Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text ________________
२३२
आख्यानकमणिकोशे
काऊणं सियचंदण-वत्थाऽलंकारभूसियसरीरं । विज्जा-विभूइकारयतिहि-वार-मुहुक्त-करणे ॥१०८॥ जत्तेण कलायरियं वत्था-ऽऽहरणा-ऽऽसणाइणा सम्मं । सक्कारिऊण सम्माणिऊण तम्सऽप्पए विहिणा ॥१०९॥ तो निवसिक्ववणाओ तहा कलायरियकयपयत्ताओ। नियजोग्गयागणाओ भविस्सकल्लाणभावाओ ॥११०॥ नइनाहं व नईओ सोहग्गगुणा हियं व तरुणीओ। नयवंतं व सिरीओ विणयनिहिं वा पसिद्धीओ ॥१११॥ सम्गा-ऽपवम्गसुहवित्थराणि जह संकमंति धम्मजुयं । तह मेहकुमारं पि हु कलाओ सयलाओ संकंता ॥११२॥ तत्तो तरुणीहरिणीण वागुरासममणंगनरवइणो । लोला-विलासगेहं व रूयसव्वस्सभवणं व ॥११३॥ सोहम्गसंपयामंदिरं व लायन्नधणनिहाणं व । विभम-विलास-विन्नाण-नाणनायरयनयरं व ॥११॥ निम्सेसगुणारोहणपहाणपासायमुन्नयमणाणं । कप्पियकप्पदुमकप्पमप्पपुन्नाणमइदुलहं ॥११५॥ पोरिसपयावपयरिससिक्खादिक्खागुरुं गरुयगव्वं । तारुन्नं तारुन्नयसरीरसोहं समणुवत्तो ॥११६।।
तओ य
लायन्नामयकुल्लाओ असमसुंदेरनीरसरिसीओ। सिंगारतरंगतरंगिणीओ रइसोक्खखाणीओ ॥११७|| कुम्मुन्नयचरणाओ मंसल-बटुलसुबत्तजंघाओ । रंभाखंभोरुयवित्र्भमाओ नइपुलिणरमणाओ॥११८॥ गंभीरनाहियाओ वलिरेहिर-मुट्टिगेज्झमझाओ । उन्नयपओहराओ मुणालवेल्लहलबाहाओ ॥११९॥ रेहारेहिरकंठाओ बिंबअहराओ कुंददसणाओ। पुन्निमससिवयणाओ वियसियसयवत्तनयणाओ ॥१२०॥ धणुकुडिलभूलयाओ पुन्निमचंदद्धसमनिडोलाओ । रइअंदोलयसवणाओ सिहिकलावाहकेसाओ ॥१२१॥ उत्तमकुलुभवाओ लक्खणपडिपुन्नमणहरंगीओ। निम्मलकलाकलावाओ महुर-मिउभासिणीओ य ॥१२२॥ समरू वजोव्वणाओ तुल्लालंकाररुइरवेसाओ । मेहं सेणियराया परिणावइ अट्ट कन्नाओ ॥१२३॥ तो परिणयणाणंतरमुदारयागुणविभूसिओ राया । वियरइ वरपासायं सव्वासिं तासिमेगेगं ॥१२४॥ एवं सो विसयसुहं भुंजतो ताहिं अट्टहिं समेओ । दोगुंदुगो व्व देवो गयं पि कालं न याणेइ ॥१२५॥ मइया वि सत्थविसयं वियारमन्भसइ छेयनरसहिओ । कइया वि विविहकरणंगहारकलियं च नट्टविहिं ।।१२६॥ कइया वि सरसपत्तयछेयं कइया वि चित्तयम्मविहिं । कइया वि सत्तसरगाम-मुच्छणाकलियगीयविहिं ॥१२७॥ कइया वि तुरयसिक्खं कइया वि हु हत्थिसिक्खमायरइ । कइया वि मुट्ठिजुद्धं कइया वि हु मल्लजुद्धं च ।।१२८॥ कइया वि वारविलयापेक्खणयासत्तमाणसो सययं । नियपासायपरिंगओ नायरयजणाण सुहजणओ ॥१२९॥ भो ! केरिसो वि देवो न याणमो एस नित्तलं देवो । इय जणयंतो बुद्धिं विसिट्टलोयाण सो ललइ ॥१३०॥ अह अन्नया य भयवं ! सिरिवीरजिणेसरो समणसहिओ। विहरंतो संपत्तो समोसढो बाहिरुज्जाणे ॥१३१॥ एत्थंतरम्मि उज्जाणपालओ हरिसनिन्भरसरीरो । वद्धावइ आगंतु जएण विजएण नरनाहं ॥१३२॥ देवाणुपिया ! किर जस्स दसणं मुहयरं समीहंति । बंछंति नयणनिव्वुइजणयं वा वीयरागस्स ॥१३३॥ सवणेणं नामस्स य जलधाराहयकयंबपुप्र्फ व । उसवियरोमकूवा हयहियया हुंति नरनाह ! ॥१३४॥ एसो वीरजिणेसरतित्थयरो णेगदेवकोडीहिं । परियरिओ पावहरो परिमुणियासेसनायव्वो ॥१३५॥ इहइ चिय संपत्तो गिहागओ इह समोसढो भयवं ! । ता एयं वयणमहं पियं ति काउं निवेएमि ॥१३६॥ सुणिणं वयणमिणं धाराहयनीवरुक्खकुसुमं व । रोमंचंचियदेहो अणुभवमाणो रसमपुव्वं ॥१३७|| दाऊण पीइदाणं सहरिसवयणो विसुद्धदविणस्स । तं पुण समए देसियमद्धत्तेरससयसहस्सा ॥१३८॥ तो सब्वेण बलेणं सब्वेणंतेउरेण परियरिओ । सव्वाए विभूईए सव्वाए रायलच्छीए ॥१३९॥ आभरणरुइरदेहो सेयणयं सिंधुरं समारूढो । सारयजलहरसंसियपरिविलसिरविज्जपुंजो व्व ॥१४०॥ चलिओ वंदणहे जाव य पत्तो समोसरणभूमि । परिहरियरायककुहो काउंतिपयाहिणं विहिणा ॥१४१॥
१. निलाडाओ रं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504