Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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३३८
आख्यानकमणिकोशे
अंगयजयलं विप्फुरियरयणकिरिणावलीहिं दिप्पंतं । नियभुयजुयले परिहियमसेससहिययणजुत्ताए ॥१०॥ एत्थंतरम्मि रायाऽवरोहमज्झे समागओ मुणइ । हसियरवं किं एवं ? ति चिट्ठए जाव सवियको ॥११॥ ता जालगवक्खणं भुयासु अंगयजुयं नियइ तीसे । निमुणइ य बजरंतिं देवि एवं सहीण पुरो ॥१११।। पियसहि ! अंगयसंगा सुहारसेणेव सित्तमंगं मे | अहवा इमेसि दंसणमेत्तेण वि सो मए दिट्टो ॥११२॥
तन्नामगह णेण वि मज्झ मणं किमवि वियसियं इन्हिं । संसग्गाओ इमेसिं सो चेव य मज्झ परिसत्तो ॥११३॥ पेच्छह अच्छरियमिणं मणप्पियस्सावि दत्तयस्स इमं । दिन्नं न मम्मियं पि हु तं सोडं सहियणेणुतं ॥११४॥ सामिणि ! तस्स जहा तं मणप्पिया सव्वहा तहा नऽन्नो । तो तम्स नेव दिन्नं ता इह अत्थे किमच्छरियं ? ॥११॥ नामग्गहणविहूणाणि तासि वयणाणि निसुणिउं राया । कुवियप्पवसवियंभियईसाविसविहुरसव्वंगो ॥११६॥ चिंतइ बिसन्नचित्तो इमीए अवरो मणप्पिओ कोइ । जस्स गुणग्गहणमिमं करेइ सहिययणपञ्चक्खं ॥११७॥ अहयं तु कवडनेहप्पवंचओ मोहिऊणमच्चत्थं । अवियाणियपरमत्थो वसीकओ पावकम्माए ॥११८॥ ता तालहलं व इमाए सीसमिन्हि पि खम्गदंडेण । पाडेमि वल्लहं वा हणिउं वियरेमि भूयाण ॥११९॥ एवं हिययभंतरपलित्तकोवानलाउलो राया । किंकायव्वविमूढो विसन्नहियओ विचिंतेइ ।।१२०॥ नूणं न होइ नारी सीलवई जं कलाईए वि । उत्तमकुलुब्भवाए वि जायमेवंविहसरूवं ॥१२१।। इय कुवियप्पवियंभणपरत्वसो नरवई पडिनियत्तो । अइवाहइ कहकहमवि वाससहस्सं व दिणसेसं ॥१२२॥ तम्मि समयम्मि रन्ना पच्छन्नं वाहरित्तु भणियाओ। मायंगीओ कं पि हु पडिवज्जिय तं गयाउ गिहे ॥१२३॥ पयईय वि निकरुणो निकरुणो नाम सारही रन्ना । भणिओ भद्दय ! रयणीविरामसमयम्मि पच्छन्नं ॥१२४॥ देवी कलावई मे मोनव्वा अमुगगुरुअरन्नम्मि । आएसो त्ति भणित्ता निक्करुणो रयणिविरमम्मि ॥१२५।। पउणीकाऊण रहं रहंगचिक्कारगहिरनिग्धोसं । पत्तो कलावईए भवणे तं भणइ पयपणओ ॥१२६॥ देवि ! समारुहसु रहे राया वि करिंदमारुहेऊण । पत्तो कुसुमुज्जाणे तुम्हाऽऽणयणेऽहमाइट्टो ॥१२७॥ तं सोउं सत्थमणा रहमारूढा कलावई देवी । निकरुणेण वि पवमाणगामिणो पेरिया तुरया ॥१२८॥ निकरुण ! कत्थ राय ? त्ति तीए भणिए स आह एसेस । एवं समुल्लवन्ताणि ताणि पत्ताणि रन्नम्मि ॥१२९|| एएण वंचिया हंति चितिउं भणइ गम्गयगिरं सा । हा पाव! वंचिऊणं किमिहाऽऽणीया तए ? कहसु ॥१३०॥ न म ए किमवि विरूवं विहियं ता किं तएऽवहरिया हं ? । इय सोउं निक्करुणो करुणारसपूरियसरीरो ॥१३॥ अंसुजलुल्लियनयणो कयंजली तक्कमे नमेऊण । पभणइ सामिणि ! कम्मं पि मम नामस्स समरूवं ॥१३२॥ मा होज मज्झ सरिसो पुरिसो निन्भग्गसेहरो पावो । जो एवंविहकम्मे निओइओ हयपयावयणा ॥१३३॥ चयइ सिणिद्धं पि जणं कुणइ अकज्ज पि हणइ जणयं पि। किं किं न कुणइ सामिणि ! परव्वसो सेवयवराओ?.॥१३४॥ सव्वाण वि पावाणं सिरोमणितं सया समुव्वहइ । सेवापरव्वसत्तं नराण जेणेरिसं भणियं ॥१३५॥ सोच्छ्वासं मरणं निरग्नि दहनं, निःशृङ्खलं बन्धनं,
निष्पy मलिनं, विनय
लिने विनैव नरकं सैषा महायातना। सेवासञ्जनितं जनस्य सुधियो धिक् पारवश्यं यतः,
पञ्चानां सविशेषमेतदपरं षष्ठं महापातकम् ॥१३६।। ता ओयरिय रहाओ उवविससु तले विसालसालम्स | आणत्तमिमं रन्ना न अन्नहा कीरए एयं ॥१३७॥ तं सोयं सोयामणिपहारपहय व्व जाव ओयरइ । रहरयणाओ मुच्छाए निवडिया ता महीवीढे ॥१३॥ निक्करुणो रुयमाणो रहरयणं 'गिहिउं: गओ नयरे । वणपवणवीइयंगी सचेयणा सा वि संजाया ॥१३९।। चिइ जाव सकरुणं रुयमाणी मन्नुपूरियसरीरा । ता पत्ताओ मायंगिणीओ नरवइनिउत्ताओ ॥१४॥ भिउडीभीमनिडालाओ तडिलयातरलकत्तियकराओ। निव्भच्छिउं पयत्ताओ ताओ फरुसक्खरगिराहिं ॥१४॥
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