Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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४१. विवेकिजनस्वकृतकर्मोदयोपनतदुःखाधिसहनाधिकार मेतार्याख्यानकम्
रन्नो रहसुहसायरसमुल्लसावणगुणा ससहर व्व । कि बहुणा संसारियसुहाण सव्वाण सव्वस्सं ॥१०॥ पढमाए मुणिचंदो सागरचंदो य सुंदरावयवा । गुणचंद-बालचंदा बीयाए विणयकुलभवणं ॥११॥ इय एवमिमाणि तया तिवग्गसाहणपराणि मुहियाणि । नीसेसपउरसम्मयगुणाणि विलसंति रज्जसिरिं ॥१२॥ जं पुण जिणवयणामयभावियहिययाणि ताणि सव्वाणि । एसो पुण विन्नेओ खीरे खलु खंडपक्खेवो ।।१३।। राया उ विसेसेणं कुओ वि कम्मक्खआवसमभावा । इहलोयनिप्पिवासा परलायमुहक्कगयचित्ता ॥१४॥ अहिगयजीवाऽजीवो निच्चं चिय साहुपज्जवासणओ । उवलद्धपुन्न-पावो सम्मं सुहतत्तचिंतणा ॥१५॥ असहेजदेव-दाणव-किंपुरिस-महोरगाइदेवेहिं । निग्गंथपवयणाओ अणइक्कमणिज्जथिरचित्तो ॥१६॥ निम्गंथे पावयणे धणियं निस्संकियाइगुणकलिओ। लट्ठो गहियट्टो विणिच्छियट्टो य समयम्मि ॥१७॥ इय पंचमंगभयवइपंचमगणहरसुहम्ममुणिवइणा । सावयवनयवन्नियगुणरयणालंकियसरीरो ॥१८॥ परिपालइ रज्जसिरिं रक्खइ खत्तेण सिट्टजणनिवहं । निग्गहइ दुट्ठलोयं पवयण उच्छप्पणं कुणइ ॥१९॥ अह अन्नया य संझारायत्थाणं विसज्जिय नरिंदो। जा वयइ वासभवणं ता तत्थ न का वि सामग्गी ॥२०॥ खण-उव-तव-च्चियाए ति वयणमणुसरिय ताव नरनाहो । सनगरमिव साकेयं पच्चक्खाणं पवनो सो ॥२१॥ जावेस वासभवणे दीवो पजलइ ता न पारेमि । इय हिययम्मि विगप्पिय काउस्सगं कुणइ धीरो ॥२२॥ मेरु व्व निप्पकंपो कम्मविणिज्जरणमेगमिच्छंतो । नियदेहनिरावेक्खो अगणंतो दंस-मसगाई ॥२३॥ इय पासिय पुहइवइं देवी वि न का वि रायपासम्मि | संपत्ता वोलीणो ता पढमो जामिणीजामो ॥२४॥ दीवो वि पजलंतो एयावसरम्मि नेहविरहाओ । विज्झाइमारतो ता सेज्जापालियाए इमो ॥२५॥ मह सामी उस्सग्गे अच्छिस्सइ दुक्खमंधयारम्मि । इय परिभाविय समईए पूरिओ तेल्लयूरेण ॥२६॥ इय तइय-चउत्थेसुं पहरेसुं तेलपक्खिवणपुवं । पज्जालिओ पईवो तओ पभाया निसासेसा ॥२७॥ उम्गमिओ दिणनाहो पुहईनाहो य रुहिरभरियंगो । जावुस्सग्गं पारइ ता पडि ओ धरणिबीढम्मि ॥२८॥
नेहक्खयम्मि जाए दीवो आउक्खयम्मि नरनाहो । भवणप्पयासजणगा समयं चिय दो वि विज्झाया ॥२९॥ अवाचि च
प्रतिज्ञाशैलमारुह्य ये भयो न पतन्त्यधः । साधयन्ति स्वमर्थ ते. यथा चन्द्रावतंसकः ॥३०॥ एत्थंतरम्मि पोकारियम्मि सहस त्ति सेजवालीए । किं किं ? ति पयंपंतो पत्तो सव्वो वि परिवारो ॥३१॥ दटट्टणं तयवत्थं चेयन्नविवज्जियं महीनाहं । मुणिचंदकुमरपमुहो लोओ विहलंघलसरीरो ॥३२॥ पडिओ धस त्ति धरणीयलम्मि सिसिरोवयारकरणेण । संपावियचेयन्नो एवं पलवइ बहुपयारं ॥३३॥ हा ताय ! ताय! हा हा सुजाय ! हा राय ! वल्लह ! सुनाय ! । हा विहियपसाय ! पसन्नवाय ! संपन्नजसवाय ! ॥३४॥ हा धम्मनिलय ! हा भुवणतिलय ! हा सरसविलयपरिवार ! । हा पहु ! पसन्नवयणं पसिऊणं देसु पडिवयणं ॥३५॥ एवं च पलवमाणो कुमारपमुहो जगो स मंतीहि । सोयावहारवयणेहिं सासिओ समयकुसलेहिं ॥३६॥
निकारणअवयारुज्जयस्स निकिवकुलावयंसम्स । एयस्स कुमर ! चिंतसु को विम्हरिओ कयंतस्स ? ॥३७॥ भणियं च
लक्ष्मीलताकुठारस्य, भोगाम्भीदनभस्वतः । विलासवनदावाग्नेः, को हि कालस्य विस्मृतः १ ॥३८॥ अवरं च
सो नत्थि च्चिय भुवणम्मि को विजो खलइ तस्स माहप्पं । सच्छंदचारिणो सव्ववारिणो हयकयंतस्स ॥३९॥ ता कुमर ! एस पावो समवत्ती गिजए जहत्थक्खो । पञ्चलिओ जलणो विव कवलइ गरुए वि किं बहुणा ? ॥४०॥
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