Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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२५०
आख्यानकमणिकोशे
ता किं करेमि संपद? कत्थ गओ निव्वु लहिम्सामि ? | अहवा वि पावियव्वं अवम्स पावइ धुवं जीवो ॥१४९।। जआ
दूरं वच्चइ पुरिसो तत्थ गओ निव्वुई लहिम्सामि । तत्थ वि पुचकयाई पुवगयाइं पडिखंति ॥१५०॥ जं जण पावियत्वं मुहं व दुक्खं व कम्मनिम्मवियं । तं सो तहेव पाबद कयम्स नासो जआ नत्थि ॥१५१॥ धीराण कायराण व अणत्थरिंछोलिया पडइ देहे । सा सहियव्वा न सहइ बला वि दइयो सहावेइ ॥२५२।। ता किं वियप्पिएणं एत्थेव तवोवणग्मि निवसंतो। पालमि मद्धसीलं विहिणा नियपणइणि एयं ॥१५३।। अह सव्वगुणविमुद्ध दिवसे वणदेवयं व दित्तीए । उज्जोयंती वणदसदिसाउ वरदारियं देवी ॥१५४॥ सा पियमई पक्या पसत्थलक्खणविराइयावयवं । अह तत्थ कम्मवसओ जं जायं तं निसामेह ।।१५५॥ अणुचियऽवत्थाणाओ अणु चियपावरण-भोयणाओ य । परिचारयविरहाओ पंचत्तं पियमई पत्ता ॥१५६॥ ततो विसन्नचित्तो तइया सो तावसो समाहीए । किंकायव्वविमूढो पडिओ चिंतासमुद्दम्मि ॥१५७|| रे जीव ! तए भवभीयमाणसेणं इमं वयं पत्तं । जाव य धम्मगुरू हिं धम्मसहाएहिं य विउत्तो ॥१५८॥
एसा वि पेमपत्तं समाहिहेऊ पिया मया जीव ! । इण्हि कह कुणसि तुमं तद्दिणजायं इमं बालं ? ॥१५९।। अहवा
जं एइ अवसरेणं परिवाडीए सुहं व दुक्खं वा । तं सहह अदीणमणा जाव पसायं विही कुणइ ॥१६॥ इय भावितो संठाविऊण अप्पाणमप्पण चेय । मणयं समाहिवसओ देह मणं पत्थुयत्थम्मि ॥१६॥ पालइ महुररसेहिं पहाणतरुसंभवेहिं य फलेहिं । तं बालियं पयत्ता वसीकओ नेहपासेहिं १६२॥ अह कम्मि वि पत्थावे पसत्थरूवे निवेसियं नामं । जमिमा रिसिप्पसाया जाया ता होउ रिसिदत्ता ॥१६३॥ सा विहु कम्मोदयओ कुमार ! विद्धि गया इमम्मि वणे । जणयमणाणंदयरी संजाया अट्टवारिसिया ॥१६॥ लायन्नकंतिकलिया अहिणवतारुन्नसुन्दरावयवा । मा कोवि हु अवह रिही इमं ति संजायसंकेण ॥१६५|| निययगुरुविस्सभूई सिक्ववियंजणपओगकरणेण ! विहिया अदिस्सतणू वणम्मि कीलइ जहिच्छाए ॥१६६॥ भणिया तेणेसा कुमर ! बालिया तुज्झ कोवि जो पुरिसो । रुच्चइ तं मह साहसु जेण पयच्छामि तं वच्छे ॥१६॥ कुमर ! तयं हरिसेणं मं चेव य तावसं वियाणाहि । एयं पि निवियप्पं मह धूयं चेव रिसिदत्तं ॥१६८॥ तं सोउं मुणिवयणं कुमरो आणंद निवभरो भणइ । भयवं ! तं रिसिदत्तं दंसमु मणवल्लहं अज ॥१६९।। वयणाणंतरमेव य सव्वालंकारमणहरं काउं। हरिसेणो नियधूयं दंसइ कणगरहकुमरस्स ॥१७०॥ दिट्टा य तेण बाला रइ व्व मयणेण निद्धदिट्टीए । सो वि हु ससिणेहाए दिट्टीए तीए सञ्चविओ ॥१७१॥ सुसिणिद्धदिट्टिपसरं परोप्परं ताणि पेच्छमाणाणि । वच्छत्थलम्मि विद्धाणि मयणभिल्लेण भल्लीहिं ॥१७२।।
तो तावसेण नायं नृणमिमीए इमो मणे रुइओ। कह मन्नहाऽणुराएण पेसए दिटिमेयम्मि ? ॥१७३।। जओ
जं मणरुइए छेया दिदि दूई भणंति मिहुणाणं । जं हिययम्स न रुच्चइ तत्थ गया कुणउ किं दिट्टी ? ॥१७४॥ गरुणो पेच्छंतम्स वि तेसिं पढमे वि संगमे दूरं । पेच्छमु केरिसमेयम्स विलसियं मयणहयगम्स ॥१७॥
तह कहावे नेह वसओ परोप्पर ताण निव डिया दिट्टी । निव्वत्तरइसुहाणीव तीए जायाणि ताणि जहा ॥१७६।। भणियं च--
दिट्रीए च्चिय सा तेण पिययमा नेहनिभररसाए । आभासिय व्च आलिंगिय व्य रमिय व्व पीय व्य ।।१७७॥ जओ
दरहसियं सरसकडक्खियं च वन्नंति पेमसम्बस्सं । मिहुणाणमेगसयणेऽवत्थाणं लोगववहारो ॥१७॥ तत्तो य तावसेणं पाणिग्गहणं कराविओ तीए । तत्थेव कहवयदिण वसिओतावससमाहिकए ॥१७९॥
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