Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 390
________________ ३६. सम्पद्विपदोः सत्पुरुषसमतावर्णनाधिकारे नरविक्रमाख्यानकम् ३०३ अवसर दिट्ठिपहाओ निकिव ! निभग्गसेहर! निहीण ! | निद्धम्म ! नराहम ! निब्बिवेय! निप्फुट्ट ! निल्लज ! ॥४३१॥ मा भणसु पुणो एवं मा निवडसु नरयअंधकृवम्मि । निम्विन्नाण ! न याणसि अप्पस्स परम्स य विसेसं ॥४३२॥ एवं तीए निभच्छिओ ददं मोणमस्सिओ वणिओ । लोभाभिहयं च सयं जीवामुवालद्धमारदा ॥ ४३३ ॥ हा जीव! तया लोभेण विनडिओ मुणसि नेय कवडमिमं । ज मह कज्जत्थमिमा समायमत्थ पयच्छंतो ॥४३॥ वाहियइ अहव झट्टेण लोभिओ लोयजंपियं जायं । तमिमं सच्चं संपइ जइ मह सीलस्स माहप्पं ॥४३५॥ अस्थि तओ देवो वा असुरो वा किन्नरो व जक्खो वा । सन्नेझं कुणउ जओ गरुया दुहियम्मि कारुणिया ॥४३६॥ इय सावियम्मि सीलप्पभावओ जलहिदेवया खुहिया । पक्खिव इ महावत्ते वणं कयजलयवद्दलया ॥४३॥ वायाविद्धं परिभमइ पचहणं जाव ता नहयलम्मि । सहस त्ति जंपियं जलहिदेवयाए सरोसमिमं ॥४३८॥ हं हो अणज्ज ! निल्लज्ज ! दुट्ठ ! पाविट्ट ! चत्तमज्जाय ! सीलमई सीलमई महासई एवमहिखिवसि ॥४३९॥ संपइ जइ भइणिसमं पिच्छसि परिपालिउं पयत्तेण । अप्पसि पइणो ता तुज्झ जीवियं अन्नहा नत्थि ॥४४०॥ तप्पभिई भयभीओ भोयण-पाणाइएहिं भइणि व्व । पालंतो गंतव्वं संपत्तो वंछियं ठाणं ॥४४१॥ विणिवट्टिऊण भंडं विढवियदविणो गिहं पइ नियत्तो । पडिकूलपवणवसओ पणोल्लियं पवहणं पत्तं ॥४४२।। जयवद्धणम्मि नयरे वणिओ घेत्तृण पाहुडं पवरं । वच्चइ निवम्स पासे तेणावि सगोरवं दिट्टो ॥४४३॥ दीवंतरवत्ताकहणवावडाणं परोप्परं महई । वेला लग्णा जाव य वोलीणो जामिणीपहरो ॥४४४॥ ता विन्नत्तो राया बहुदव्वं देव ! पवहणं मज्झ । ता मुयह देव ! पुणरवि समागमिस्सं पहायम्मि ॥४४५|| भवियव्ययानिओगेण भूवई भणइ भद्द ! भवओ हं । पच्चइयनियनरेहिं रक्खाविस्सामि तं वहणं ॥४४६॥ भवया उण मह पासे वसियव्वं अज्ज मन्निए वणिणा । नरवइणा पेसविया पहाणपुरिसा पवहणम्मि ॥४४॥ अणुकूलकम्मवसओ कुमारकयकोउया जलहिवहणे । जणयं विणएणं विन्न वंति सप्पणयमम्हाणं ॥४४८॥ पवहणमदिट्टपुव्वं ता तइंसणकए तहिं ताय ! । बच्चामो जइ मन्नसि तो रन्ना पेसिया तत्थ ॥४४९॥ रयणीए सुहं सुत्ता तत्थेव य पवहणम्मि सेज्जाए । जाए पच्छिमपहरे पडिबुद्धो भणइ लहुभाया ॥४५०॥ भाय ! मह कुसुमसेहर ! कहाणयं किं पि कहसु कमणीयं । वच्चइ सुहेण रयणी जेणेसा तं सुणंतस्स ॥४५१॥ जेट्टेण भणियमेयं महंतमच्छेरयावहमपुव्वं । अम्हाणमेव चरियं कहाणयं सुण किमवरेण ॥४५२॥ लहुएणं संलत्तं तयं पि मह कहसु अवहिओ अहयं । अस्थि इह संदणपुरं वेलाउलसन्नियं वच्छ ! ।।४५३ तत्थ इमो मह जणओ पिउणा अवमाणिओ सह मियाए। देसाओ आगंतुं मालायारस्स गेहम्मि ॥४५४॥ गुंथइ पुप्फाणि सयं भज्जा विक्किणइ रायमम्गम्मि । खत्तियकुलुभवा वि हु अहो ! हु विहिविलसियमपुव्वं ।।४५५॥ न हु एत्तिएण तुट्ठो वच्छ ! इमो हयविही जमम्हाणं । केणावि हु अवहरिया माया वि हु जीवियम्भहिया ॥४५६॥ तीए गवसणत्थं अम्ह पिया निम्गओ नईतीरे । नरविक्कमो कुमारो अम्हे मोत्तु नईकूले ॥४५७॥ बूढो नईपवाहेण पुन्नजोएण नरवई जाओ । अम्हे वि हु संपत्ता कह वि हु गोउलियपुरिसेण ॥४५॥ तेणावि वच्छ ! अम्हे समप्पिया मयहरस्स तस्स गिहे । विद्धिं पत्ता पुन्नेण जोइया जणयपायाणं ॥४५९॥ संपइ दुक्खत्ताणं जइ माया मिलइ कह वि पुन्नवसा । देव-गुरूणं पायप्पसायओ ता भवे लढें ॥४६०॥ गुणलयणियाए मज्झे सयणीयगयाए अवहियमणाए । सीलमईए सव्वं निसामियं निययचरियमिमं ॥४६॥ तत्तो नेहपरव्वसहियया सव्वंगजायरोमंचा । सुरहि व्व निययवच्छगदंसणनिग्गयथणयदुद्धा ॥४६२।। जामि बलिं तुम्ह मुहस्स होमि ओयारणं नियसुयाणं । इय जपंती तुटुंतकंचुया निग्गया बाहिं ॥४६३ एसा अलक्खणा हं तुम्हाणं दुक्खदाइया माया । ता एह एह चिरविरहियाऽहमारुहह उच्छंगे ॥४६४॥ इय उच्छंगो काऊण मुक्कपोक्काए तीए तह रुन्नं । कुमरेहिं समं वहणे रुयाविओ जह जणो सव्वो ॥४६५।। संठावियाणि निवपरियणेण संजायपरमतोसेण । आणंदरोदणेण वि पज्जत्तं देवि ! बहुएणं ।।४६६॥ Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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