Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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भणियं च
३५. अवश्य प्राप्तव्यप्राप्तिवर्णनाधिकारे बन्धुदत्ताख्यानकम्
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धावे रोहणं तर सायरं भमइ गिरिनिउंजेसु । मारेइ बंधवं पि हु पुरिसो जो होइ घणलुद्ध ||६७॥
बहुं वह भरं सहइ छुहं पावमायरइ घट्टो । कुल-सील- जाइपच्चयटिडं च लोभद्दुओ चयइ ॥ ६८ ॥ एत्थंतरम्मि पेच्छह निद्धस्स सहोयरस्स पावेण । पेच्छंतस्स वि मज्झं कहमिमिणा कज्जमायरियं ॥ ६१ ॥ सूरो हं सुभगो हं सुपवित्तो हं पयावपयडो हं । तामसपडिवक्खो हं सुपरक्क मसत्तिजुत्तो हं ॥७०॥ कमलाण बोहओ हं समुच्च गोत्तदयपत्तपसरो हं । सब्बुवरि संटिओ हं महिहरसिर दिन्नपाओ हं ॥ ७१ ॥ भुवणत्तयमित्तो हं तेयस्सिसिरोमणि त्ति पत्तो हं । ता किं इमिणा गुणसमुद्रएण मह कज्जवियलेण ? ॥७२॥ इय बंधु दत्तवणियं निद्दोसं दुक्खियं सरणरहियं । दद्धुं अचयंतो लज्जिर व्व अत्थं गओ तरणी ॥७३॥ कहमवि सुयणो सुयणस्स आवयावणयणम्मि असमत्थो । आवइपडियं दद्धुं अपारयंतो अवक्कमइ ||७४ || इय बुद्धी मन्नेऽवतो मह पई सुयणतिलओ । इय परिभाविय संझा वि झत्ति पइमग्गमणुसरिया || ७५ ॥ सो वि वणिबंधुदत्तो रुहिरुल्लियनयणजुयलओ जुगवं । अंगीकओ सरीरय- माणस दुक्खेण खीणतणू ॥७६॥ कहमवि य हत्थफंसप्पयारओ पत्ततरुतलपएसो । परिभाविन्तो नियकम्मपरिणई जाव वीसमइ ॥७७॥ तावय पयईए चेव दुहयरी तमविलुत्तसम्मग्गा । कलिकालकरणिमहिमामणुकु व्वंती निसा पत्ता ॥ ७५ ॥ ती तमपडलाई विष्फुरियाई समंतओ भुवणे । संतावकारयाई खलं दुन्नयविलसियाई व ॥ ७६ ॥ तत्तोय धूयसंघा घुग्घुइया निग्विणा सवणकडुया । नीयजणा इव दुव्वयणजणियसुइसुयणसंतावा ॥ ८० ॥ कत्थवि य घोरबग्घा घुरुहुरिया भयकरा करालमुहा । लंचोवयारकलिया पिसुणा इव पयडपेसुन्ना ॥ ८१ ॥ अवरत्थ दुसहखरतर करपसरा तासकारिणो कुरा । कलिकालनरिंदा इव गुंजारवयंति केसरिणो ॥ ८२ ॥ उव्वेयकारिणीओ भल्लुंकीओ भसंति भमिराओ । कुलडाउ व तरलयराउ उभयकुलफंसणकरीओ || ८३॥ इय सोसावयभीओ समीहए तरुसिरे समारोढुं । नवरमिमो मूलाओ समुन्नओ सज्जणो व्व तरू ॥ ८४ ॥ साहाओ विहु कुलबालिय व्व पणयाओ तस्स वरतरुणो । अवलंबिऊण ताओ साहाविवरे समल्लीणो ॥ ८५॥ अड्डवियड्डाओ चंपिऊन कोमलल्याओ तानुवरिं । रइऊण पत्तसयणं तम्मि पसुत्तो भयविमुक्का || ८६ ॥ जवच्छता दीवंतराओ पत्ताण सुबइ पक्खीणं । सिहरम्मि जंपियमिमो महल्लजणएण पुट्टाणं ||८|| भो ! को कुओ इहाऽऽओ ? केण व दीवंतरम्मि किं दिट्टं ? । निसुयं च कहइ सव्वं मह पुच्छंतस्स नियपिउणो ॥ ८७॥ तेहि वि जं जहवत्तं दिट्टं जं जेण जम्मि दीवम्मि । तं तह सव्वं कहियं नवरमिमाणं भणइ एगो ॥ ८९ ॥ अहम ताय ! पत्तो सिंहलदीवम्मि तत्थ नरवइणो । मयणघरणि व्व रूवेण मयणरेहा सुया तस्स ॥९०॥ ती य अच्छिवियणाए पीडियाए तइज्जओ मासो । विज्जेहि वि परिचत्ता पिउणा वि दवाविओ पडहो ॥ ६१ ॥ जो मह धूयं पणं करेइ वियरामि तस्स तीए समं । अद्धं रज्जम्स तयं च को वि न य पडहयं छिवइ ॥९२॥ अज्ञ दिणं छट्टं पडहयस्स ता ताय ! ओसहं तीए । किं नत्थि तिहुयणे वि हु ? किं वा अस्थि ? त्ति मे कहमु || १३|| अत्थि त्ति परं वच्छय ! केत्तिय एवंविहाणि वत्थूणि । जाणंतेहि वि उग्घाडएण वयणेण सीसंति ? ॥१४॥ तेत्तं ताय ! महंतकोउयं कहसु मज्झ जमिह वणे । न य को चि सुणइ जइ एवमेस रुक्खो समग्गाणं ॥ ६५ ॥ वाहीणमोसहं नयणवाहिणो पुण विसेसओ वच्छ ! | तो जड़ इमस्स तरुणो को वि हु पक्खिवइ पत्तरसं ॥ ९६ ॥ तीए नयणे तो सा पउणिज्जर निच्छयं इमं सोउं । चितइ लोयणवियणाए बाहिओ बंधुदत्तवणी ॥९७॥ ताव परिक्खामि अहं जइ मह पउणीभवंति नयणाणि । ता जायपच्चओ हं पुरओ काहामि जं जुत्तं || १८ || इय परिभाविय सम्मं कोमलपत्ताणि चाविऊण रसं । खिवइ नयणेसु पिंडी च बंधए ताण चेवुवरिं ॥ १६ ॥ जाखमेगं चितामणि- मंतोसहिप्पभावस्स । गाढमचितत्तणओ नट्ठा वियणा असेसा वि ॥ १००॥ जाय यणिविरामे अवणेउं पट्टयं नियइ ताव । पुवं व पेच्छिउं लोयणाणि जाओ पहिट्टमणो || १०१ ॥
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