Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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तथा हि
३६. बन्धुकृत्रिम स्नेहत्वाधिकारे कोणिकाख्यानकम्
इय ताणि कुमरमारणपट्टचित्ताणि ताव अच्छंति । अलहंताणि कुओ वि हु सुविसिद्धं मारणोवायं ॥४७॥ कुमरो विवरणा सद्धि पिउभमंतितणएण | चिट्ट विसिकीलाहि कीलमाणो निरुव्विग्गो ॥ ४८ ॥
कइया वि हु परिवाह तुरंगमे तुरयवाहियालीए । कइया वि हत्थिसिक्खानिउणो कोलावर करिंदे ॥ ४६ ॥ कइया विहु कीलासु कीलइ कुमारपरियरिओ । कइया वि धणुत्र्वेए परिस्समं कुणइ अवहिओ ॥ ५० ॥ कइया वि मल्लजुद्धं विउसविणोयं कयाइ सत्थगयं । इय विविहकलाविसयं कुणइ पबंधेणमभासं ॥ ५१ ॥ नाओ धणुणा नियजणयमंतिणा एस वइयरो सव्वो । कुमरविणासणविसओ तो भणिओ तेण दीहनियो ॥५२॥ तं चिंतसु रज्यमिमं मज्झ पए संपयं सुओ एस । कायव्वो अहह्यं पुण परलोयहिए जइम्सामि ॥ ५३ ॥ सो चितइ लट्टमिमो जइ ओसहमंतरेण मह वाही । नासह तो तेणुत्तं समीहियं कुणसु किमजुत्तं ? ॥ ५४ ॥ तो तेण नयरबाहिं सत्तायारं करावियं तत्थ । अच्छइ पेच्छंतो दुट्टबिलसियं ताण पावाणं ॥ ५५ ॥
चुणीए चिंतियमिमो र विग्धकरो कहं किर कुमारो। मारेको ? तो तीए निच्छियं मज्झ भायसुया ॥ ५६ ॥ वयपत्ता तीए समं वीवाहं कारवेमि कुमरस्स । महया विच्छड्डेणं तस्सेव य वासभवणकए ॥ ५७ ॥ कारविय चित्तरूवं जउपासायं पहाणखंभजुयं । तम्मि य सयणनिमित्तं सवहूयं पक्खिविय कुमरं ॥ ५८॥ वीसं पि हु पासायं पज्जालिस्सं कयम्मि एवमिमो । मरिही अवन्नवाओ वि रक्खिओ मज्झ किर होही ॥५६॥ इय चिंतिऊण कहियं दीहनरिंदस्स सोहणमिमं ति । पडिवज्जिऊण तेणं पासायाई तहेव कयं ॥ ६०॥ नायमिमं सचिवेणं तओ सुरंगा खणाविया तेण । जउहर- सत्तायाराणमंतरालम्मि पच्छन्ना ॥ ६१॥
विवरण या कुओ वि हु भयं भवइ एत्थं । तइया पन्हिपहारं दाविज्जसु कुमरमेत्थ पए ॥६२॥ नी हरिय सुरंगाए सत्तायारम्मि मज्झ पासम्मि । आगच्छेज्ज सकुमरो पमाइयव्वं न एत्थइत्थे ॥६३॥ तत्तो चुलणीवपणा तहेव पज्जालियम्मि पासाए । पन्हिपहारं कुमरो कारविओ भणियभूभाए ||६४ || निम्ांतूण य तत्तो पत्तो घणुमंतिणो सयासम्मि । तेण वि सब्बो कहिओ कुमारमारणकयपवंचो ||६५|| चुलणी-दीहरणं तत्तो ठाणाओ जह विणिग्गमिया । आरोढुं तुरएहिं जहा पणट्टा अरन्नमि ||६६|| काले जहा जाओ चोदसरयणाहिवो छखंडवई । भरहम्मि बंभदत्तो सुयाओ सव्वं तहा नेयं ॥ ६७॥ एत्थ पुणपत्यथे एत्तियमेत्तं सुहं कहिज्जंतं । तो तत्तियमेव मए भणियं ति कयं पसंगेण ॥ ६८ ॥ ऐवं दुहावहाणं नमो त्थु विसयाणिमाण पावाण । जाण कए जणणी वि हु ववसइ पुत्ते वि पावमिमं ॥ ६९॥ जंतु खयं सिमि विसया अहवा विसंतु पायालं । जाण कए जणणी विहु ववसइ पुत्ते वि पावमिमं ॥ ७० ॥ निवडउ य निरालंबं गिरिसिहराओ इमा विसयवंछा । जीए कए जणणी वि हु ववसइ पुत्ते वि पावमिमं ॥ ७१ ॥ ॥ चुलण्याख्यानकं समाप्तमिति ॥ ११५ ॥
अधुना कोणिकाख्यानकमारभ्यते । तश्चेदम्
मेरु व्व नाभिभूयं पच्चंत पुरं समत्थि वित्थिन्नं । गयणं व कविविरा इयमहीणवं भोगिभवणं व ॥१॥ तत्थऽत्थि निबो निस्सेससत्तुसंदोहसंजणियअंतो । जियसत्तू सयलकला कलावलक्खणकलियदेहो ॥२॥ निस्से सगुणनिवासो नामेण सुमंगलो सुओ तस्स । तत्थ य सेणयनामो मइसायरमंतिणो पुत्तो ॥ ३ ॥ दूरीकयमइपसरो पिंगलनयणो मसीकसिणदेहो । उद्दंतुरो य खुज्जो कसिण कुरूवाण दिट्टंती ॥४॥ अवइण्णो दिट्टपहं कुमरस्सेसो अहन्नया कह वि । तो कुमरो नच्चावइ तं दाउ हत्थतालाओ || ५॥ अन्नेहिं वि हासेहिं केलिपिओ तं विडंबए निच्चं । एवं विनडिज्जंता विचित्तभंगेहिं कुमरेण ॥ ६ ॥ निवेयमुवगओ सो कुमरस्स य किं पि काठमसमत्थो । गिण्हइ तावसदिक्खं तव्वेलमभिग्गहं च इमं ॥७॥ मासंते कायव्यं पारणयं तत्थ वेगगेहाओ । न हु गंतव्वं बीए नियत्तियव्वं अलाभे वि ॥ ८॥
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