Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 370
________________ ३५. अवश्यप्राप्तव्यप्राप्तिवर्णनाधिकारे नम्याख्यानकम् २८३ इयरो वि दोसु रज्जेसु पत्तपयरिसविसेसओ जाओ। निग्गयपयडपयावो वसीकयासेसरि उनिवहो ॥१४०।। भुंतस्स य पंचप्पयारविसए गओ बहु कालो। अह अन्नया य जाओ दाह जरो नमिनरिंदस्स ॥१४॥ तस्सोवसमनिमित्तं घसंति विज्जोवएसओ सव्वा । अंतेउरिया गयदंतवलयपडि पुन्नबाहुलया ॥१४२।। सिरिखंडाई सिसिरोवयारजणणत्थमवणिनाहस्स । तत्तो उत्तालाणं परोप्परं तेसि वलयाणं ।।१४३।। संघडण-विहडणावसविसेसओ संतयं समुच्छलिओ। हलबोलरवो विरसो सुदस्सहो रायकन्नाणं ॥१४४।। भणियं च तओ रन्ना न सहइ एसो दढं मह मणम्स । तत्तो एगेगं दंतवल्यमुम्मोइयं ताहिं ॥१४॥ तह वि हु जाव न पसमइ ताव य सवाणि ताहि मुक्काणि | एगेगं मोत्तणं तो भणियं नरवरिदेण ॥१४६।। संपइ किं उवसंतो वलयरवो ? तो निवेइयं रन्नो । वलयाण सरूवमिमं विवेयओ तो विचिंतेइ ॥१४॥ पेच्छमु अइहववलयं मोत्तुं सव्वाणि जाव णीयाणि । ता मह असमाहिकरो उवसंतो एस हलबोलो ॥१४॥ ता एसो वि हु बहुओ पुत्त-कलत्ताइओ सयणवम्गो । जावऽज्ज वि ता जायइ जियाण हिययम्मि असमाही ॥१४९|| अन्नं च जियस्सिमिणा बहुएण वि पासवत्तिणा ताणं । न भवइ दुहम्मि मणयं पि परियणेणं जओ भणियं ॥१५०॥ जइया दाहजरत्तो अइदुस्सहवाहिवयणाविहुरो । तइया पासबइट्टो सयणो अक्कंदए करुणं ॥१५॥ पंके खुत्तो व्ब करी सयणगओ तडफडेइ दुक्खत्तो । सयणो वुन्नो जोयइ असमत्थो वेयणुद्धरणे ॥१५२।। अन्नह कहमेयाओ सरसाओ भारियाओ मिलियाओ ?। ससिणेहाउ मह कए खिज्जंतेवं वराईओ? ॥१५३॥ एए विचिगिच्छाए चउप्पयाराए सत्थभणियाए । धन्नन्तरिसारिच्छा वेज्जा कुसला किलिस्संति ? ॥१५४॥ अवरे वि मंत-तंताइवाइणो मंतिणो ससामंता । चउरंगबलं एयं बहुयं पि हु विभयइ न दुक्खं ॥१५५।। जइ पुण पुन्वभवकयं सहायमेगं पि होइ मह सुकयं । ता तयमवियप्पेणं होज्जा ताणं दुहत्तस्स ॥१५६।। ता जइ कहमवि एयाओ रोगवसणाओ हं विमुंचेज्जा । ता सुकयम्मि पयत्तं करेमि चइऊण रज्जसिरिं ॥१५७।। इय चिंतिय रयणीए सेज्जाए जाव सुयइ ताव सुहा । जाया निद्दा वयपरिणई य कम्मक्खओवसमा ॥१५८॥ पेच्छइ रयणिविरामे सुमिणमिमं किर अहं सयं चेव । संजमभरे व चडिओ समुन्नए मेरुसिहरम्मि ॥१५९।। तत्थ वि य सरयससहरकरनियरपहासमुज्जलसरीरे । नियगे व्व पुन्नपुंजे करिम्मि आरूढमप्पाणं ॥१६॥ ताहे नायं एसो मेरुगिरी देवपुव्वजम्मम्मि । दिट्ठो जिणिंदजम्मणमज्जणयमहूसवम्मि मए ॥१६॥ एवं सो नमिराया जाईसरणेण नायपरमत्थो । देवयविइन्नलिंगो जाओ पत्तेयबुद्धमुणी ॥१६२॥ गिरिकंदराए वीसुं पि पबलपज्जलियजलणदित्ताए। सीहो व्व विणिक्खंतो गिहवासाओ महासत्तो ॥१६३।। एत्थंतरम्मि मणिरयणभामुराभरणभूसियसरीरो । सोहम्मवई सक्खं समागओ तप्परिक्खत्थं ॥१६॥ अच्चव्भुयतच्चरिएण रंजिओ नमिरिसिं महासत्तं । नयरीओ नीहरंतं माहणरूवो भणइ सक्को ॥१५५।। भो भो । मुणसु महायस ! पवजा ताव पाणिदयमूला । तुह वयगहणे य इमा अकंदइ दुक्खिया नयरी ॥१६६।। ता दरमजुत्तमिणं पुञ्चा-ऽवरबाहयं वयं तुज्झ । तो भणइ मुणी न दुहस्स कारणं एत्थ मज्झ वयं ॥१६॥ किंतु नियनियपओयणहाणी दुक्खस्स कारणं लोए । ता अहमवि नियकजं करेमि किमिमाए चिंताए ? ॥१६८॥ ततः स्वयमेवान्तःपुरगृहाणि प्रज्वलन्त्युपदश्य पुनरप्याह शक्र : एस अग्गी य वाऊ य एयं डज्झइ मंदिरं । भयवं ! अंतेउरतेणं कीस णं नावएक्खह ? ॥१६॥ ततो नमिराह मुहं वसामो जीवामो जंसि मो नत्थि किंचणं । मिहिलाए डझमाणीए न मे डज्झइ किंचणं ॥१७०॥ चत्तपुत्त-कलत्तस्स निव्वावारस्स भिक्खुणो । पियं न विचई किंचि अप्पियं पि न विजई ॥१७१॥ १. अविधवावलयं-सौभाग्यचिह्नरूपं वलयमित्यर्थः । Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504