Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 416
________________ ३६. बन्धुकृत्रिमस्नेहत्वाधिकारे चुलण्याख्यानकम् ३२६ तो तिव्यविससमुन्भूयवेयणावेसविहुरसबंगो। सूरियकताविलसियमेयं नाऊण चिंतेइ ॥७६|| नियकज्जबद्धचित्ता महिलाऽणत्थाण कारणं परमं । धिप्पइ न य रुवेणं न यावि सम्माणदाणणं ।।८०॥ विज्जु व्य चवलहियया विसहरमणि व्व कुडिलगइगमणा । बहुनियडि-कृड-कवडाण मंदिरं निंदिया महिला ॥८१॥ नेहगणक्खयकारी दीवयकलिय व्व पत्तनिहिया वि । निच्चं सकज्जलग्गा दहणसरूवा जए महिला ॥२॥ ता कि मह एयाए चिंताए ? निययकज्जमेवेन्हि । साहिज्जउ जेणेत्तो थावं मे जीवियव्वं ति ॥३॥ इय चिंतिऊण तत्तो विप्फुरियअपुवगरुयसंवेगो । तत्थ ठिओ वि हु सरणं पडिबज्जा वीरकमकमलं ॥४॥ निद्दअट्टकम्मिधणाण सिद्धाण सुद्धबुद्धिजुओ । सरणं गओ म्हि संपइ सासयसिवसोक्खपत्ताणं ॥५॥ भवपंकुक्खुत्तो हं सधम्महत्थावलंबदाणेणं । करुणाए समुद्धरिओ परोवयारेक्कर सिएहिं ॥८६॥ पयकमलं सरणमहं पडिवज्जे तेसि केसिसूरीणं । समसत्तु-मित्तचित्ताण सुहय उवएसनिरयाणं ।। ८७॥ अहरीकयकप्पददम-चिंतामणि-कामधेणुमाहप्पो । सासयसिवमुहहेऊ जिणधम्मो होउ मह सरणं ॥८८|| इय चउसरणगओ हं पाणिगणं सव्वमवि खमावेमि । समभावसहियहिययम्स मम वि सो खमउ सययं पि ॥८९| सूरियताउरि विसेसओ होउ मह समो भावो । अवरझंति जओ इह पुवक्कयदुकयकम्माई ॥१०॥ इय भावितो सम्म नरनाहो गहियअणसणो मारिउं । सोहम्मसूरियाभे पवरविमाणे समुप्पन्नो ॥९१।। नामेण सूरियाभो तियसो वररिद्धि-कंतिसंजुत्तो । तत्तो चुओ समाणो महाविदेहम्मि सिज्झिहइ ॥१२॥ ॥रविकान्ताख्यानकं समाप्तम् ॥११४॥ इदानी चुलण्याख्यानकं व्याख्यायते । तच्चेदम्पंचालजणवयाणं नयरमलंकारभूयमवि सुयं । कंपिल्लं तं पालइ पउमावासो निवो बंभो ॥१॥ सयलावरोहसारा चुलणी नामेण भारिया तस्स । तीए चउदससुमिणेहिं सूइओ बारसमचक्की ॥२॥ चइउंसुरलोगाओ चरित्तिणो चित्तसाहुणो भाया । पुत्वभवकयनियाणो तइया नामेण संभूई ॥३॥ गब्भम्मि समुप्पन्नो जाओ कालकमेण सुमुहुत्ते । कयबंभदत्तनामो जा किर परिवड्डिर लग्गो ॥४॥ ताव य बंभो राया तिहुयणसाहारणेण रोएणं । अव्भाहओ समाणो सुत्थकए निययरज्जस्स ।।५।। कडयं कणेरुदत्तं तहावरं पुप्फचूलनरनाहं । दीहं च दीहदरिसी चउरे चउरो वि नियमित्ते ॥६॥ वाहरिऊण पयंपइ सप्पस्सयमेस बालओ तुम्हं । उच्छंगे पक्खित्तो जह पालइ मज्झ रजसिरिं ||७|| तह कायव्वं इय जंपिऊण वियणाए मरणमणुपत्तो । इयरेहिं वि मित्तेहिं दीहो जोगो त्ति कलिऊण ||८|| रज्जपरिपालणत्थं मुक्को.मइपुव्वगं प्रयत्तेण । सो विहु तं परिपालइ समईए बंभमंतिजुओ॥९॥ तं जहा पाढह कुमरं विहिणा समप्पि बंभदत्तमभिउत्तो। विउसाणंदस्स कलाविउम्स पासम्मि सूरिस्स ॥१०॥ चिंतइ कोट्टायारं संभालइ धणसमिद्धभंडारं । कारवइ संधि-विग्गह-जाणाऽऽसणरायनीईओ ॥११॥ गयसाहणं निरूवइ परिभावइ तरलहयवरसमूहं । पडियरइ रहवरोहं परिपालइ पत्तिपरिवारं ॥१२॥ चउरंगबलसमिद्धिं वद्धारइ बुद्धि-पोरिससहाओ । अंतेउरं च रक्खइ चुलणीए समं विसेसेणं ॥१३॥ एवं पइदिणमेसो रहम्मि सह तीए मंतणं कुणइ । सा वि हु तेण समाणं सया वि ससिणेहमालवइ ॥१४॥ तओ य आलावाओ पेम्म पेम्माओ रई रईए विस्संभो । विस्संभाओ पणओ पंचविहो वडिओ नेहो ॥१५॥ अविवेयबहुलयाए इमस्स हयजोब्वणम्स जीवाणं । दुइंतत्तणओ दढमिदियतुरयाण पावाणं ॥१६॥ पइभवमन्भासाओ एयाणं पावगामधम्माणं । दूरं जाणंताणि वि परोप्परं ताणि घडियाणि ॥१७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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