Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 407
________________ ३२० आख्यानकमणिका पवाइयवत्तो बारवईए विणासपज्जंतो। मज्झवि मरणं एवं कहियवं पंडुपुत्ताणं ॥२९॥ एवं बहुप्पयारं रुयमाणो पन्नवित्तु कन्हेण । कमवि किच्छेण तया जराकुमारो विणिग्गमिओ ॥२९२। कण्हो वि बाणपहरुत्थवेयणाविहुरविग्गहावयवो । वेरग्गभावियमणो चिंतिउमेवं समाढत्तो ॥२९३।। पेच्छाऽहो ! मम तारिसनिरुवमहरिवंससंभविम्सावि । तारिससिणिद्धबंधवसहस्सपरिवारियस्सावि ॥२९४॥ खणमेत्तेण वि दुद्धरविहाणवसवत्तिणो ममेयाणि । एगाणियस्स मरणं हरिणस्स व जायमुत्तं च ।।२९५॥ खणदंसियसुरसरिवित्थराइं खणसुन्नरन्नसरिसाई । एयाई ताई कम्मिदयालिणो जीव ! ललियाई ॥२६६॥ ता अलमिमिणा परिचिंतिएण कज्जम्मि देमि निययमणं । भावियजिणवयणाणं जियाण परिदेवणमजुत्तं ॥२७॥ संपइ नेमिजिणेसरपमुहाणं मझ तित्थनाहाणं । पाया सरणं निज्जियजम्मण-मरणाण सिद्धाणं ॥२९८॥ साइण नाण-दंसण-चरणजुयाणं गओ सरणमिहि । केवलिपन्नत्तस्स वि धम्मस्स महाणुभावस्स ॥२९९॥ इय चउसरणगओ हं सम्मं निंदामि दुक्कडं इहि । सुकडं अणुमोएमो सव्वं चिय ताण पच्चक्खं ॥३०॥ पंचप्पयारमइयारजायमेसिं समक्खमालोए । वयपरिणामो पुण मज्झ जाणमाणस्स वि न जाओ ॥३०१॥ ते धन्ना कयपुन्ना संबकुमाराइया मह कुमारा । रुप्पिणिपामोक्खाओ पियाओ मे निबिडनेहाओ ॥३०२॥ जे चइऊणं घरवासमेरिसं दुक्खसंतइनिहाणं । जिणपासे पव्वइया ता तेसि वयाणिमणुसरिमो ॥३०३।। संगामपमुहपावं समायरंतेण के वि जे जीवा । इहभव-अन्नभवेसु वि दुक्खविया ते खमावेमि ॥३०॥ अन्नं च सरणमिहि विसेसओ मज्झ मरणसमयम्मि । जिणसासणस्स सारो परमेट्ठीणं नमोकारो ॥३०५।। एवं मुहुत्तमेगं जावऽच्छइ सुद्धमणपरीणामो । तावासुहकम्मवसा सरिय दीवायणरिसिस्स ॥३०६॥ पेच्छ अहो ! तेण तया कुलिंगिमेत्तेण तुच्छरूवेण । भुवणे अगंजियस्स वि माणमरट्टो महं भग्गो ॥३०७॥ जं मह पेच्छंतस्स वि दद्धा नयरी सुरिंदपुरिसरिसा । पिय-माइ-सयणवग्गो विणासिओ पावकम्मेण ॥३०८।। ता जह पेच्छामि तयं संपयमवि पावकारिणमणजं । कदमि तदुदराओ तो हं सकलंतरं सव्वं ॥३०९॥ एवं वहगयहियओ पुणरवि जाओ किलिट्ठपरिणामो। जारिसिया अहव गई मई वि मरणम्मि तारिसिया ॥३१०॥ रुद्द ज्झाणोवगओ सुमरंतो वइरभावमणवरयं । मरिऊग समुप्पन्नोऽमुहलेसो वालुयपभाए ॥३११॥ एत्थंतरम्मि बलभद्दबंधवो बंधुबंधुरसिणेहो । परिपूरिऊण पयसो पोयिणिपुडयं पहपयट्टो ॥३१२॥ पाइस्सं पाणपियं सीयलमिणमो जलं ति चिंतंतो। न मुणइ मणयं पि जह। विहिविलसियमन्नहा जायं ॥३१३॥ अवसउणम ग्गखलणा निययमणे संकिओ सकम्माण । विवरीयत्तगओ तह तुरियगई तत्थ संपत्तो ॥३१४॥ पेच्छइ तं तयवत्थं परिसंतो सुयउ ताव मह भाया । पडिबुद्धं पाइस्सं जलं ति संठविय जलपुडयं ॥३१५|| गोयइ वयणमिमो ता पेच्छइ कसिणमक्खियावरियं । मयगसरूवं नाउं धसक्किओ ताव हिययम्मि ॥३१६॥ पडिबोहिओ वि कह वि हु जा न पयंपेइ ता मयं नाउं । उम्मुक्कमहानाओ ताव हली रोविडं लग्गो ॥३१॥ वाहो वा सुहृडो वा जो को वि वणे स होउ मह पुरओ । जेणेस सुहपसुत्तो विद्धो पायम्मि मह भाया ।।३१८॥ बालं विद्धं समणं नारिं सुत्तं पमत्तमह मत्तं । पहरंति न सप्पुरिसा ता नृण स को वि काउरिसो ॥३१९।। ता पयडउ अप्पाणं पोरिसवायं च चत्तमज्जाओ। जेण भडवायजणियं भंजेमि मरट्टमविसेसं ॥३२॥ हा कन्ह ! कन्ह! बंधव ! कत्थ गओ? पसिय देसु पडिवयणं। अवरद्धंन कया विहु तुज्झमए कह णु मह रुट्ठो?॥३२१॥ पेम्ममकित्तिममेयाणमलियमेयं पि संपयं जायं । अन्नह कह तुह मरणे अहमिह जीवामि निप्पुन्नो ? ॥३२२॥ मोडइ हत्थे तोडइ सिरोरुहे भिडइ रुक्खमूलम्मि । ताडइ वच्छं फोडइ महीयलं पण्हिघाएहिं ॥३२३॥ खणमेगस्थ वियंभह विस्संभइ तत्थ पासमल्लियइ । नियदेवमुवालंभइ परिरंभइ मयगकन्हतगूं ॥३२४॥ उग्गायइ खणमेगं खणमेगं रुयइ हसइ खणमेगं । खणमेगं परिदेवइ वेवइ खणमेगमन्नत्थ ॥३२५॥ कइया वि मोहबसगो पलवइ असमंजसं असंबद्धं । कइया वि हु वीसत्थो रोवइ सरिऊण गुणनियरं ॥३२६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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