Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text ________________
३७. दैवनिवारणाऽशक्यताधिकारे यादवाख्यानकम्
३१७ एवमणिचसरुवं नाउं संसारियाण वत्थूणं । सासयसिक्सुहजणए धम्मे च्चिय होइ जइयव्वं ॥१८५|| इय सवणामयसरिसं सोउंसिरिनेमिसामिणो वयणं । संसारविरत्तमणा जाया सव्वा वि पुरिपरिसा ॥१८६॥ ते तारिसा वि जउवल्लहा वि दुइंत-तरलहियया वि । संवाइया कुमारा संविग्गा फव्वइंसु तया ॥१८७|| उत्तमकुलुग्गयाओ वि रूव-सोहागगुणजुयाओ वि । रुप्पिणिपामोक्खाओ वयं पवन्नाओ देवीओ ॥१८॥
सो वि हु कुलिगिदेवो नाउण विगओ नियपइन्नं । तुरमाणो आगच्छइ पेच्छइ धम्मुज्जयं लोयं ॥१८९॥ न' तरह किं पि अणत्थं काउं धम्मप्पभावओ तत्थ । छिदं निभालयंतो अच्छइ पासेमु भमडंतो ॥१९०॥ अह बारसमे वरिसे अवस्सभदियव्ययानिओयम्स । भवणाओ जायवाणं संजाओ माणसवियप्पो ॥१९१।। धम्मपभावेणऽम्हं सो पावो निप्पभो टिओ नूणं । न तरह काउं किं पि वि उद्धियदाढो भुयंगो व्य ।।१९२।। भुंजामो विलसामो संपइ बादं पराइया अम्हे । मज्जाई नियमेहिं दुक्करकरणेण भणियं च ॥१९३॥ पुप्फ-फलाणं च रसं सुराए मंसम्स महिलियाणं च । जाणंता जे विरया ते दुक्करकारए वंदे ॥१९४॥ तो ते पमत्तचित्ते दणं मज्जपाणगासत्ते । छिद्द पाविय पावो उप्पाए बहुविहे कुणइ ।।१९५॥ अट्टहासमसमं मुंचंति अचित्तचित्तपुत्तलिया। देवउलदेवयाओ सकडक्खाओ निरिक्खंति ॥१९६॥ गयणयलनारिनच्चण-रुहिरपवरिसण-सिवापवेसा य । कुसुमिणदंसण-सूरोवराय-कविहसियरूवा य ॥१९७|| अवरे वि हु संजाया भूमीकंपाइया दुरुप्पाया । किं बहुणा जिणभणियं पच्चासन्नं तया जायं ।।१९८॥ आहुणिय कट्ट-तण-कयवराइसंवट्टवाउणा धणियं । पुंजीकरेइ पावो नयरीए मज्झयारम्मि ॥१९९॥ सहि कुलकोडीओ बहिट्टियाओ (तओ य] निकरुणो । बाबत्तरं च मज्झट्ठियाओ सयलाओ मेलेउं ॥२०॥ अपय-च उप्पयमाई जं कि पि हु पासई तयं सव्वं । नयरीए पडिबद्धं तं मज्झे खिवइ दुक्खनिही ॥२०१॥ तत्तो चउपासेसुं पज्जालिय पावयं पबलपवणं । उल्ल]लियबहलधूमंधयार-जालानिरुद्धनहं ॥२०२॥ हा ताय ! भाय ! पिययम ! डझंताऽसरणया अणाहा य । वीसुंपलित्तगत्ता कहमच्छामो ? कहिं जामो ? ॥२०३॥ जलणेण पलित्ताई पडंति माऊए उवरि डिंभाइं । मायाओ पलित्ताओ पडंति उवरि पलित्ताणं ॥२०४॥ अंगीकयनरयदुहो हा हा ! को एरिसं महापावं । कजं ववसइ ? जो किर न दूरभव्वो अभब्चो वा ॥२०॥ कंदंति जायवा जायवीओ नाणापलावमुहलाओ। अवराओ नायरीओ रुयंति असमंजसपयारा ॥२०६॥ हा बलदेव ! महाबल ! [हा'"] वंत केसव ! कहिं ते । सहस त्ति गया सत्ती ? हा हा ! ते वि हु कहिं कुमरा ? ॥२०७।। डझामो डग्झामो रक्खह रक्खह कुओ वि आगंतुं । इय सव्वत्तो सुव्वंति दारुणा पइपयं सदा ॥२०८|| बलदेवसुओ नामेण कुज्जओ गुरुसरेण पोक्करइ । जइ किर चरमसरीरो ता कह डज्झामि एवमहं ? ॥२०॥ इय भणिए सो सह सा उक्खित्तो जंभगेहि जिणपासे । पव्वइओ कयपुन्नो कम्म खविऊण सिद्धो य ॥२१०॥ बलदेव-वासुदेवा तुरए जोइत्त रहवरे पियरो । आरोबिऊण सिग्घं जा किर नयरीओ नीति ॥२११॥ ता देवेणं भणिया निभच्छेऊण निठुर गिराहिं । भो भो ! तुम्मे भुल्ला ? किं वा विसघारियावयवा ? ॥२१२।। किं वा वि हु वीसरियं मह वयणं मोहमोहियमणाण ? । जं दो वि जणा तुब्भे मोत्तु नऽन्नस्स नीसारो ॥२१३॥ एवं वोत्तू पावो पिहेइ दाराई पुरपओलीए । तो पण्हिपहारेणं फोडिंति कवाडसंपुडए ॥२१॥ एवं पि कए जाव य न देइ निम्गममिमो रहवरस्स । अम्मा-पिऊहिं भणिया तो ते मा कुणह पडिबंधं ॥२१५॥ अम्हाणमुवरि जम्हा जिणिंदवयणं न अन्नहा होइ । ता वयह तुमे अम्हं पुणाइ जं होइ तं होउ ॥२१६॥ तु भेहिं जियंतेहिं पुणरवि कुलसंतई धुवं होही । अम्हाण संतियं पुण मिच्छादुक्कड मिमं वच्छा ! ॥२१७॥ तो ते पमुक्कधाहा महया सद्देण रोविउं लग्गा । गुरुसोयतावियमणा महंतमुब्वेयमावन्ना ॥२१॥ जिन्नुजाणम्मि ठिया ओरुन्नमुहा गलंतनयणजला । पेच्छंति पुरि दीवायणेण डझंतियं दुहिया ॥२१९॥
१. न शक्नोति ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504