Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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३७. दैवनिवारणाऽशक्यताधिकारे द्विजसुताख्यानकम्
३०५ नियमइविभवविणिज्जियसुरमंती सुमइनामओ मंती । रन्नो सयले कज्जे रज्जधुराधरणधोरेयो ॥४॥ अवरो वि अस्थि रन्नो पुरोहिओ रायसम्मओ सययं । छक्कम्मरओ चउदसविजाठाणाण पारगओ ||५|| नामेण विन्हुमित्तो सोमा नामेण भारिया तस्स । माहणकुलसंभूया पइव्वया पयइसोमा य ॥६॥ तत्तो य नियकुलागयसकम्मकरणुज्जयाण नीईए । कालक्कमेण जाया ताणं दो चेव सुयरयणा ||७|| उब्यूटवेयवहाभारो अन्नाणतिमिरनिद्दलणो । पढमो पत्तपइट्टो वराहमिहिरो जहत्थऽक्खो ||८|| बीओ य सयलकल्लाणकारगत्तेण भव्वलोयम्स । पुरपरिघदीहबाहु त्ति भद्दबाहू समक्खाओ ॥२॥ दोन्नि वि लक्खणकुसला दोन्नि वि साहित्तजलहिपारगया । दोन्नि वि पमाणपडुया दोन्नि वि परिमुणियगणियमया ॥१०॥ अन्नेयु वि बंभन्नयसत्थेसु विणिच्छियत्थपरमत्था । जाया च उण्ह वेयाण पारया धारया यावि ॥११॥ अह रमणीमणमोहणभूयं तारुन्नयं च जा पत्ता । लोइय-वेइय-समइय-ववहारवियक्खणा जाया ॥१२॥ तो कालसमयविउणा पिठणा काराविओ करगहणं । जेट्टो विसिट्टनक्खत्ततिहिमुह ईए ॥१३॥ नामेणं सावित्ती जाया जाया वराहमिहिरस्स । बंभस्स व वेयविसारयस्स चउराणणस्स सई ॥१४॥ भाया वि तस्स सारीर-माणसाणेयदुक्खसंतत्तं । कलिऊण जीवलोयं परमाणंदं च मुत्तिसुहं ॥१५॥ मुणिय तहाविहथेराणमंतिए जायगरुयसंवेगो । फव्वइओ परिचइऊण गेहवासं विवेयवसा ॥१६॥ अन्भसियदुविहसिक्खो विन्नायजहुत्तसमयपरमत्थो । चउदसपुवी जाओ कवितिलओ कित्तिकुलभवणं ॥१७॥ पंचमहब्बयधुरधरणपञ्चलो सगुरुपत्तसूरिपओ । विहरइ पुहविं छत्तीससूरिगुणसंपयासहिओ ॥१८॥ नवरं वराहमिहिरो तस्सुवरिं गरुयमच्छरं वहइ । मिच्छत्तमोहियमई धम्मम्मि अनायपरमत्थो ॥१६॥ भणइ य पालणयाओ किं न बिरालीए भक्खिओ सरखं । पाव ! जमेवं ववसंतएण लज्जाविया लोए ॥२०॥ नामाइ घडाईणं निरत्थयत्तं पओयणाभावा । मन्नइ भावघडं चिय विसिट्टकजप्पसाहणओ ॥२१॥ सो उण सूरी समसिरिसमस्सिओ थिमियनीरनाहनिभो। अहह ! महंतं पुरिसाणमंतरं दीसइ जयम्मि ॥२२॥ अह उवरयम्मि जणए वराहमिहिरो पुरोहियपयम्मि । महईए विभूईए पइट्टिओ रायपमुहेहिं ॥२३।। तप्पभिइ पूयणिज्जो संजाओ पउरमझयारम्मि । पायं पाहाणो वि हु पइट्टिओ लहइ माहप्पं ॥२४॥ विन्नाणे नाणम्मि य कलाकलावे य गणियमग्गम्मि । सव्वत्थ वि पत्तट्टो विसेसओ जोइसत्थम्मि ॥२५॥ किंतु कुल-जाइमयओ दढमभिमाणी परं पराभवइ । अथिरसहावो अहवा अकलंकगुणा जए विरला ॥२६॥ नियवंसजाओ अवरेण कह वि जिप्पामि जइ सविजाए । ता साहेमि पइन्नारूढो दुसह चियाजलणं ॥२७॥ एवमसन्नयसुयनाणजणियगुरुगव्यपव्वयारूढा । उद्धरखंधो नयरे वराहमिहिरो परिव्भमइ ॥२८॥ अह अन्नया कयाई सावित्तीगभसंभवो पुत्तो । सव्वंगलक्खणधरो संजाओ सहमहत्तम्मि ॥२९॥ वद्धाविओ य दासीए रायअत्थाणसंठिओ विप्पो । नवरं हरिसट्टाणे वि सामवयणो दिओ जाओ ॥३०॥ जम्हा तं चिय लग्गं विणिच्छियं न उण आगमणकालो। परिगणिओ दासीए सुयजम्मुप्पत्तिरसिएणं ॥३१॥ निवच्छिएण भणियं देव ! इमो एरिसम्मि लग्गम्मि । संजाओ मज्झ सुओ जह वईतो अलक्खणओ ॥३२॥ देवरस य रज्जम्स य रहस्स य जाव नियकुलम्सावि । जायइ विणासहेऊ कूरग्गहदिट्टिवायाओ ॥३३॥
ना भणियं अह हो ! असंगयं कहसु अस्थि जइ को वि। दाह वि य खेमकरणत्तणण परिरक्खणोवाओ ॥३४॥ सो आह बिन्नि रज्जंतराई जइ जाइ लंघिऊण महिं ! ता दुरियभरो एयम्स चेव निवडइ न संदेहो ॥३५।। रायाऽऽह निग्विणमिमं भणइ दिओ नीइमणुसरंतेहिं । कायश्वमवस्समिमं ति जंपिडं निग्गओ विप्पो ॥३६॥ पच्चइयपरिस-मुहधाइमाइयं पउणिऊग सामगि । तद्दिणजाओ पुत्तो पिउणा निम्सारिओ सिग्धं ॥३७॥ भणिओ सो परिवारो सोलसवासाणमेस पज्जते । मरिही ता तुम्भेहिं वलियव्वं किं वियप्पेणं? ॥३८|| अवगणिय सुयसिणेहं अवगणिय जणं पि निग्घिणं कम्मं । पुत्तस्स पिया ववसइ अहो ! सकजम्स गरुयत्तं ॥३९॥
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