Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 401
________________ आख्यानकमणिकोशे च उतीसअइसयजुआ जहमलापानिहरकयसोही । जियराग-दोस-मोहो एसो देवो सुगइहेऊ ||७|| परिहरियघरावासो जुगप्पहाणागमो चरित्तनिहीं । सम्मइंसणसुहओ उवएसपरो गुरु भणिओ ||८८॥ कस-छेय-तावसुद्धो पुवा-ऽवरबाहवजिओ धणियं । सचरा-ऽचरजीवहिओ धम्मो वि हु विसयनिग्गहणो ॥६॥ इय सोऊणं धम्म सम्मं जिणभासियं भवविरत्ता | धम्माभिमुही जाया सव्वा वि तया भवियपरिसा ॥९॥ अह पाविय पत्थावं पुच्छइ पंजलिउडो पुहइपालो । सुरकयसन्नेम्झाए बारवईए पुरवरीए ॥२१॥ जक्खसहम्साहिट्टियतणुणो भरद्धचकिणो मम वि । नासो नेमिजिणेसर : किमियरभावाण व भविस्सो ? ॥१२॥ अह भणइ नेमिनाहो सनीरनीरयनिभाए वाणीए । नरनाह ! वत्थुजायं जं किंचि वि दीसइ जयम्मि ॥१३॥ कयगसरूवं सव्वं विणस्सरं तमिह किं वियप्पेणं? । जइ एवं ता कइया ? कुओ य ? कह व ? ति सुण रायं ! ॥१४॥ पारासरनामो आसमम्मि कम्मि वि अहेसि को वि रिसी । निदियकुलसंभूया संपत्ता कनया तेण ||५|| सो कइया विहु तीए समं भमंतो गओ जउणदीवं । दीवम्मि समुभूओ त्ति तेण दीवायणो नामं ॥६॥ तीए पुत्तो तत्थ वि तुज्झ कुमारेहिं मज्जमत्तेहिं । खलियारियाओ तत्तो बारवईए धुवं नासो ॥९॥ तुज्झ पुण कन्ह ! होही जराकुमाराओ जाण एयाओ। भवियव्वयानि' ओया न अन्नहा तीरए काउं॥९८॥ कन्हविणासयमेयं वयणं जिणमुहविणिग्गयं सोउं । निम्भरमन्नुवसागयनयणंसुजलाओ दिट्टीओ ॥९९|| जलहिम्मि नईओ इव वाहीओ इव अपत्थभोइम्मि । पावम्मि कुगइओ इव विवयाउ व दुन्नयपरम्मि ॥१०॥ सदयाओ सकोवाओ सविम्हयाओ सयाणुतावाओ । सव्वेसि जायवाणं जराकुमारम्मि पडियाओ ॥१०॥ सो वि हु जराकुमारो हिययम्मि धसक्किओ विलक्खमणो । ल जाए जायवाणं मुहं पि दंसे उमसमत्थो ॥१०२॥ खणमवि ठाउमसत्तो सयणकडक्खेहिं सल्लियसरीरो । उच्छीहरबाणेहिं व विद्धो मम्मम्मि दहवयणो ॥१०३॥ भणइ महिं मह भयवइ ! वियरसु विवरं विसिट्ठजणवज्जे । जेणाहं हयवु द्धी पावो पविसामि पायाले ॥१०॥ धिद्धी ! कहमेवं विहमहमहमो पावमायरिस्सामि ? । दूरम्मि मंदभम्गो जामि जहिं फुट्टपाहाणा ॥१०॥ पयडेमि पारिसमओ निरत्थयं किं वियप्पजालेण ? । मह जीविएण जीवउ चिरकालं बंधवो कण्हो ॥१०६॥ करकलियबाण-धणुहरदुद्धरिसो साहिऊण कण्हम्स । पायडियवाहवेसो कोसंबवणम्मि संपत्तो ॥१०॥ तारारुदरा वि तया जराकुमारम्मि निग्गए नयरी । न विरायइ रयणीयरविरहे रयणि व्व तमगसिया ॥१०८॥ कन्हो पुण सुन्नमणो पियबंधवविरहिओ मुणइ रन्नं ।जणसंकुलं पि नयरिं जराकुमारे पवसियम्मि ॥१०९॥ जओ एगेण विणा पियमाणुसेण सन्भावनेहरसिएण । जणसंकुला वि पुहवी अव्वो ! रन्नं व पडिहाइ ॥११॥ किंच मणवल्लहलोयविओयणम्मि जायइ जणस्स जं दुक्खं । तं कहिउं पिन तीरइ सारिच्छं नारयदहस्स ॥११॥ बलभाया सुसिणिद्धो सिद्धत्थो सारही सुणिय वसणं । मोयावइ बलभदं तेण वि भणियं कुणाभिमयं ॥११२॥ गुरुदुक्खं गिहवासं मुयमु महाभाग ! संपलित्तमिमं । आवइगयं कया वि हु पडिबोहसु मं पवजवयं ॥११३।। इय सामपुठवमेसो सम्म मोयाविऊणमप्पाणं । सिरिनेमिनाहपासे एयावसरम्मि पवइओ ॥११॥ आयन्नियजिणवयणा कण्हाई जायवा निराणंदा । वेरग्गभावियमणा बारवइं पडिगया सव्वे ॥११५॥ भयवं पुण नीहरिओ बारवईओ बहिं विहाराए । चउविहसुरपरियरिओ बोहितो भवियजणनिवहं ॥११६॥ विष्फुरियधम्मचक्को निद्दारियमोहरायरि उचक्को । आएज्ज-महुरबक्को पाडियपरतित्थियधसको ॥११७॥ पन्नवियतत्तवाओ भावलयबिलुत्ततिमिरसंघाओ। अलि उलसामलकाओ सुरकयकमलुवरिकयपाओ ॥११८॥ भयवं अरिट्रनेमी गामा-ऽऽगर-नगरमंडियं वसुहं । विहरइ फुरियपयावो पयासियासेसवणयलो ॥११॥ १. भामण्डल। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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