Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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२७२
आख्यानकमणिकोशे तत्र तावदरहन्नककथानकमास्यायते
अत्थेत्थ पवरगच्छो गुरुगोत्तसमम्सिओ विउलसत्तो। पवरसुजाणनिचासो पाढीणपयाररमणीओ ॥१॥ जं विहियर सच्चाओ मयरमणिविवजिओ य जं निच्चं । तं तम्स महच्छरियं संजायं जलहिरूवम्स ॥२॥ तम्मि गुरुविणयनिरओ अरहन्नयनामओ वसइ खुड्डो । नियजणणि-जणयसहिओ छज्जीवहिओ सयाकालं ॥३॥ किंतु नियजणयविरइयवेयावच्चो सया विमुहकलिओ। आबालकालओ च्चिय कया वि अहिलेसो ॥४॥ अह अन्नया य जणए पंचत्तमुवागयम्मि मुहलेसे । खरकिरणतरणिताविलभुवणयले गिम्हसमयम्मि ।।५।। पियमरणतावियतणू भणिओ साइहिं एरिसं वयणं । जह अरहन्नय ! इमिणा मुणिणा सह विहर अज तुमं ॥६॥ पियमरणदुक्खसंभरणजायगुरुसोयसाममुहकमलो । तेण सह मुणिवरेणं गोयरचरियाए नीहरिओ ॥७॥
खरकिरणतावियतणू गच्छंतं सो पमोत्तु तं साहु। पासायच्छायाए खणमेगं जाव वोसमइ ।।८।। ताव नियमत्त वारणपरिट्टियाए पउत्थवइयाए । दिट्टो सुकुमालतण वयविसए मंदपरिणामो ॥९॥ तो तीप वाहरिओ आगच्छ मह गिहे महाभाग ! । जेण वियरेमि भिक्खं तं सोउं जाव तग्गेहे ॥१०॥ पविसइ ताच पहिट्टा दारं दाऊण पभणए एसा । अइकढिणकायजोग्गं परिहर वयमेरिसं सुह्य ! ॥११॥ उवभुंजसु गुरुलच्छि माणसु तारुन्नमसरिसं मझ । सहलीकुरु मणुयभवं संपत्तं पुवपुन्नेहिं ।।१२।। निसियकरवालधारासंचरणसमं सुदुम्सहं चरणं । परिपालिउमसमत्थो अणुमन्नइ तीए तं वयणं ।।१३।। उवभुंजइ विसयसुहं तीए समं जायगरुयअणुराओ । तन्नेहहरियहियओ गयं पि कालं न याणेइ ॥१४॥ एत्तो तमपेच्छंती तम्माया नट्टचेयणा जाया । परिचत्तसाहुवेसा उम्मत्ता वसणपरिहीणा ॥१५|| परिभमइ हसइ गायइ नच्चइ परिलुढइ धरणिवीढम्मि । डिभसहस्सपरिखुडा भममाणी नयरमज्झम्मि ॥१६॥ सव्वं पि वत्थुजायं 'अरिहन्नय पुत्त य !' त्ति भणिरी सा। नेहमहागगहिया न य चेयइ किंचि अप्पाणं ॥१७॥ रुयमाणी सा दिट्ठा पासायगवक्खसंठिएणिमिणा । चिंतेइ तओ चित्ते धिरत्थु मह जीवियवस्स ॥१८॥ परिचत्तनियकुलक्कमसमुवज्जियअसमपावभारस्स । गयसीलरयणनिहिणो धिरत्थु मह जीवियव्वस्स ।।१९।। असहायं ससणेहं गुरुजरया जज्जरं नियं जणणिं । परिहरमाणस्स जए धिरत्थु मह जीवियव्वस्स ॥२०॥ आसाइयवरमुणिणो अवहत्थियसुहगुरुवएसस्स । विसयासत्तस्स जए धिरत्थु मह जीवियव्वम्स ॥२१॥ उझियसुपुरिसमुहचेट्टियम्स परिगलियगुरुविवेयस्स । निद्दयचेट्टम्स जए धिरत्यु मह जीवियवस्स ।।२२।। इय भाविऊण तत्तो पासाया ओयरित्तु सहस त्ति । उभडसिंगारधरो धरणीयलमिलियसिरकमलो ॥२३॥ पणमित्त भणइ अरहन्नओ अहं अंब ! वच्छलो तुज्झ । निमुणित्तु तयं सहसा सचेयणा सा वि तं भगइ ॥२४॥ विउसजनिंदणिज्जं किं ववसियमेरिसं तए वच्छ ! ? । सो भणइ मंदपुन्नी न समत्थो काउमंब ! वयं ॥२५॥ अज्ज वि नियपाण परिचयामि न चयामि वयमिमं काउं। अवरं च भग्गसीलम्स मज्झमिणमेव जुत्तं ति ॥२६॥ तीप भणियं वरमिममच्चंतं दुक्करं कयं वच्छ ! 1 न उणो हीणजणोच्चियमसमंजसमेरिसं विहियं ॥२७॥ ता गहियसाहुवंसा आलोइय निदिऊण दुचरियं । गहियाणसणा सम्म मरिसावियसयलसत्तगणों ॥२८॥ अइगिम्हतावताविलसिलायले निवडिओ महासत्तो। मुहभावभावियमणो लोणियपिंडो व्व पविलीणो ॥२६॥ मरिऊण समुप्पन्नो देवो वमाणिओ महिडीओ। जणणी वि वयं काउं उप्पना तियसलोगम्मि ॥३०॥
अरिहन्नकाख्यानकं समाप्तम् ॥१०॥ इदानी कुलवालाख्यानकं व्याख्यायते । तच्चेदम्
अस्थत्थ पवरगच्छो अणगसत्थेमु लद्धमाहप्पो । नयरारक्खियपुरिसो व्य लोयविणयाइसंजुत्तो ॥१॥ परिहरियखमाभारो महावराहो वि नायराओ वि । गुरुचरणपञ्चाओ पडिवजियसुगुरुचरणो वि ॥२॥ अइमायाहारा वि हु अइमायाहारवजिओ निच्चं। परिवसइ तम्मि एगो साहू पन्भट्टमुहलेसो ।।३।।
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