Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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३६. बन्धुकृत्रिमस्नेह त्वाधिकारे शङ्खाख्यानकम्
तुह मुत्ताहलनिम्मलगुणावलीधरणहारिहियएण । रन्ना संदिट्टं तुज्झ गउवं किं वयं कुणिमो ? || ७४|| तत्तो य हिययदड़या समग्गगुणरयणमालिया कुमरी । तुह समुचिय त्ति काऊग पेसिया गुरुसिणेहेण ॥७५॥ अणुओ न हु जाओ इमाए अवरेसु रायकुमरेसु | अहवा मांत्तृण रवि बंछइ किं कमलिणी अन्नं ? ॥७३॥ तो भइ संखराया पेच्छ अहो ! मज्झ निग्गुणस्सावि । नरनाहविजय सेणम्स पक्खवाओ किमवि अहिओ ॥७७॥ जइ जाओ राओ हं लहुओ वि हु ता कहं गुणी जाओ ? | अहवा उत्तमपुरिसा नियंति दोसं पि गुणरूवं ||७८ || जड़ मज्झमुवरिहुत्तो एवं नेहो मणे परिष्फुरइ । ता तस्स तायतुल्लम्स वयणमम्हेहिं काय ॥७९॥ तो सव्वे विय संतुट्टमाणसा ते गया सठाणेसु । अवरोप्परपीड़पव्वसाण ताणं वयइ कालो ॥८०॥ अह अन्नया य सुपसत्यतिहि मुहुत्तम्मि लग्गदिवसम्मि । पारद्धो रायउले वीवाहमहूसको रन्ना ॥८१॥ गंभीर मद्द लारव विमिम्स जयतूरगहिरनिग्घोसे । अविह्वविलया गिज्वंत मंगलारवसमुत्पन्ने ॥ ८२ ॥ बहुबंदिवं दवज्जरियजय जयारावभरियभुवणयले । मणहररमणीयणनट्ट [ थट्ट] तुट्टंतहारोहे ||२३|| लाइरित्तवियरिज्जमाणवरदाणरंजियजणोहे । वीवाहकज्ज उज्जुयकंचियकरभमिरसामंते ||८४|| एवंविहम्मि लग्गस्स वासरे पमुइएण परिणीया । अणुरायर सियहियया राएण कलावई कुमरी || ८५ ।। वित्ते वीवाहमहूसवम्मि सव्वंगचंगिमजुयाए । तीए सह विसयसोक्खं भुंजइ सो वज्जियावज्जो || ८६ ।। जयसेणकुमारेणं समं पवड़ंतपीइप भारो । नाणाविणोयवक्खित्तचित्तवित्तो गमइ कालं ||८७||
अह अन्नया कुमारो भूमिलियसिरो निवं नमिय भणइ । दुम्मोयं मणयं पि हु तुह पहु ! पयपंकयं मज्झ ॥ ८८|| किंतु जणयाणुरोहाओ होहिही नियपुरम्मि गमणं मे । ता कय बहुप्पसाया तुह पाया मं विमुंचंतु ॥ ८९ ॥ अवरं च देव ! देवी कलावई तह सुहेण धरियन्वा । सुविणे वि सरइ न जहा नियजणणी-जणय-बंधूणं ।। ९० ।। एवं ति जंपिगं निवेण सुपसत्थवासरे कुमरो । चोलावेउं सम्माणिऊण संपेसिओ सबलो ॥ ९१ ॥ देवीलाई तह कह वि हु रंजिओ महाराया । जह सव्वहा वि जाओ तच्चित्तो तम्मओ चैव ॥ ६२॥ संभासणाइएहिं तीए समग्गो सउत्तिलोगो वि । तह तोसविओ न जहा तव्विर हे चिट्टइ खणं पि ॥ ६३॥ दासी - दासमुह परिवारो वियरणाइणा तीए । आवज्जिओ तहा जह आणं सीसेणमुव्वहइ || ९४॥ अह अन्नया य रयणीतुरीयपहरावसेससमयम्मि । सयणीयगया देवी कलावई नियइ सुमिणम्मि || ९५|| विष्फुरियविविहमणिरयण किरणविरइयसुभत्तिदिसिचित्तं । कप्पूर मिस्सचंदणथवक्कचच्चक्कियावयवं ॥१६॥ वीरोयनीरभरियं भमरावलिकलियकमलपिहियमुहं । अंकम्मि पुन्नकलसं दवणीयविणिम्मियं रम्मं ॥ ९७॥ सुविणावसाणओ पिडिबुद्धा बंधुरस्सरं रन्नो । कहइ जहा देव ! मए सुमिणो एयारिस दिट्टो || १८ | तो पुवई पसरियपमोयपरिपूरिओ पपे । तुह पिययमे ! भविस्सइ पुत्तो मह कुलगयणचंदो ॥ ६६ ॥ एवं होउत्ति पयंपिऊण गब्भं सुहं समुव्वहइ । देवी हियइच्छियपुन्नपरमनिस्सेसदोहल्या ॥ १०० ॥ नाऊ पसवसमयं अम्मा- पियरेहिं पेसिया नियया । पडिजग्गया तओ ते पत्ता य कमेण तम्मि पुरे ॥ १०१ ॥ गयसेट्टिगिहे आवासिया य ते दत्तपरिचयवसेणं । भवियन्वयाए दिट्टा कलावई तेहिं पढमं पि ॥ १०२ ॥ सागयकिच्चं काउं परोप्परं पुच्छिया कुसलवत्ता । कहिओ तेहिं पि कलावईए जणयाइसंभासो ॥ १०३ ॥ जणयप्प उत्तिसवणुच्छलंत रोमंचेकंचुयंगीए । हरिसेण समं तीए अच्छिजुयं वियसियं सहसा ||१०४ ॥ तो तेहिं समुवणीयं कुंकुम - कप्पूर-चंदणाईयं । भोगंगं तह वत्थाणि तीए पट्टउलयाईणि ॥ १०५ || अवरं च अंगयजुयं जडियं झलकंतरयणनियरेण । कुमरेण सिणेहेणं पेसियमेयं नरिंद्रकए || १०६ ॥
पढपण जाइयं आसि दत्तएणावि । नियपिययमानिमित्तं तस्स विदिन्नं न कुमरेण ॥ १०७ ॥ तं घेत्तु ं तीयुत्तं अहमवि रन्नो समप्पइस्सामि । सम्माणिऊण तीए विसज्जिया ते गयाऽऽवासे ॥ १०८ ॥ १. चअंचियंगीए रं० । ४३
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