Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text ________________
२६४
आख्यानकमणिकोशे
तत्तो रन्ना सयमे पुच्छिया तुज्झ सीलमइ ! वच्छे ! | केरिसगुणो कहिज्ज रुच्च हिवयम्स भत्तारो ? ॥ १४३ ॥ किं चाई ? किं सूरो ? किं वा विउसो ? कयन्नुओ ? सुहओ ? | गंधव्वकला निउणो ? परोवयारी ? दयालू वा ॥ १४४ ॥ ईस अहमुहीए सलज्जमेईए जंपियं ताय ! । जो को वि हु तुह रोयइ सो चिय मह सम्मओ भत्ता ॥ १४५॥ तो भणियं नरवणा ईसिसमुन्ना मिऊण मुहकमलं । उवरोहसीलयाए बच्छे ! न सुहाई कज्जाई ॥ १४६ ॥ जइ एवं ता एसो तुह मल्लो महियले वऽपरिभूओ । जिप्पिस्सइ जेण बली सो मह भत्ता किमवरेण ? || १४७ || तो नायं नरवणा ऐसा हु बलाणुराइणी बाला । ता भद्दं परमिमिणा सवे वि पराजिया बलिणा ॥ १४ ॥ तो तं विसन्नचित्तं दद्धुं भणियं पहाणपुरिसेहिं । अज्ज वि देव ! जयंतीए अस्थि अपरिक्खिओ एगो ॥१४९॥ नरसीहसुओ बलपोरिसंक्करसिओ रसायलपसिद्धो । नरविक्कमाभिहाणो सो वि परिक्खिज्जउ नरिंद ! ॥ १५० ॥ सामत्थिऊण सम्मं तयत्थमहमेत्थ पेसिओ सामि ! | तो नरवणा चयणं निरिक्खियं निययतनयस्स ॥ १५१ ॥ तणाचि पणमिणं भणियं देवाणुभावओ भव्वं । होही सव्वं पेसवह ताय ! मं तत्थ किं बहुणा ? ॥ १५२ ॥ तो मंतिऊण सामंत-मंति- नायरजणेण सह रन्ना । पेसविओ हरिसउरे हिट्टो नरविक्कमकुमारो || १५३ ॥ अम्मइयाए नियमहत्तमो देवसेणनरवइणा । कुमरस्स पेसिओ चडयरेण चउरंगबलकलिओ ॥ १५४ ॥ तो गरुयविभूईए सोहण दिवसे पवेसिओ नयरे । नर-नारिनियरनयणाण किमवि परमूसवो कुमरो ॥ १५५ ॥ सयणा - Ssसण-बहु परिवारसंजुओ धवलघयव डसणाहो । कुमरस्स वासगेहं समप्पिओ पवरपासाओ || १५६ ॥ वीयम्मद भणिओ रत्ना कुमरो महऽस्थि सीलमई । नामेण कन्नया सा [प]भणइ जो कालमेहमिमं ॥ १५७ ॥ मह मल्लमपडिमल्लं परिभविही होहिही स मे भत्ता । सह कित्ति जयवडायाहिं कुमर ! ता गिण्हसु तयं ति ॥ १५८ ॥ अंगीकयम्मि कुमरेण सज्जिया नयरपरिसरे रम्मे । मंचाइमंचकलिया वित्थिन्ना मल्लरंगमही ॥ १५६ ॥ नर-नारिनियरसहिए उबविट्टे देवसेणनरनाहे । सिरिकुमर- कालमेहा समागया रंगभूमी ॥ १६० ॥ आबद्धनिबिडकच्छा संजमियसिद्धि के सपव्भारा । दोन्नि वि निजुद्धनिव्वडियपोरुसा साहसेक्करसा ॥ १६१ ॥ दहूण कालमेहो कुमरं संहणणदुद्धरिसदेहं । पुन्नक्खयाओ खिप्पं खुहिओ चित्तम्मि बलिओ वि ॥ १६२॥ चितइ य एस रन्नो वल्लहजामाउओ जणाणुपिओ । ता जय-पराजएसुं कुओ वि मह नत्थि कल्लाणं ॥ १६३ ॥ इय भयसंभमवसओ फुट्ट हिययं तडति मल्लस्स । कुमरस्स साहुवाओ संजाओ रंगमज्झमि || १६४॥ तत्तो य कलानिहिणो कंठे बलसालिणी कुमारस्स । पक्खित्ता वरमाला कुमरीए नेहरज्जु व्व ॥ १६५॥ अणुवो संजोगो विहिणा विहिओ समाणमेयाण । जाओ साहुक्कारो अहो ! सुवरियं ति जणमज्झे ॥ १६६॥ तत्ता सोहण दिवसे पाणिग्गहणं करावियं रन्ना । मंगलगीयरवेणं वज्जिरवरतूरनिवहेण ॥ १६७॥ पइमंडलमेईए तह हय-गय- रहवराइयं दिन्नं । रन्ना जह नयरजणो सम्वो वि धुणाविओ सीसं १६८ ॥ कइय विदिणाणि नरवर वणमणुभविय मंगलं राया । मोयाविओ सनयरं पर गमणत्थं कुमारेण ॥ १६९ ॥ तत्तोय सत्यदिणे चउरंगमहाबलेण परियरिओ । संपत्थिओ कुमारो विढवियससिनिम्मलजसोहो ॥ १७० ॥ तत्तो पिउणा दुस्सहविओगतुट्टंतनेहपासेण । सिक्खचिया सीलमई समुरकुलं पत्थिया तइया ॥ १७१ ॥ वच्छं ! गुणवियले विहु जणणी-जणयाण धुवमवच्चम्मि । को वि अपुव्वो नेहो तेण हियत्थं भणामि तुमं ॥ १७२ ॥ निप्पंक सुवन्नसमुज्जला वि सुइसीलसोरभजुया वि । केयइफडस व्व सुया परोवयाराय निम्मविया ॥ १७३॥ तावच्छे ! तत्थ गया सुविणीया होमु ससुरवग्गस्स । अविणीओ जलणो इव जण पत्तिो वि संतावं ॥ १७४॥ निनाममणुसरन्ती सीलम्मि मई सया वि मा मुयमु । सोलरयणे विणट्टे न सुन्दरं उभयलोगे वि ॥ १७५ ॥ नियमत्तणो करेज्जसु सयमासण-भोयणाइयं कज्जं । भत्तारदेवयाओ नारीओ जेण एस सुई ॥ १७६ ॥ पद्दणोऽभिमएसु य नम्मभासणा तस्स पुण अमित्तंसु । विहियावन्ना पियभासिणी य सञ्वम्मि परिवारे ||१७७॥ ससुराईण गुरुणं भत्ता नमिरा नणंदवगम्मि । हरिसियमणा सवक्किसु पइबंधुयणम्मि ससिणेहा ॥१७८॥
Jain Education International
For Private Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504