Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 367
________________ २८० आख्यानकमणिकोशे जओ पंचनमोक्कारसमा अंते वच्चंति जम्स दस पाणा । सो जइ न जाइ मोक्खं अवम्स वेमाणिओ होइ ॥४०॥ अम्मा-पियरो मित्तं पुत्त-कलत्ताइसयणवग्गो य । विह डइ सव्वं पि इमं होइ सहाओ परं धम्मो ॥४१॥ अणुहूयनरयदुक्खस्स तुझ किर केत्तियं इमं दुक्खं ?। तो अहियासमु सम्मं धरि मणपरिणइं परमं ॥४२॥ एसा पुणो महायस ! दुलहा मणुयाइया तु सामग्गी । ता गिण्हमु तीए फलं समाहिमवलंबिडं सोम ! ॥४३|| इय तीए वयणघणरसविज्झावियकोवहुयवहो सम्मं । सिरविरइयकरकमलो पडिवज्जइ तं तहा सव्वं ॥४४।। सह वेयणाए बटुंतपरमसंवेगसंजुओ मरि । संजाय भावसमणो उववन्नो बंभलोगम्मि ||४५|| एत्तो य मयणरेहा कंदंते परियणम्मि सयलम्मि । चिंतइ किमहं गम्भे न विलीणा मंदपुन्न ? ति ॥४६॥ सुद्धसहावस्स जओ महाणुभावस्स सुद्धसीलम्स । अहमस्स मरणहेऊ संजाया निरवराहस्स ॥४७॥ अवरं च जेण निहओ नियभाया सो अवस्स सुहसीलं। मह गंजिही बला वि हु ता तं रक्खेमि जत्तेण ॥४८॥ चंदजसे नियपुत्ते कंदंते परियणम्मि सोयंते । एगागिणी निसाए गुरुहारा' निग्गया तत्तो ॥४९।। पुव्वाभिमुहं पत्ता कमेण वियडं महाडवि एकं । अह अइकता रयणी मज्झन्हे बीयदिवसम्मि ॥५०॥ सा कुणइ पाणवित्ति फलेहिं एकम्मि सरवरे नीरं । पाऊग कुणइ तत्तो पच्चक्खाणं च सागारं ॥५१॥ हिययभंतरविलसंतपंचपरमेट्टिमंतसव्वस्सा । कयलीहरए तरुपत्तविहियसयणम्मि पामुत्ता ।।५२।। एत्थंतरम्मि रयणीसमुन्भवा भीमसावयसमूहा । नाणाविहभयभेरवसद्दसमूहेहिं भेसंति ॥५३॥ तथा हि फेक्कारंति सिवाओ धुरुधुरिया भीमवग्यसंधाया । घुग्घुकरेंति घूया गुंजारवयंति केसरिणो ॥५४॥ एत्थतरम्मि जाया गुरुवियणा चलियगव्भसंभूया । तो पयडियलयहरयं कंतीए सुयं पसूया सा ॥५५|| तत्थेव तयं मोत्तु पच्चासन्ने सरम्मि जा पत्ता । वत्थाइधोयणत्थं उक्खित्ता ताव जलकरिणा ॥५६॥ उल्लालिऊण मुंडादंडेणं घत्तिया गयणमग्गे । विज्जाहरेण विहिणो निओगओ तयणु सा दिट्टा ॥५७|| नंदीसरम्मि दीवे गच्छंतेणं तओ वलेऊण । आरोविउं विमाणे वेयड्डे पव्वए नीया ॥५॥ भणिओ य तीए एसो अज महाभाग ! तम्मि वणगणे । संपयमेव पसूया पुत्तं अयं लयाहरए ॥५९॥ ता सो सावयपासाओ अहव सयमंव दूसहछुहाए । मरिही ता तमिहाऽऽणसु तत्थ व मं नेसु रन्नम्मि ।।६०॥ तेणत्तं सुयण ! तुमं पडिवजसि पाणसामियं जइ मं । तो हं आणाकारी आजम्मं होमि किं बहणा ? ॥६॥ अन्नं च सुयण ! गंधारजणवए जणवयाण पवरम्मि । रयणावहम्मि नयरे मणिचूडो नाम नरनाहो ॥६२॥ कमलाबई य भज्जा तेसिं पुत्तो मणिप्पहो अहयं । रजधुराधरणखमो पाणपिओ जणणि-जणयाणं ॥६३॥ मह जणओ विजाहरसेढीणं पालिऊण सामित्तं । निव्यिन्नकामभोगो पव्वइओ गुरुसमीवम्मि ॥६४॥ ठविऊणं मं रज्जे निस्संगो सो अईयदिवसम्मि | आसि इहं चेव गओ संपइ नंदीसरे दीवे ॥६५॥ तव्वंदणत्थमहयं पि पत्थिओ ता मए तुमं दिट्ठा । ता होसु सामिणी सुयणु ! सव्वविजाहरवहूणं ॥६६॥ अवरं च तुझ तणओ तुरंगमावहरिएण संपत्तो । पउमरहेणं महिलाहिवेण चिइ मुहेण तहि ॥६॥ एयं पन्नत्तीए मह कहियं चयसु ता तुमं खेयं । उव जसु रज्जसिरिं मा विहलं नेसु तारुन्नं ॥६॥ चिंतियमिमीए मह पावकम्मवसयाए दुक्खरिंछोली । उवरुवरि पडइ ता पडउ वजमेयस्स रूवम्स ॥६९॥ जेणाहं रूवेणं पइमरणं पढममेव संपत्ता । पुणरवि य सुयविओयं संपत्ता एयदोसेणं ॥७०॥ एसो वि हु मं पत्थइ रू वेणं चेव मोहिओ संतो । ता मह एस गुणो वि हु आवइ-दुहकारणं जाओ ॥७१॥ एयरस मा बहुदक्खलक्खसंघडणवावडमणस्स । विहिणोऽवसरो कज्जंतरम्स करणे धुवं नस्थि ॥७२॥ १. गुरुभारा सगर्भा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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