Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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२६८
जओ
आख्यानकमणिकोशे
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हा हा ! कत्थइ किं कोइ नत्थि कित्तिप्पिओ कुमारवरो । जो मोयावइ मरणाओ मं इमाओ महासत्तो ? || २६६ ॥ इय बिलवतिं भयविहुरमाणसं तत्थ तासतरलच्छि । पच्चासन्नी हुयमरणमेरिसं करुणसद्देण ॥ २६७॥ पासिउमपारयंतो कुमरो करुणापव्वसो सहसा । हकन्ती करिनाहं दुक्की करिणो समीवम्मि || २६८ ॥ तो वारितस्स वि परियणस्स निम्सेसनायरजणम्स | सीहो व खंधभाए भयरहिओ चडइ चवलगई || २६९॥ तत्तोय अंकुसो अंकुसो त्ति कुमरम्स बाहरंतस्स | मारेउं पारद्धो तं नारिं मत्तमायंगो ॥ २७० ॥ ततो कुमरो करुणाए तीए विम्हरियरायआएसो । पहणइ कुंभयडे तिक्खखभ्गघेणूए करिनाहं ॥ २७१ ॥ ताहे हत्थी सो तारिसी वि गाढप्पहारजज्वरिओ । निग्गयरुहिरपवाही तह चेव अचेयणो व्व ठिओ ॥ २७२ ॥ दिट्टो जणेण छुरियप्पहारकुंभयडगलियरुहिरजलो । विको व्व गलियनिज्मरणनीरपरिधोयधा उरसो ॥ २७३॥ गयणाभोउव्व अणूरुरत्तसंझाणुरायसंवलिओ । रेहइ हत्थी कुमरप्पहारपगलंत रुहिरोहो ॥ २७३॥ विप्फुरियविज्जुवलयावण द्धपणवन्नसक्ककोयंडो । नवजलहरो व्व रेहइ करिराओ रुहिरसंछन्नो || २७५॥ तो ओयरिडं कुमरो करिंदखंधाउ सुद्धपरिणामों । उक्खिविऊणं बालं मुंचइ निरुवद्दवे ठाणे ॥ २७६ ॥ ना राया करिरायवइयरं नेहनिव्भरमणो वि । धणियं कुद्धो बुद्धरिसभिउडिभासुरियभालयलो || २७७॥ फुरियाहरभयजणओ गुंजारुणवयण-नयणदुप्पेच्छो । घयसित्तहुयासणरासिसन्निभो भणिउमादत्तो ॥ २७८ ॥ रे रे कुलफंसण ! पावकम्म ! गुरुवयणलंघणसयन्ह ! । अवसर दिट्टिपहाओ मह जीवियसमकरिकयंत ! ॥ २७६ ॥ इय दुस्सह पियपरिभवहुयवहजाला पलित्तसव्वंगो । नियनिद्धजणयविरहणमचयंतो चिंतिउं लग्गो || २८०॥ ता किं इहेच चिट्ठामि विणयकरणेण पत्तियावेमि । जणयमहवा न संगयमावडियमिमं पि मज्झ फलं ॥ २८९ ॥ गुरुवयणाइकमतरुणो ता निस्सरामि गेहाओ । अन्नं च जणयपरिभवमहियासेउं न सक्केमि ॥ २८२ ॥
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गयणम्मि निरालंबणमवि परिसकंति साहसेकरसा । माणंसिणो न मणयं पि माणभंगं परिसहंति ॥ २८३ ॥ भीसणमसाणपज्ज लिय हुयवहं मत्थयम्मि साहसिया । गुग्गुलभारं घारिति माणभंगं न माणघणा ॥ २८४॥ अवि कालकूडकवलणमसुहं सुहमायरंति पियमाणा । न उणो मुयंति मरणे वि माणमाणिक्कघणमणहं ॥ २८५ ॥ अवि समरमरणमवि देसगमणमवि बंधुमुयणमिच्छंति । माणधणा न उ नियनिद्धबंधुजणियं पराभवणं ।। १८६ ।। इय चिंतिऊण कुमरो परियणमाभासिऊण सप्पणयं । सम्माणिऊण समुचियमाभरणाईहिं तं भइ ||२८७|| भो भो ! जणयाणाए गंतव्वं ता मए विएसम्मि । समयम्मि पुणो तुभे पुणरवि संभालइस्सामि ॥ २८८ ॥ ते विहु विओयपसरियवाह जलाउलोयणा जाया । पियवयणपुव्वमाभासिऊण धीरेण धीरविया ॥ २८६॥ सीमई पुण भणिया पिए ! तुमं जाहि जणयगेहम्मि । तायमणुयत्तमाणो गमिस्समहयं विदेसम्मि ||२९०॥ तं सोऊ दुस्सहविओगदुहभारभारियसरीरा । बाहजला ऊरियनयणसंपुडा रोविडं लग्गा ॥ २९९ ॥ किं रुयसि पिए ! ? आवंति आवयाओ भवे वसंताण | जीवाणमओ सुंदरि ! विवेणो हुंति धीरमणा ॥ २९२ ॥ तत्तं मणवल्ल ! धीरमणा विहु रुवामि जमयंडे । मं मोत्तुं वयसि तुमं तं मह गुरुदुक्खमन्नं च ॥ २९३ ॥ सामि ! तुमं सिक्खविओ जइ सुमरसि तायसंतियं वयणं । एक च्चिय मह धूया छाय व्ब तए न मोक्तव्या ॥ २९४ ॥ तेत्तं सव्वमहं सराम सुंदरि ! परं तुमं मग्गे । कहमहियाससि सुहिया सीयाऽऽयवसंभवं दुक्खं ? || २१५॥ सा भइ सामि ! मग्गो वि मह घरं काणणं पि कुलभवणं । कक्कससिला वि सेज्जा गिरी वि सुहओ मही वि पिया २९६ जत्थ तुमं मह पासे किं मह जणएण? किं व ससुरेण ? | मणनिइमेव सुहं सामि ! सयाणा पसंसंति ॥ २९७॥ जइ एवं समदुक्खा ता पउणा होसु जेण वच्चामो । संपयमेव पयाणं किज्जइ किर कि वियप्पेण ? || २६८॥ एवं सो सकलतो सिसुसुयजुयलो सुहिल्लिदुल्ललिओ । एगागी पयचारी पयत्थिओ साहससहाओ || २६६॥ कत्थ तयं सनुरसहं ? जणयपसायाओं कत्थ ते भोगा ? । एकपए चिय नट्टा अहो ! हु विहिविलासयमपुत्र्वं ॥ ३०० ॥
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