Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 379
________________ ૨૨ आख्यानकमणिकोशे राया तहेव थक्को कालविलंबं महंतमाकलिउं । सणियं तप्पिट्टीए समागओ सुणइ से जावं ॥७२॥ 'हुँ फड्ड साह त्ति हुणामि नरवई' हक्किओ इमं सोउं । रे रे कावालिय ! होसु संपयं मह पुरो पुरिसो ॥७३।। तत्तो य समुक्खणिऊण तक्खण च्चेव कूरकावाली । विप्फुरियतरलजमजीहसच्छहं कत्तियं कुडिलं ॥७४|| काऊण दाहिणकरे निन्भच्छइ भिउडिभीमभालयलो । रे रे तं रायाहम ! कुणसु सुदि8 मणुस्सभवं ॥७॥ तत्तो पयडपरक्कमपयंडभुयदंडपहरणरउद्दा । जुज्झेण संपलग्गा दो वि कवालिय-महीवाला ॥७६॥ दोन्नि वि वग्गंति घणं दोन्नि वि पहरंति पयडियपहावा । दोन्नि विरोसारुणवयण-नयणविक्खेवदुप्पेच्छा ॥७७|| जाव य खणंतरेणं निद्दयनरवइपहारजज्जरिओ । मुच्छानिमीलियच्छो पडिओ धरणीए कावाली ॥७८॥ एत्थंतरम्मि विप्फुरियतणुपहापडलपयडियदियंता । चवलतरचरणझणझणिरनेउरारावरमणीया ॥७॥ विलसंतविविहभुसणविभूसियासेसविग्गहावयवा । ठाऊणं निवपुरओ देवी भणिउं समाढत्ता ॥८॥ भो नरसीहनरेसर ! भव्वं विहियं जमेस कावाली। कित्तिवलक्खसलक्खणखत्तियखयकारओ पाओ ||१|| भुवणस्स वि दुद्धरिसो पयंडमंतप्पभावदुरभिभवो । संतावियभुवणयलो विणिजिओ जगडियजणोहो ॥८२॥ ता तुट्टा हं संपयमजेव समीहियं मह पसाया । भो भो तुज्झ नरीसर ! पसन्नवयणा पयंपंती ॥८३॥ पणमिय पुट्ठा रन्ना भयवद्द ! कहमेस वयपवन्नो वि । खत्तियवहसंजणओ भणिओ भवईए ? कहसु इमं ॥४॥ तीयुत्तमिमो खत्तियवंसपसूओ नरेसर ! नरिंदो । नामेण वीरसेणो जह रज्जाओ परिब्भट्ठो ॥५॥ जीवियनिम्विन्नेणं वित्थयभूमंडलं भमंतेणं । भइरवनिवडणमरणं जह भीमं ववसियमणेणं ॥८६॥ जह य महाकालेणं जोगाइरिएण वारिओ मरणा । तेणं चेव य दिन्नं जह कावालियवयमिमस्स ।।८७॥ तइलोक्कविजयमंतो दिन्नो गुरुणा जहा मरंतेण । जह अट्टोत्तरनरवइसएण जावो समाइट्ठो ॥८॥ जह वा कलिंगदेसाइएसु लक्खणजुया निवा हणिया । तह सव्वं नरवइणो निवेइयं देवयाए तया ॥१॥ इय कावालियवइयरमायन्निय देवयाए परिकहियं । सुयलाभेण पहिट्ठो पणमिय देविं गओ सगिहं ॥९०॥ केण वि अलक्खिओ चेव सेजमारुहइ जाव ता पढियं । समयनिवेयगपुरिसेण तत्थ केणावि सवणसुहं ॥११॥ तरिऊण तुमं व दुरंतदुक्खदंदोलिजलयराइन्न । वसणसमुदं पावइ उदयं नरनाह ! एस रवी ॥१२॥ तो सुणिऊणं गणयं सिढिलियनिदो विचिंतए राया। सूरुग्गमसमयनिवेयगो इमो पढइ को वि नरो ॥१३॥ एत्थंतरम्मि चंपयमाला पत्ता नरिंदपासम्मि । जंपइ सनम्म वयणं अहो ! हु सुहिओ जणो सुयइ ॥१४॥ पुट्ट रन्ना सुंदरि ! विसेसओ किं तुहाऽऽगमणकजं ? । अवरं च किं पि हु पिए ! हरिसियहियय व्व लक्खिहिसि ॥२५॥ ताहे पयडियविणया जोडियकरसंपुडा भणइ देवी । आगमणकजमेयं पहु ! अवहियमाणसो सुणसु ॥६६॥ अज्ज मए रयणीए समुस्सिओ सरलवंसविक्खाओ। विलसंतजयवडाओ कलकिंकिणिसद्दसवणसुहो ॥९७॥ सयलजणाणंदयरो महल्लमंगल्लदसणमहग्यो । धम्मनिही परमधओ तुमं व सुमिणम्मि सञ्चविओ ॥९८॥ ताहे सुहसुमिणसमुब्भवंतरोमंचकंचुइयतणुणा । भणियं रन्ना सुन्दरि ! सुहजणओ सुमिणओ एस ॥१९॥ अम्ह कुलकेउभूयं पुत्तं पसविहिसि सुन्दरि ! नवन्हें । मासाणमुवरिमद्धट्ठमाण राइंदियाणं च ॥१०॥ सो वि चउजलहिपज्जंतमहिमहेलाए नायगो होही । दुव्वारवइरिकरिकुंभदलणखरनहरपंचमुहो ॥१०१॥ सा वि हु सोउं पियवयणमेरिसं भत्तुको मणोदइयं । हरिसाऊरियहियया बंधइ वत्थे सउणगंठिं॥१०२।। जह नरवइणा तह सउणपाढएहिं वि वियारिए सुमिणे । चंपयमाला परितुट्ठमाणसा गम्भमुव्वहइ ।।१०३॥ गम्भप्पभिईदिवसाओ वड्डमाणम्मि तइयमासम्मि । चिंतइ चंपयमाला देवी दोहलयगुणवसओ ॥१०४॥ विविहेहिं 'पयारेहिं जइ पूयणमायरामि देवाणं । आणंदियमणवित्ती करेमि भत्तिं गुरुयणस्स ॥१०॥ वियरामि विविहसुहभक्ख-भोज्ज-वत्थाइएहिं मणदइयं । दीणाईणमहं जइ दाणं अनिवारियप्पसरं ॥१०६॥ १. सनर्म सहासमित्यर्थः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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