणिचंदे | महिवाले सब्वे वि हु विस्सरिया पुरायाणो ||६३ || इय सो मुणिचंदनिवो पयईए यि विसिट्टगुणभवणं । बीयं पुन्नपभावा अलंकिओ रायलच्छीए ॥ ६४ ॥ नोहरइ नयरमज्झे कलावमापूरियं विहियवेसो । मयसलिलसित्तगंडयल गरुयजयवारणारूढो ॥६५॥ कमणीयकंतिकामिणिकर यलदोधुच्चमाणसियचमरो । उद्दंडधरियधवलायवत्तपडिहणियरविकिरणो ||६६|| विविचरवाहणारूढमंति-सामंत - सुहडपरियरिओ । पढमाणविविमागह कलयलखबहिरियदियंतो ||६७|| इय पइवासरसुररायलच्छिविच्छड्डु संजणियसोहो । आगच्छन् निग्गच्छइ पेच्छितो पुरजणेण ॥६८॥ तं पेच्छिय पावमई दुहा वि पउमावई पट्टमणा । पच्छायावपरद्धा मच्छर पच्छाइयविवेया ॥६९॥ चितइ पावाए मए सुयाणमेवंविहा नरिंद्र सिरी । आगच्छंती दंडेण ताडिया कहमहन्नाए ? ॥७०॥ संपइ दुलहा एसा मह पुत्ताणं इमम्मि जीवंते । सच्च वियं तीए इमं बुद्धी पण्हीए नारीणं ॥ ७१ ॥ तो केण उवाएणं एस मए मारियव्वओ राया ? इय कूरमणा चिट्टइ विकप्पमालाउला तत्तो ॥ ७२॥ For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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