Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 429
________________ ३४२ आख्यानकमणिकोशे तत्तो पहाड पकिट्टपडहयसरेण पडिबुद्धो । सूरीण कहद्द सुविणं पट्टिहियओ जहादिहं ॥ २४६ ॥ परियाणियसुविणत्था गुरुणो रन्नो कहंति नरनाह ! । छिन्ना जा कप्पलया सा तुज्झ कलावई देवी || २५० ॥ एगफला जं तं पुत्तसंजुया जं पुणो वि पारूढा । तं तुह मिलिही अज्जेव जायसं पुन्नसव्वंगा ||२५१ ॥ तुम्हाण पायपरमप्पसायओ होउ एवमिइ भणिउं । राया पहरिसवसपुलइयंगओ वंदिऊण गुरुं ॥ २५२ ॥ नियपासायं पत्तो तत्तो दत्तं भणेइ बाहरिडं । दत्तय ! एवमकज्जं कथं मए मूढमइएण || २५३॥ पच्छा मरणपना विहिया ता जइ कलावई जिय । ता जीविज्बइ अह नो मरणं चिय हवइ मह सरणं ॥ २५४ ॥ तापवणजवणवाहं रहं समारुहिय रन्नमज्झाओ । जड् जियइ ता तमाणेज्ज अह न तो तं मयं मुणसु ॥२५५॥ एवं वृत्ती दत्तो पत्तो रत्नं रहं समारुहिउं । निउणं निरिक्खयंतेण तेण ते तावसा दिट्ठा ॥ २५६ ॥ पुट्टा य कहह भयवं ! कत्थइ तुमेहिं गुग्विणी रमणी । सच्चविया इह रन्ने परिभमंती ? तओ ते वि ॥ २५७॥ जंपति किं न मुंचइ इमाए उवरिं नरेसरो रोर्स ? । अज्ज वि वंछइ किं पि हु काउं अइदारुणं दुक्खं ? ॥ २५८ ॥ तेसि वयणाओ तीए अस्थित्तं चितिउं भणइ दत्तो । भयवं ! नेय सकोवो किंतु ससांगो निवो अहं ॥ २५६ ॥ ता जइ कलावई जियइ जियइ राया चि नन्नहा भयवं ! काही पाणच्चायं पविसिय पज्जलिय जलन मि ॥ २६० ॥ एवंत्तेहिं स ताचसेहिं करुणेकर सियहियएहिं । कुलवइपासे नीओ दत्तो पणओ य सो तस्स || २६१ ॥ कुलवइणा वि कलावइवुत्तंतो साहिओ असेसो वि । नोहरिया देवी विय तवस्सिणीलोयमज्झाओ || २६२॥ दत्तं ददुं मन्नुइयमाणसा पलविउं समारद्धा | संधीरिया य दत्तेण निहुयनिहुयं रुयंतेण ॥ २६३ ॥ T आसासिया य सामिणि ! खेयं मा कुणसु सुणसु मह चयणं । विहिविलसियम्स नासो न होइ अथिरम्मि संसारे || २६४ || ता धीरतणमवलंबिण सोगावयासमवि मुंच । जम्हा बहुएण वि सोइएण न य फिट्टए दुक्खं || २६५ ॥ जाणामि दारुणं तुह एयं दुक्खस्स कारणं जायं । एएण निमित्तेणं णंतगुणं दुखिओ देवो ॥ २६६॥ sue इमेण दुव्विलसिएण संतत्तचित्तवित्ती सो । अज्ज न जइ तं पेच्छइ निसाए ता पविसए जलणे || २६७॥ जाणामि तुज्झमाणं जेणाऽऽगंतुं न तरसि तं तत्थ । ता देवि ! दयं कुण रायरक्खणे मज्झ वयणेण || २६८|| काउं पसायमारुहसु रहवरे जेण तत्थ गच्छामो । कालविलंबो जुत्तो न होइ एवंठिए कज्जे ॥ २६९ ॥ निवनिच्छयं वियाणिय कुरुवइमा उच्छिउं पणमिऊण । आरूढा रहरयणे पत्ता य कमेण संखउरे ||२७० || दट्टु देवि अक्खयसमम्गअंगं पहरिसिओ वि नियो । तं पेच्छिउमचयंतो लज्जाए अहो मुहो जाओ || २७१ ॥ पारद्धं लोएणं वद्धावणयं पुरे समग्गम्मि । बद्धा चंदणमालाउ पइगिहं चूयपत्तेहिं ॥ २७२॥ तत्तो वद्धावणए वित्ते पत्ते पओससमयम्मि । खगमत्थाणे उवविसिय हरिसिया से सामंते ॥ २७३ ॥ उत्तराया कलावईवासभवणमणुपत्तो । संभासइ तं संजायमन्नुपरिपूरियरं ॥ २७४ ॥ देवि ! महापावेणं मए महादुक्खदारुणे वसणे । पक्खित्ता निद्दोसा वि खमसु ता एगमवराहं ॥ २७५ ॥ दंसंतो नियवयणं धणियं लज्जामि तुह अहन्नो हं । ता पसयच्छि ! पसायं काउं खेयं परिच्चयसु ॥ २७६ ॥ ती चिलक्खवयणं नमिऊण निवं सगग्गयं भणियं । सामि ! न कस्सइ दोसो मोत्तुं मह कम्मपरिणामं ॥ २७७॥ परिकप्पिऊण दोसं जमहं निस्सारिया तयं कहसु । तो अंगयाइओ से वृत्तंतो साहिओ रन्ना ॥ २७८ ॥ ती विनियओ रन्नो निवेइओ तं निसामिउं राया । पभणइ पिए ! न होही मज्झ समो निधिणो भुवणे ॥ २७६ ॥ जो निम्मलसीलाए वि तुज्झ आणेइ एरिसं वसणं । ता खमियवं तुमए एयं सुपसन्नहियाए ॥ २८० ॥ जइ गुरुणो न कहंता ता तुह संगमसुहं न मे हुतं । तो देवीए पुट्टे सिट्टो गुरुवइयरो रन्ना ॥ २८९॥ दंसेव्वा मज्झवि गोसे गुरुणो कलावईभ थिए । संगयमिमं ति रन्ना पमुइयहियएण पडिवन्नं ॥ २८२॥ एवं सिणेहनिभर कहाहिं नीया तमस्सिणी तेहिं । नियकिरणहरियतिमिरे समुग्गए सहसरस्सिम्मि ॥ २८३ ॥ चिहियप्पभायकिच्चो राया आरुहिय पट्टदोघट्टे । सबलो कलत्तजुत्तो पत्तो सूरीण सविहिम्मि ||२८४ ॥ Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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