Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 380
________________ ३६. सम्पद्विपदोः सत्पुरुषसमतावर्णनाधिकारे नरविक्रमाख्यानकम् २६३ सवणामयसरिसाई परिणामसुहाई निव्वुइकराई । निसुणेमि गुरुसयासम्मि जइ अहं धम्मसत्थाई ॥१०७॥ तत्तो मणोरहन्भहियवित्तवियरणगुणप्पयारेण । रन्ना दोहलए पूरियम्मि सइमुहियसव्वंगी ॥१०॥ गब्भमुहावहसयणा-ऽऽसणाइणा सोहणप्पयारेण । गभं वहमाणीए तीए जाए पसवसमए ॥१०॥ नवमासाण सवायाणमुवरिमणहम्मि दिणि मुहुत्तम्मि । उच्चट्ठाणगएसुं गहेसु विरयासु य दिसासु ॥११०॥ पणइजणमणवियप्पियपयत्थसंपयसमप्पणापवणं । कप्पमहीरुहभूमि व्व कप्पपायवमणप्पगुणं ॥११॥ चंपइमाला पसवइ पुत्तं पुन्नप्पभावओ रन्नो । नियतणुकंतिकडप्पप्पभावपज्जोइयदियंतं ॥११२॥ तत्तो हरिसविसंटुलगइवसपरिसिढिलवसण-घम्मिल्ला । ओरोहदासचेडी वद्धावइ वसुमईनाहं ॥११३॥ संपइ बद्धाविज्जसि नरनाह ! तुम जएण विजएण । जेण पसूया पुत्तं चंपयमाला महादेवी ॥११॥ रन्ना वि य दासित्तं अवणेउं तीए दासचेडीए । दिन्नं च पारिओसियदाणं सुयजम्मतुट्टेण ॥११५।। आणत्ता नायरया जहाविभूईए नयरमज्झम्मि । कारवह महाऽऽणाए सुयजम्ममइसवं गरुयं ॥११६॥ तेहिं वि तह ति पडिवजिऊण निस्सेसनयरिमञ्झम्मि । वद्धावणयं विहिणा कारवियं तं च एरिसयं ॥११७ ॥ विरइजमाणतोरणवंदणमालं दुवारदेसेसु । ठाविज्जमाणचंदणचच्चियसुहपुन्नकलसजुयं ॥२१८॥ उभिजमाणनवरंग-वसण-परिहाण-जूय-मुसलसयं । पढमाणचवलतरचट्ट-भट्ट-सूमाइयाइन्नं ॥११९|| पविसंतक्खयवत्तं विद्धाजणकिजमाणसुयरक्खं । नच्चन्तवारविलयं सनम्महीरंतसिरनेढं ॥१२०॥ इय गरुयविभूईए वद्धावणयं नरिंदचंदेण । आणंदियपउरजणं कारवियं पुत्तजम्मम्मि ॥१२१॥ अह नामकरणदिवसम्मि सोहणे तिहि-मुहुत्त-करणम्मि । भोयाविऊण नीसेसपरियणं भोयणविहीए ॥१२२।। सम्माणिऊण वरवत्थ-रयण-असणप्पयाणओ सम्मं । पुहइवई सप्पणयं सव्वं पि हु पुरपहाणजणं ॥१२३॥ कुलविद्धनारिनिवहेण मत्थए चोक्खयक्खिवणपुव्वं । नरविक्कमो ति नामं सुयस्स कारवइ कालण्णू ॥१२४॥ संजाओ य कमेणं वटुंतो अट्टवरिसदेसीओ.। मुहसियपंचमि-गुरुवार-पुस्सनक्खत्त-करणेसु ॥१२५॥ उवणीओ लेहायरियपायमूलम्मि मलियमाणभडो। ससिणेहं सम्माणिय कलागुरुं गरुयभत्तीए ॥१२६॥ नियजोग्गयागुणेणं जणयपयत्ताओ निच्चमभिओगा । लेहायरियस्स गओ कलाण सव्वाण सो पारं ॥१२॥ लेहम्मि लद्धलक्खो अहियं परिनिटिओ धणव्वेए । गंधव्वकलाकुसलो पत्तच्छेयम्मि पत्तट्टो ॥१२८॥ नर-नारि-तुरय-गय-रहवराइपरमत्थलक्खणविहन्नू । गंधंगजुत्तिनिउणो चउरमई चित्तयम्मम्मि ॥१२६॥ लोयव्ववहारविऊ मंतपओगेसु नायपरमत्थो । परचित्तगणदषसोविसारओ सद्दसत्थेसु ॥१३०॥ सा नत्थि कला तं नत्थि कोउयं किं पि नत्थि विन्नाणं । जत्थ न सो पत्तट्टो विसेसओ मल्लजुद्धम्मि ॥१३॥ अह अन्नया य पेक्खणय-गीयवक्खित्तरायअत्याणे । निवपाससुहासीणे सुहए नरविक्कमकुमारे ॥१३२॥ करकलियपयंडसुवन्नदंडदुद्धरिसभासुरसरीरो । आगंतुणं विन्नवइ सविणयं निवपडीहारो ॥१३३॥ हरिसउरसामिणो देव ! देवसेणस्स दारदेसम्मि । चिट्ट दूओ देवस्स दंसणं महइ किं कजं? ॥१३४॥ सिग्धं भद्द ! पवेससु तमिइ निउत्ते निवेण स पविट्ठो । कयसमुचियपडिवत्ती एवं विन्नविउमाढत्तो ॥१३५॥ संति पहु ! मझ पहुणो अइसयभूयाणि दोन्नि रयणाणि । नियरूवोवहसियतियससुंदरी कन्नगा एगा ॥१३६॥ अवरो य रायमल्लो पडिभडकमलाण कालमेहो व्व । नामेण कमलमेहो विणिज्जियासेसमलगणो ॥१३॥ तत्थऽन्नया कयाई सुहासणत्थस्स रायअत्थाणे । सव्वालंकारमणोहरंगियानिययजाणणीए ॥१३८|| पिउपायपणमणत्थं पट्टविया पुव्ववन्निया कन्ना । उच्छंगम्मि निविट्ठा पलोइया तयणु पिउणा वि ॥१३॥ वरचिंतणत्थमेसा [ग्रन्थाग्रम् ११०००] मन्ने पउमावईए देवीए। पट्टविया मह पासे ता को णु इमीए अणुरुयो॥१४॥ होही भत्ता भवणे वि ? विसरिसाणं कए वि संबंधे । आजम्मं घरवासो दुहपासो होइ मिहणाणं ॥१४१।। इय दुहियावरचिंतणजलहिमहावत्तसंकडे पडिओ। राया सव्वावस्थासु दुयरी होइ जेण सुया ॥१४२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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