Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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माख्यानकमणिकोशे एवं सव्वनिसाए खणं पि निद्दा न पाविया तेण । तत्तोऽसुहकम्मवसा चिंतियमसुभं इमं मणसा ॥२३०॥ जइया गिहत्थभावे अहमासं समणगा इमे तइया । मं आलयंति मं संलवंति भासंति मेह ! ति ॥२३॥ जप्पभिइ अगाराओ पव्वइओ है इमेसि मज्झम्मि । तप्पभिइ समणगा परिभवंति मं ता धिरत्थु ! इमे ॥२३२।। समणत्तमिमं सप्पुरिससे वियं कायराण दुरणुचरं । भूसयण-लायसहणाइदुक्करं भणियमंबाए ॥२३३।। एवं जहुत्तमिण्हि सक्किम्समहं न चेव काउंजे । ता मात्तुं जिणपासे लिंगमिमं जामि गिहवासे ॥२३४॥ इय परिचिंतिय गोसे अचितमाहप्पमोहवसवत्ती । जिणवारवंदणत्थं साहूहिं समं गओ मेहो ॥२३५॥ आभासिओ जिणणं पढम चिय धारिणीमुआ सम्मं । अस्थि तुह मेह ! रयणीए अज्ज परिचिंतियमिमं ? ति ॥२३६॥ सिररइयकरंजलिणा मेहकुमारेण पणमिउं भणियं । सच्चमिमं जं तुम्भे नाणण वियाणि भणह ॥२३७|| पुणराह जिणो तुह भद्द ! जुत्तमेयं न सुद्धवंसम्स । जं पाविय पव्वजं पमायमायरसि अप्परिटं ॥२३८॥ जम्हा एसो च्चिय वच्छ ! विविहदुहवसणकारणमणज्जो । भवपहसंपत्थियऽणत्थसत्थसत्थाहसिररयणं ॥२३९॥ सयमेव चितमु तुम इहई चिय जे अचिंतकम्मवसा । संजमगिरिवरसिहराओ एयवसया खडहडंति ॥२४॥ ते दुक्यकम्महया ससंकिया लज्जिया विवन्नमुहा । बहुजणधिक्कारहया जियंति दुहजीवियं वच्छ ! ॥२४१॥
इय निउण-महुरवयणप्पुव्वगमणुसासिओ भुवणपहुणा । परितुट्टो एवं चिय लहुदोसे सिक्खवंति गुरू ॥२४२॥ भणियं च
महरेहिं निउणेहिं क्यणेहिं सिक्खवंति आयरिया । सीसे कहिं पि खलिए जह मेहमुणी महावीरो ॥२४३॥
अवरं च वच्छ ! तुह पुव्वजम्मभावम्मि वट्टमाणस्स । तिरियस्स वि आसिस कोवि कम्मवसओ सुहविवेओ ॥२४४॥ तथा हि
तुममेत्तो तइयभवे गुरुबलमाहप्पपहयपडिवक्खो । वेयड्डपायमूलेसु जायजूहाहिवपहाणो ॥२४॥ विझो व्व सरलवंसो निवो व्व सययं समुन्नयक्खंधो । सुहृदाणविलसिरकरो चाइ व्व मुणि व्व सुइदंतो ॥२४६॥ निवरज्जभरो व्व महासत्तंगपइट्टिओ पगिढपओ। सव्वंगलक्खणधरो अहेसि हत्थी समग्गगुणो ॥२४॥ तत्थठिय वणयरेहिं सहसि सुमेरुप्पहो त्ति कयनामो । चरसि निरुठिवग्गमणो भयमगणंतोऽभिमाणधणो ॥२४८॥ कइया विलयनियकलह-कलभियाजूहयं पडिक्खंतो। करिणीकरकंडूयणमीलियनयणो सुहं लहसि ॥२४९॥ कइया वि हु चरसि महल्लसल्लईपल्लवेसु पडिबद्धो । कइया वि पयंडविपक्खभिडणसंपत्तजयपसरो ॥२५०॥ कइया वि हु पयपूरियगुरुसरवरजलनिमम्गसव्वंगो । घणचाडुकरणकोवियकरेणुयासुरयसुहरिसिओ ॥२५१।। कइया वि कुणंतो सरवरम्मि सह भारियाहिं जलकीलं । अणुभवसि सकामकरेणुगंडगंडूसपाणसुहं ॥२५२।। एवं गिरिकंदर-काणणेसु गुरुसरवरेसु वियरंतो । सच्छंदसमुत्थमुहिल्लिसंगओ गमयसि दिणाणि ॥२५३॥ अह अन्नया य खरतरदिणयरकरनियरताविए भुवणे । गिम्हम्मि परोप्परवंसघंससंजायजलणवसा ॥२५४॥
पाउन्भूओ संभंतसत्त-तरु-कट्टदहणदुप्पेच्छो । धूमंधयारजालामालियगयणो वणदवग्गी ॥२५॥ तथा हि
'मल्लियसमुच्चगोत्तो झामियसच्छायतरु-सउणनिवहो। कलिकालो व्व समंता वित्थरिओ वणदवयासो ॥२५६॥ फुटुंतवंसअट्टहासरवभरियनहयलाभोगो । जालापिंगलकेसो ढयरो व्व वियंभिओ दावो ॥२५॥ निद्दट्टविसप्पिरसमयसावभयभीयसत्तसंघाओ । कुद्धमुणि ब्व विसप्पइ विमुक्कतेओ वणदवम्गी ॥२५८|| तत्तो य वणदवभया पलायमाणेसु सावयगणेसु । मणवल्लहं पि जूहं मोत्तूण तुमं पि हु पलाणो ॥२५॥ मोडतो तरुनिवहे वणदवपाउन्भवंतदप्पण । तोडतो वेयवसा विविहे वल्लीबियाणे य ॥२६॥
१. मइलियसमु रं०। २. पिशाचः ।
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