Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 433
________________ ३४६ Jain Education International आख्यानकमणिकोशे तह कह विकुरंगाण व परोप्परं ताण पेम्ममारूढं । जह निक्कित्तिमपेम्माणिमाणि जाया जणपसिद्धी ||३|| अह अन्नया निसाए निदं चइउं सरस्सई सहसा । रुयमाणी पल्लंकाओ उट्टिया तो अमच्चेण ||४|| संतेण भणिया पिए! किमेयं ? ति जंपइ इमा वि । न हु किं पितो निबंधेण पुच्छिया साहए एवं ॥ ५ ॥ दिट्टो सुचि तं पिय ! अबराए समं मए पर्यापतो । तं सोऊणं चितइ मंती सुविण वि जइ एसा ॥ ६ ॥ उब्वहइ महाखेयं तो जइ पञ्चक्खमेव मं कह वि । पेच्छइ अबराए समं ता पाणे चित्र परिचय ||७|| तो अन्नभारियाए जावज्जीवं पि होउ मह नियमो । तत्तो भणिज्यमाणो वि नेय परिणेड़ सो अवरं ||८|| सेव से पसिद्धी संजाया नरवरिंदपज्जंता । मंतिं मोत्तुं नयरम्मि नरवई अवरसमयम्मि || || रिउविजयत्थं पत्तो कत्थइ अह तत्थ मंतिमिहुणस्स । पेम्मका संजाया जह एगेणं मरंतेणं ॥१०॥ मरइ दुइज्जं पितओ तम्स परिक्खणकए तेण । अलियप्पओयणणं मंर्ति हक्कारिडं कडए || ११|| नयरम्मि अलियवत्ता कारविया जह मओ महामंती । तं सोउं तब्भज्जा मया दहा फुट्टिउं हिययं ॥ १२ ॥ तं नियुणिऊण राया अप्पाणं निंदए गुरुविसाओ । हा ! कत्थ इत्थििवज्झापावमहं नित्यरिम्सामि ? ॥१३॥ तीए जहा नियपाणा तणं व चत्ता सुणित्तु पइमरणं । मंती वि पियामरणं सोउं नृणं तहा रही ॥ १४ ॥ इय चिंति नरिंदो सहस त्ति गओ अमच्चपासम्मि । भणियं च तेण किं देव ! अणुचियं कयमिहाऽऽगमणं ? ॥ १५ ॥ तो भूवणा भणियं इहाऽऽगया गरुयकारणेण वयं । किं पि तुमं पत्थेमो जड़ वियरसि भणइ तो मंती ॥ १६ ॥ देव मह जीचियं पि हु तुज्झाऽऽयत्तं किमेत्थ अवरेण ? । सामी तो अवियप्पं आइसउ पओयणं जेण ॥ १७॥ तत्तो मंति घरि भुयाए पुहईसरेणिमं भणियं । तुह दइया पंचत्तं पत्ता इमिणा पयारेण || १८ || अत्थामो एवं मरियव्वं न हु तए इमं सोउं । संखुद्धमणो मंती चिंतइ हा हा ! किमेयं ? ति ॥ १९ ॥ भइ य तुहाणुभावो जं फुट्टइ संपयं न मह हिययं । किंतु न देवेण अहं भणियचो अवरदारकए || २०॥ अवरं च तीए लोयव्यवहाराई करेमि गंतूण । तो नरवइणा मुक्को संपत्तो निययनयरम्मि ||२१|| पच्चइयपुरिससंगहियमट्टिनियरं पियाए पूर्यतो तीए ससिकिरणनिम्मलगुणनियरं संभरेऊण ॥२२॥ रोयावंतो नियपरियणं पिकरुणस्सरं रुयइ मंती | सुमरंतो तमणुदिणं मणम्मि मरणं पि अहिलसइ || २३॥ किंतु निववयणबंधणबद्धो गमिउ पभूयवरिसाई । अह अन्नया अमच्चो चितइ मह हो जइ मरणं ॥ २४॥ तो पणइणीए अट्टियनियरं न हु कोइ नेइ गंगाए । सयमेव य जीवंतो नेमि अहं तत्थ एयाणि ॥ २५ ॥ इय चितिऊण मंती नीहरिओ राइणो अकहिऊण । वाणारसिनयरीए गंगातीरम्मि संपत्तो ||२६|| तत्तो अमरतरंगिणितीरे द्रविणं दियाण दाऊण | संभरिऊण सकरुणं पियागुण रुयइ गुरुसोओ ||२७|| कंकेल्लिपल्लवुब्वेल्लिरेहिं हत्थेहिं जेहिं गहिया सि । तेहिं चिय इहि विहिवसेण सलिलंजली दिन्नो || २८॥ कयवेरो व्व कयंतो न सहइ दइयाए अट्टिएहिं पि । संगममुहं ति बहुविहमेवं पलवइ पणट्टमुह ||२९|| ता तत्थ समणपत्ता अहिणवजोव्वणमणोहरसरीरा तन्नयररायधूया नामेण सरम्सई कन्ना ||३०|| कोऊहलेण पुलिणे परिब्भमंतीए तीए सो मंती । दिट्टो दुहसंतत्तो संसंभमं पुच्छिओ एवं ॥ ३१ ॥ सुपुरिस ! किं तुह दुक्खं दीणसरं रुयसि जं ? तयणु मंती । तीए पयासह सवं नियवृत्तंतं तओ कुमरी ॥ ३२॥ संजायजा इसरणापडिया महिमंडलम्मि मुच्छाए। तो भीओ सहिवग्गो उवयारे का उमारो ||३३|| 1 तं सोऊण नरिंदो संभंतो झत्ति तत्थ संपत्तो । संपुच्छिया तओ सा वच्छे ! मुच्छा तुह किमेसा ? ||३४|| भणियं च तीए एसो भत्ता मह आसि पुत्रजम्मम्मि । अवरोप्परं पि पीई नाम पि सरम्सई आसि ||३५|| कहियं इच्चाइ असेसयं पि रायस्स तो अमञ्चस्स । सप्पच्चयं समग्गं साहइ सा सोचि संतुट्टो ||३६|| परिणाविओ य रन्ना गरुयपमोएण सो महामंती । नियमरणाओ सयलं पि पुच्छिओ तो इमो तीए ||३७|| कहियम्मि अमच्चेणं चितइ एसा अहो ! महासत्तो । पेच्छ जहा किच्छेणं एत्तियकालं ठिओ एसो ||३८|| For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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